एक औरत बदहवास सी
सड़कों पर रोती डोल रही है
जाने किस गम की परछाईं से जूझ रही है
पूछने पर केवल इतना कहती है
जाने किस जन्म की उधारियाँ हैं
चुकती ही नहीं
ऐसा भी नहीं चुकाते न हों
जितनी चुकाई
मूलधन और ब्याज बढ़ते ही गए
गमों के दौर पहले से ज्यादा मुखर हुए
अब न आस बची न रौशनी की किरण
रूह खलिश का रेगिस्तान बनी
ढूँढ़ रही है दो बूँद नीर
अपनी लाश अपने कंधे पर ढोती औरत के पास
आँसुओं की थाती के सिवा होता ही क्या है
कहा और आगे बढ़ गयी
दुनिया चल रही थी
दुनिया चलती रहेगी
औरत इसी प्रकार बदहवास हो
सड़कों पर रोती हुई डोलती रहेगी
कोई नहीं पूछेगा उसके गम की वजह
पूछ लिया तब भी
ठहरायेगा उसे ही दोषी
नियति के पिस्सू काट रहे हैं
और वो है कि मरती भी नहीं
स्वर्णिम अक्षरों में
उम्रकैद लिखा है आज भी उसके माथे पर
फिर वो आज की जागरूक कही जाने वाली स्त्री ही क्यों न हो
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंI can't get enough of the amazing Columbia Shirts I got from The Stitch N Store.
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