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शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

औरत का घर?

सदियों से औरत अपना घर ढूंढ रही है
उसे अपना घर मिलता ही नही
पिता के घर किसी की अमानत थी
उसके सर पर इक जिम्मेदारी थी
हर इच्छा को ये कह टाल दिया
अपने घर जाकर पूरी करना
पति के घर को अपनाया
उस घर को अपना समझ
प्यार और त्याग के बीजों को बोया
खून पसीने से उस बाग़ को सींचा
हर आह,हर दर्द को सहकर भी
कभी उफ़ न किया जिसने
उस पे ये इल्जाम मिला
ये घर तो तुम्हारा है ही नही
क्या पिता के घर पर देखा
वो सब जो यहाँ तुम्हें मिलता है
यहाँ हुक्म पति का ही चलेगा
इच्छा उसकी ही मानी जायेगी
पत्नी तो ऐसी वस्तु है
जो जरूरत पर काम आएगी
उसकी इच्छा उसकी भावना से
हमें क्या लेना देना है
वो तो इक कठपुतली है
डोर हिलाने पर ही चलना है
ऐसे में औरत क्या करे
कहाँ ढूंढें , कहाँ खोजे
अपने घर का पता पूछे
सारी उम्र अपनी हर
हर तमन्ना की
बलि देते देते भी
ख़ुद को स्वाहा करते करते भी
कभी न अपना घर बना सकी
सबको जिसने अपनाया
उसको न कोई अपना सका
आज भी औरत
अपना घर ढूंढ रही है
मगर शायद ......................
औरत का कोई घर होता ही नही
औरत का कोई घर होता ही नही

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

सिलवटें

बिस्तर की सिलवटें तो मिट जाती हैं
कोई तो बताये
दिल पर पड़ी सिलवटों को
कोई कैसे मिटाए
उम्र बीत गई
रोज सिलवटें मिटाती हूँ
मगर हर रोज
फिर कोई न कोई
दर्द करवट लेता है
फिर कोई ज़ख्म
हरा हो जाता है
और फिर एक नई
सिलवट पड़ जाती है
हर सिलवट के साथ
यादें गहरा जाती हैं
और हर याद के साथ
एक सिलवट पड़ जाती है
फिर दिल पर पड़ी सिलवट
कोई कैसे मिटाए

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

प्यार हो तो ऐसा

बर्फ की मानिन्द
सर्द हाथ को
जो छुआ उसने
कुछ कहने और सुनने
से पहले
वहीँ साँसे
थम गयीं
आँखें पथरा गयीं
और
रूह खामोश हो गई

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

दिमाग के कीडे

कहते हैं न की जब किसी चीज़ की धुन सवार हो जाए तो फिर उससे बचना मुश्किल है और उसे पाना इंसान की पहली जरूरत बन जाता है । शायद कुछ ऐसा ही हाल हमारा है जब तक कुछ न लिखो तब तक दिमाग में लिखने का कीडा कुलबुलाता रहता है । कितना ही समझा लो मगर सुनता कौन है । फिर चाहे उसका कोई सारगर्भित अर्थ हो या न हो मगर जनाब दिमाग को तो आराम करने की फुर्सत ही नही होती न । अगर न लिखें तो शायद फट ही जाएँ किसी न किसी पर । सच कुछ दिमाग ऐसे ही होते हैं । अब देखो हमारे दिमाग को ---------कुछ और न मिला तो यही लिखने बैठ गया । है न .........दिमाग का फितूर । अब इसे और क्या कहेंगे। सच ऐसे कीडे बहुत परेशां करते हैं कभी कभी ।
अब हम कहीं किसी जरूरी काम में बैठे हैं जहाँ बहुत ध्यान से कोई लिखा पढ़ी का काम करना हो तो जनाब वहां भी शुरू हो जाते हैं । अब पुचो इनसे की उस वक्त हम तुम्हें कैसे टाइम दें और जो तुम्हारे अन्दर कुलबुला रहा है उसे कैसे शब्दों में ढलकर पन्नों पर उतर दें। मगर नही जनाब........यह कहाँ मानने वाले हैं । यह वहां भी शुरू हो जाते हैं और जहाँ हिसाब लिखा जा रहा है उसी कागज़ के पीछे चालू हो जाते हैं ।
हद तो तब होती है जब हम उनके साथ होते हैं और ये जनाब अपने काम में लग जाते हैं । अब इनसे कोई पूछे उस वक्त हम इनके बारे में कैसे सोचें। जनाब कुछ वक्त तो आराम फरमा लिया करो ।
सच यह कीडा कुछ अजीबोगरीब होता है न वक्त देखता है और न जगह और शुरू हो जाता है .मुझे जैसे न जाने कितनो का जीना दुश्वार किए रखता है । लेकिन शायद इसके बिना हम जैसों की गति भी तो नही ।

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

प्रेम का अनोखा स्वरुप

प्रेम का जो स्वरुप आज मैंने देखा है उसे देखकर ह्रदय आंदोलित हो गया .अभी मैंने राज्नीश्क्झा जी का ब्लॉग अनकही खोला और वहां प्रेम का स्वरुप देखकर अहसास हुआ की प्रेम क्या होता है कोई उन लोगों से सीखे.सच प्रेम का सच्चा स्वरुप तो वो ही है.आज लोग प्रेम को एक दिन का खेल बनाकर खेलते हैं यह उन लोगो के लिए एक सबक है । प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जहाँ कोई प्रतिकार नही, कोई अपेक्षा नही सिर्फ़ त्याग , समर्पण , विश्वास और निस्वार्थ प्रेम।

प्रेम करना भी एक कला है । यह होता है अलोकिक प्रेम ---------जहाँ सिर्फ़ समर्पण है । हर अपेक्षा से परे । सिर्फ़ भावनाओं से लबरेज़ । इसे कहते हैं रूह से रूह का असली मिलन जहाँ शारीरिक विकलांगता गौण हो गई है और उस विकलांगता का कोई निशान वहां नही है ,हर चेहरा खुशी से भरपूर जीवन जी रहा है ।

ज़िन्दगी जीना कोई उनसे सीखे और प्रेम करना भी ।
प्रेम की पराकाष्ठा है -----------सारी ज़िन्दगी ऐसे प्रेम की हसरत ही रहती है मगर ऐसा प्रेम हर किसी का नसीब नही होता ।
खुदा प्रेम दे तो ऐसा दे
जहाँ प्रेम के सिवा कुछ न हो
प्रेम ही खुशी हो
प्रेम ही बलिदान हो
प्रेम ही समर्पण हो
प्रेम ही संसार हो
प्रेम के महासागर में
प्रेमानंद में डूबे
प्रेमियों का वास हो
खुदा प्रेम दे तो ऐसा दे...........


मैं यहाँ रजनीश जी के ब्लॉग का पता दे रही हूँ पहले उसे देखियेगा और फिर यह पढियेगा ।

rajneeshkjha.ब्लागस्पाट.कॉम

इसमें अनकही खोलियेगा तब प्रेम का अनोखा स्वरुप देखने को मिलेगा।

www.ankahi.tk

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

चाहतें कब ख़त्म होती हैं
चाहत तो पत्थर भी रखता है
कि कोई उसे भी देवता बना दे

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

मोहब्बत ऐसे भी होती है शायद

न तुमने मुझे देखा
न कभी हम मिले
फिर भी न जाने कैसे
दिल मिल गए
सिर्फ़ जज़्बात हमने
गढे थे पन्नो पर
और वो ही हमारी
दिल की आवाज़ बन गए
बिना देखे भी
बिना इज़हार किए भी
शायद प्यार होता है
प्यार का शायद
ये भी इक मुकाम होता है
मोहब्बत ऐसे भी की जाती है
या शायद ये ही
मोहब्बत होती है
कभी मीरा सी
कभी राधा सी
मोहब्बत हर
तरह से होती है