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बुधवार, 4 जुलाई 2007

दिल चाहता है

दिल चाहता है आसमान में ऊड़ना,
पंछियों कि तरह उन्मुक्त ऊड़ना ,
बादलों की तरह हवा में तैरना ,
विशाल आकाश को छूना ,
जहाँ ना कोई बंदिश हो ना पहरे,
बस मैं हूँ और मेरी चाहतें हों,
जहाँ मैं सुन सकूं अपने मन कि बात ,
अपनी आवाज़ को दे सकूं शब्द ,
कुछ दिल की कहूं कुछ दिल की सुनूं
और बस आस्मां में ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं।

9 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ मैं सुन सकूं अपने मन कि बात ,
    अपनी आवाज़ को दे सकूं शब्द ,
    कुछ दिल की कहूं कुछ दिल की सुनूं
    और बस आस्मां में ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं ऊड्ती फिरूं।
    aap to mere sapne bhi chura leti hain...
    bahut sundar...

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  2. हर मन की चाहत को आपने अभिव्यक्ति दे दी है ! काश मैं भी पंछियों की तरह उन्मुक्त आसमान में इसी तरह उड़ती फिरूँ ! बहुत प्यारी रचना !

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  3. सब यूँ ही उड़ना चाहते हैं पर कर्तव्य की डोरी ने बाँध रखा है

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  4. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  5. कल 14/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं

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