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रविवार, 5 अगस्त 2007

कुछ तो है

कुछ तो है जो दिल को सुकून नहीं मिलता
कहीँ चैन कहीँ आराम नहीं मिलता
ना जाने यह दिल क्या चाहता है
हर वक़्त कहीँ खोया रहता है
इसको ढूँढा बहुत मगर कहीँ मिलता नहीं
ना जाने कौन सी गलियों में गुम हो गया
इसकी ख्वाहिशों का कहीँ पता नहीं मिलता
कैसे मिले सुकून वो दवा नहीं मिलती
अरमानों को कहीँ मंजिल नहीं मिलती
कुछ तो है जो खो गया है
जिसे पाने के लिए ये दिल बेचैन हो गया है
दिल को खुद का पता नहीं मिलता
कुछ तो है जो दिल को सुकून नहीं मिलता

1 टिप्पणी:

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