पृष्ठ

बुधवार, 31 अगस्त 2016

ये इश्क नहीं तो क्या है ?

ये रात का पीलापन
जब तेरी देहरी पर उतरता है
मेरी रूह का ज़र्रा ज़र्रा
सज़दे में रुका रहता है

खामोश परछाइयों के खामोश शहरों पर
सोये पहरेदारों से गुफ्तगू
बता तो ज़रा , ये इश्क नहीं तो क्या है ?

चल बुल्लेशाह से बोल
अब करे गल(बात)खुदा से

नूर के परछावों में अटकी रूहें इबादतों की मोहताज नहीं होतीं

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये इश्क नहीं तो और क्या ........दोस्त जी बहुत गहरे गहरे पैठ कर मोती चुग रही हैं आप ...हंस हो जाइए यूं ही लिखती रहे यूं ही बहती रहे ..

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-09-2016) को "शुभम् करोति कल्याणम्" (चर्चा अंक-2453) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या बात -२ !! खुबसूरत रचना.

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया