पृष्ठ

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

सिलवटें

बिस्तर की सिलवटें तो मिट जाती हैं
कोई तो बताये
दिल पर पड़ी सिलवटों को
कोई कैसे मिटाए
उम्र बीत गई
रोज सिलवटें मिटाती हूँ
मगर हर रोज
फिर कोई न कोई
दर्द करवट लेता है
फिर कोई ज़ख्म
हरा हो जाता है
और फिर एक नई
सिलवट पड़ जाती है
हर सिलवट के साथ
यादें गहरा जाती हैं
और हर याद के साथ
एक सिलवट पड़ जाती है
फिर दिल पर पड़ी सिलवट
कोई कैसे मिटाए

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना और शब्दों पर बारीक पकड़

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत भावपूर्ण रचना है।बहुत अच्छी लगी।बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. ye dard hi aisa hai ki mitaaye na mite
    dard ye kaisa hai ke mittao to badhe.

    sunder rachna,

    जवाब देंहटाएं
  4. kuchh silvaton ki tah mat kholo ,
    kuchh khayaloko suljaane ki koshish mat karo,
    kuchh jajbaaton ko mukt karne ki cheshta mat karo,
    kuchh khwabonki tabir ki koshish mat karo,
    ye silvaten hamari amanat hai ,duniya se chhupkar baithi khud se khud ki pahchan hai ..

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर रचना...सच्ची बात कही है आपने...इस प्रशन का जवाब कौन देगा?

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. really very true.
    ek baar jo baat dil ko lag jaaye use mita paana bahut mushkil hota hai..

    जवाब देंहटाएं
  8. दिल को छू लेने वाली रचना..आभार प्रस्तुति का.
    शुभकामनाएं........

    जवाब देंहटाएं
  9. bahut hi touchy and classic composition

    badhai ho

    take care
    regards
    vijay

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया