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बुधवार, 2 नवंबर 2016

खतरनाक समय है ये

ओह ! सच बोलना कितना खतरनाक है 
खतरनाक समय है ये 
 
सुना था
इमरजेंसी में लागू थीं यही धाराएं
तो क्या
सच की धार से नहीं कटेगा झूठ इस बार ?
तो क्या
फिर सलीब पर लटकेगा कोई मसीह ?
तो क्या
सिले जायेंगे लब बिना किसी गुनाह के ?

सच में
खतरनाक समय है ये
जहाँ
अभिव्यक्ति भी नहीं उठा पाती खुलकर जोखिम
बादशाही के क़दमों में झुका है ईश्वर
और तानाशाही कहकहे लगाती कर रही है ब्रह्माण्ड रोधन

चलो
झुला लो सिर
कहकर
मेरे खुदा हो तुम
चाटुकारिता और चरण चारण करना ही है हमारा अंतिम लक्ष्य

हम हैं आम इंसान इस मुल्क के
जहाँ लोकतंत्र की हत्या हो चुकी है
और
जनतंत्र सिसकते हुए कह रहा है
वन्दे मातरम



आज जब पूर्व सैनिक आत्महत्या मामले में  बेटे और परिजनों को
डिटेन किया जा रहा हो न  केवल उन्हें बल्कि उप मुख्यमंत्री भी इसी वजह से गिरफ्तार कर लिए गए होंतो सोचने पर विवश होना ही पड़ेगा आखिर किस समय में जी रहे हैं हम

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