पृष्ठ

सोमवार, 2 जुलाई 2018

आह ! अब दर्द का पर्याय नहीं

दर्द जब कट फट जाता है
मैला हो जाता है
तब बहुत मुस्काता है
शब्दबाण विहीन हो

फैला है यूँ, बिखरा हो जैसे पानी
और रपट जाए कोई बेध्यानी में
कचोट कितना छलछलाये
मौन को नहीं तोड़ पाती

मूक अभिव्यक्तियों से बंधा है गठजोड़
अब खुश्क हैं आँखें और अंतर्मन दोनों ही

कहते हैं
उस तरफ बज रही है एक सरगम अहर्निश
जाने क्यों
तोड़ नहीं पाती साँकल बंद दरवाज़ों की

खामोश रुदन श्रृंगार है दर्द की तहरीरों का
आह ! अब दर्द का पर्याय नहीं



1 टिप्पणी:

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया