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शनिवार, 7 मार्च 2020

तानाशाह ! गश्त पर हैं

खिड़की और दरवाज़े बंद रखने का दौर है ये 
तानाशाह ! गश्त पर हैं 

हवाओं पर लगे हैं पहरे 
नहीं है इजाज़त दुपट्टा उड़ाने की 
बंद इमारतें गवाह हैं 

कमसिनी के मौसम हवा हुए 
अब सुलगना नियति है 
मुल्क की 

दर्ज की जा रही हैं इबारतें 
फिर पुख्ता हों न हों 
बहस मुसाहिबे के दौर दफ़न हुए 

नया दौर है ये 
नयी कलम है 
और नयी है सोच 
अंतर मिट चुका है शोषक और शासक का 
तुम तय करो अपना पक्ष 

तस्वीरें भी कभी बदला करती हैं भला?

किश्तों में लुटना तय है 
किश्तों में ही चुकना है 
फिर कैसा विद्रोह और क्यों?
जब आखिरी कदम तय है 
कलम होगा सर हुक्म उदूली पर 
सर नवाना आज के समय का सबसे बड़ा लोकतंत्र है 
यही लोकतंत्र की जय है ...



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