राम क्या तुम आ रहे हो
क्या सच में आ रहे हो
राम तुम जरूर आओगे
राम तुम्हें जरूर आना ही होगा
आह्वान है ये इस भारतभूमि का
हे मर्यादापुरुषोत्तम
मर्यादा का हनन नित यहाँ होता है
करने वाला ही सबसे बड़ा बिगुल बजाता है
तुम्हारे नाम का डंका बजवाता है
ये आज का सच है राम
कहो, कैसे करोगे स्थापित फिर से
मर्यादा का कलश?
जब तुम्हारे नाम पर यहाँ
रोज लूटे जाते हैं जन के मन
हे राम
आज हर मन एक अयोध्या है
हर घर एक अयोध्या है
कहो, कैसे हर मन औ घर में
करोगे विचरण
साधोगे लगाम
जब हर मन और हर घर में
रावण रक्तबीज से उगा है
राम तुम आओगे
तुम जरूर आओगे
तुम्हें आना ही होगा
हम कह रहे हैं सदियों से
और कहते रहेंगे
आगे भी सदियों तक
यहाँ अब पाला पड़ा है संवेदनाओं पर
निज स्वार्थ से वशीभूत है हर राग
ऐसे में कैसे होगा तुम्हारा पदार्पण
जब कंटकाकीर्ण है पथ
इस बार घायल फिर तुम्हें ही होना होगा
राम ये त्रेता नहीं है
कलयुग है
क्या सच में तुमने हर मन और घर में विराजित
रावण का अंत कर दिया है ?
क्या सच में तुम दीपोत्सव के हकदार हो?
प्रश्न तो उछाले ही जायेंगे
क्या सह पाओगे
या दे पाओगे उत्तर ?
शायद नहीं दे पाओ कोई उत्तर
देख , इस युग की दीन हीन दशा
कलयुग में राम नहीं आते
सिर्फ राम के आने की आस उपजाई जाती है
और उसी आस पर रक्तपात कर हित साधे जाते हैं
क्योंकि
हर बार तुम आ जाते हो एक पुकार पर
और फिर चले जाते हो हित सधने पर
समीकरण दुरुस्त रहता है उनका
राम तुम्हारे नाम का 'पुआ' दिखा
जीत लिए जाते हैं देश
ऐसे में तय करो
किस तरफ होगा तुम्हारा पदार्पण
क्योंकि
आना तुम्हारी नियति है
और तुम आओगे
फिर छद्म रूप में ही सही
क्या देख पाओगे उनका बनाया अपना छद्म रूप ?
देखो राम
तुम्हारे आने पर सम्पूर्ण अयोध्या है जगमग
हाँ, तो आ रहे हो न ?
तो क्या हुआ जो छद्मता है आज तुम्हारा पर्याय ...
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