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रविवार, 31 जुलाई 2016

चटखारों की आवाज़

कोई ज़िन्दगी से संवाद करे भी तो कितना
जहाँ प्रश्नों का ज़खीरा हो
समय कम हो
और उत्तर नदारद

नमक मिर्च वाली ज़िन्दगी में
इश्क नाकामियों का ही तो दूसरा नाम है
और तुम ... पहला

अब चटखारों की आवाज़ मौन के गुम्बद में अज़ान भरती है

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-08-2016) को "घर में बन्दर छोड़ चले" (चर्चा अंक-2422) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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