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शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

कुछ ख्याल

लाश का मेरी
जो चाहे करना यारों
मैं नही पूछने
आने वाला
जिंदा हूँ जब तलक
जी लेने दो
मैं नही यहाँ
अमर होने वाला




वो


एक वो थी
कौन ?
जिसे कभी देखा नही
फिर ?
फिर भी उसे चाहा
क्यूँ ?
पता नही
क्या था उसमें ?
मगर जो था
वो शायद या
सिर्फ़ मेरा था



जिसने चाहा ,शरीर को चाहा
मुझे तो किसी ने चाहा ही नही
जिसने पाया शरीर को पाया
मुझे तो किसी ने पाया ही नही
ये रूप के लोलुप भंवरों को
कभी प्रेम रंग भाया ही नही

29 टिप्‍पणियां:

  1. gazab kar diya ji.........
    bahut khoob kaha ji........
    anand aa gaya..
    ________badhaai !

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  2. सब रचना के रंग अलग हैं अलग अलग आधार।
    रूप के कामी भंवरे जग में क्या समझेंगे प्यार।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. वन्दना जी,

    जिन्दगी के सत्य को उभारती हुई कविता, जो चाह के लिये शरीर और स्वयं में भेद करती है। यह जो सीमा रेखा है, शायद सत्य वहीं से शुरू होता है, अक्सर हम अर्धसत्य को ही पूर्णसत्य मान लेते हैं।

    बहुत अच्छी लगी आपकी रचनायें।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  4. वन्दनाजी

    कव्य रचना बहुत सुन्दर,

    आभार/मगलभावनाओ के सहीत

    हे प्रभू यह तेरापन्थ

    मुम्बई टाईगर

    जवाब देंहटाएं
  5. jisne chaha... mere sharer ko chaha..mujhe kisi ne nahi chaha...kya baat hai..bahut sundar..badhai ho..

    जवाब देंहटाएं
  6. कवितापे comment के लिए तहे दिलसे शुक्रिया ..!
    फलसफा , तो नही है , शायद , ये ज़िंदगी ही है ....जिसे जिया है ..

    आपकी ये छोटी रचनाएँ , बड़ी सादगीसे गहरी बातें कह रहीं हैं ..
    अपने शरीर का मौत के बाद क्या होना है.... ...! या दफना दें , या अग्नी दें ...मिलना तो उसने उसी मिट्टी में है ...जिससे वो बना था ..!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

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    Kitnaa sach hai..kaun hamaree rooh tak pohonch payaa...?

    जवाब देंहटाएं
  7. जीवन की है यही हकीकत, यही सत्य है।
    शब्द-शब्द में छिपा हुआ, बेजोड़ तथ्य है।।
    प्रेम अमर है और अजर है, बहुत उड़ाने भरता है।
    झूठा मरता है तन पे, सच्चा तो मन से करता है।।

    जवाब देंहटाएं
  8. जीवन की है यही हकीकत, यही सत्य है।
    शब्द-शब्द में छिपा हुआ, बेजोड़ तथ्य है।।
    प्रेम अमर है और अजर है, बहुत उड़ाने भरता है।
    झूठा मरता है तन पे, सच्चा तो मन से करता है।।

    जवाब देंहटाएं
  9. जिनकी आँखें नहीं खुलीं
    उनकी आँखें खोल रही है
    समझने वाले बस समझ लें
    कविता बहुत कुछ बोल रही है.

    वंदना जी ,
    आपका अंदाजे बयां सचमुच काबिले तारीफ़ है.बधाई!!!!!!

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  10. वाह आपने तो सहज ही कह दिया............... इतनी सत्य इतनी सटीक बात............. मन के कोमल भाव लाजवाब तरीके से बांधे हैं आपने....... सच मच मन को किसी ने चाहा नहीं सब तन ही तो चाहते हैं...........पर असल प्रेम दोनों में फर्क नहीं करता........ पूरक मानता है

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  11. वन्दना जी,
    सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई.कोई शक नहीं 'Leo' sun sign वाले
    कोमल मन वाले पर,sensitive कवि होते है जो सच्ची बात बिना लाग लपेट के कहने का साह्स रखते है.

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  12. "जिसने चाहा ,शरीर को चाहा
    मुझे तो किसी ने चाहा ही नही
    जिसने पाया शरीर को पाया
    मुझे तो किसी ने पाया ही नही
    ये रूप के लोलुप भंवरों को
    कभी प्रेम रंग भाया ही नही"
    रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

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  13. ... बहुत ही सुन्दर व प्रभावशाली रचनाएँ !!!!

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  14. जिसने चाहा ,शरीर को चाहा
    मुझे तो किसी ने चाहा ही नही
    जिसने पाया शरीर को पाया
    मुझे तो किसी ने पाया ही नही
    ये रूप के लोलुप भंवरों को
    कभी प्रेम रंग भाया ही नही....man ko gahrai tak chhuti hai aapki rachna...

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  15. भंवरे तो रस के लोभी है उन्हे प्रेम से क्या लेना देना

    बहुत सुन्दर भाव
    खूबसूरती से लिखा गया है

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  16. AAPNE ES KHAYAL KAHA
    PAR YEH TO ZINDGI KA HAAL H.

    SUNDER LEKHAN KE LIYE AABHAR SAWIKAR KARE.
    RAMESH SACHDEVA
    DIRECTOR,
    HPS DAY-BOARDING SENIOR SECONDARY SCHOOL,
    "A SCHOOL WHERE LEARNING & STUDYING @ SPEED OF THOUGHTS"
    SHERGARH (M.DABWALI)-125104
    DISTT. SIRSA (HARYANA) - INDIA
    HERE DREAMS ARE TAKING SHAPE
    +91-1668-230327, 229327
    www.hpsshergarh.wordpress.com

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  17. अपनी खुशियोंको जिंदगी राहोंमें तलाशते हुए मायूसी ही हासिल हुई ,शरीर तो जिन्दा ही रहा सान्सोके सफ़रके ख़त्म होने के इंतज़ारमें , और एक जिन्दा लाशके बोझ को ढोकर थकसे गए ...
    बहुत खूब अभिव्यक्ति ....

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  18. सादर ब्लॉगस्ते!
    आपका संदेश अच्छा लगा।

    अब सरकोजी मामा ठहरे ब्रूनी मामी की नग्न तस्वीर के दीवाने। वो क्या जाने बुर्के की महिमा। पधारें "एक पत्र बुर्के के नाम" सुमित के तडके "गद्य" पर आपकी प्रतीक्षा में है

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  19. तीनों क्षणिकाएं बेहतरीन है। पहली वाली तो कुछ ज्यादा ही अच्छी लगी।

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  20. बहुत सुन्दर भावः गहरी बात कम शब्द
    बहुत बहुत बधाई

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  21. वो


    एक वो थी
    कौन ?
    जिसे कभी देखा नही
    फिर ?
    फिर भी उसे चाहा
    क्यूँ ?
    पता नही
    क्या था उसमें ?
    मगर जो था
    वो शायद या
    सिर्फ़ मेरा थ
    लाजवाब और सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई

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  22. ....जी लेने दो
    मैं नही यहाँ
    अमर होने वाला

    ...ye lamha filhaal ji lene do !!

    laga ki isse accha kuch nahi ...


    par jab ye padha....

    ...क्या था उसमें ?
    मगर जो था
    वो शायद या
    सिर्फ़ मेरा था

    hat's off !!

    flawless...

    जवाब देंहटाएं

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