अति उन्माद अराजकता को जन्म देता है
समय रख रहा है आधारशिला
कल की, परसों की
बरसों की
इस दौर में
सत्य का घूँट
हलक से उतरा नहीं करता
तुम बोलोगे
मारे जाओगे
न उन्माद का चेहरा होता है
न उन्मादियों का
शताब्दियों ने मौन होकर
समय की स्लेट पर लिखी हैं कहानियाँ
जहाँ हथियार में तब्दील होता आदमी
धर्म और राजनीति की बिसात पर
मोहरा बन करता है नर्तन
समय स्वर्णाक्षरों में
दर्ज कर रहा है
भावनाओं का कोलाहल
जुनून बेपर्दा हो
कर रहा है अट्टहास
हंगामों से पटी पड़ी है धरती
श्रद्धा भक्ति और आस्था
वृद्धाओं की कतार में
सबसे अंत में खड़ी हैं
टुकुर टुकुर देख रही हैं भव्यता का उन्माद
जहाँ हाइजैक हो गए हैं भगवान भी
आँख मूँद अनुसरण करने का दौर गुनगुना रहा है गुलामी गीत!!!
आँख मूँद अनुसरण करने का दौर गुनगुना रहा है गुलामी गीत!!!
बहुत सुन्दर रचना
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