जरा सोचिये ............
**********************
धर्म निरपेक्ष देश होते हुए धार्मिक असहिक्ष्णुता का माहौल अचानक से बन जाना एक संदेह को जन्म देता है . पिछले डेढ़ साल में ऐसा क्या हुआ जो अचानक हर जगह सिर्फ हिन्दू मुस्लिम में बांटा जा रहा है जनता को ? उससे पहले इतनी शांति थी कि कोई सोच भी नहीं सकता था कि यहाँ हिन्दू और मुस्लिम दो कम्युनिटी रहती हैं . यहाँ तक कि जब बाबरी मस्जिद पर फैसला आया था तो लगता था जाने कितना बड़ा बवाल हो जाएगा देश में लेकिन दोनों ही धर्मों के लोगों ने उसका ने केवल स्वागत किया बल्कि भाईचारे और धैर्य का भी परिचय दिया . फिर अचानक से ऐसा क्या हुआ जो आज ऐसा माहौल बन गया है कि देश सिवाय इस मुद्दे के और कोई मुद्दा ही नहीं बचा ?
ये बात सोचने वाली है आखिर क्यों कभी मुजफ्फरपुर कभी दादरी में दंगे होते हैं तो कभी कलबुर्गी , पंसारे आदि की हत्या ? क्या अब लोग असहिष्णु हो गए हैं ? क्या अब अचानक उनमे अपने धर्म के प्रति ज्यादा मोह उत्पन्न हो गया है ? या आज ही ज्यादा धार्मिक हो गए हैं ?
लोगों से बात करो तो वो कहते हैं सब राजनीति है . आम इंसान ऐसा कुछ नहीं चाहता . दोनों ही अमनोचैन से रहें बस यही चाहते हैं तो क्या उनका कहना सही है ? क्या सिर्फ सियासत की बिसात बिछाने को इतनी घिनौनी चालें खेली जा रही हैं जिनमे आम आदमी मोहरे बना हुआ है ? उसकी जान के कीमत पर इतनी घटिया चाल चलना क्या शोभा देता है ?
अगर राजनीति भी है तो प्रश्न उठता है कौन करा रहा है ये सब ? पक्ष विपक्ष एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं . कांग्रेस कहती है बीजेपी और संघ के इशारे पर हो रहा है और वो कहते हैं कांग्रेस के . तो सुनने के बाद लगता है कहीं न कहीं कोई न कोई पार्टी तो ऐसा कर ही रही है जो नहीं चाहती देश में अमन रहे जनता खुशहाल रहे . बात फिर वहीँ आती है घूमफिरकर कि क्या मोदी के आने से ऐसा हुआ या उन्हें फ्रेम किया जा रहा है क्योंकि उनके नाम के साथ गोधरा काण्ड चिपका हुआ है . साथ ही जिस तेजी से वो विकास के रास्ते देश के लिए बना रहे हैं , सभी देशों से मिलकर भारत का नाम सारे संसार में ऊंचा करने में लगे हैं , ये देख कुछ राजनैतिक पार्टियों को सोचना पड़ गया कि यदि ये इन पांच सालों के बाद अगले पांच साल भी रह गया तो हमारा तो कोई नामलेवा भी नहीं रहेगा इसलिए और कुछ नहीं तो इसी आग को फैलाया जाए क्योंकि किसी भी देश या व्यक्ति को खोखला करने के लिए धार्मिक असहिष्णुता का माहौल बनाना सबसे आसान है और उस पर अपनी राजनीति की रोटियां सेंकना और भी आसान .
दूसरी तरफ ये भी नहीं कहा जा सकता कि जो सत्ता में काबिज हैं वो पूरी तरह दूध के धुले हैं . अब दाग तो दाग है और लगा भी है कोई दोषी मानता है कोई निर्दोष ऐसे में ऊंगली उन पर भी उठती है साथ ही संघ पर भी . शायद देश को सिर्फ हिन्दू राष्ट्र बनाने की मुहीम की ओर अग्रसर हों ये पार्टियाँ या फिर सिर्फ चुनाव जितने के लिए करवाए जा रहे उपद्रव हों .............मगर चाहे जो हो , चाहे पक्ष का हाथ हो या विपक्ष का मगर उसमे नुक्सान आम आदमी का हो रहा है . वो समझ नहीं पा रहा ऐसे में कौन सही है और कौन गलत यहाँ तक कि इस विरोध में जब साहित्यकारों का एक धडा शामिल हो गया तो वो भी आरोपों की राजनीति से मुक्त न रह सका जबकि साहित्यकार अपने समय को रचता है तो अपनी तरह विरोध करने का भी हकदार है कोई कलम से करता है तो कोई पुरस्कार वापसी से तो ऐसे में उन पर ही तोहमतों की राजनीति खेली जा रही है जो किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है . साहित्यकार सिर्फ इतना चाहता है कि उसे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिले और यदि उस स्वतंत्रता पर उसका ही क़त्ल होने लगे तो विरोध लाजिमी है क्योंकि साहित्यकार न हिन्दू होता है न मुस्लिम वो समाज का आइना होता है जो देखता है वो ही उसकी कलम लिखती है , इंसान है तो आहत भी होता है जब अति होने लगती है तो कैसे खुद को सिर्फ अपने लेखन तक ही सिमित रख सकता है और जब विरोध करने लगता है तो उस पर भी आरोप प्रत्यारोप लगने लगते हैं कि ये फलानी पार्टी के हैं ये ढिमकानी पार्टी के जबकि वो विरोध कर रहा है तो अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए ताकि उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिल सके ऐसे में सारा साहित्यिक समाज भी साथ नहीं देता क्योंकि राजनीति की जड़ें काफी गहरे तक धंसी हैं . क्या ये सोचने वाली बात नहीं है कि राजनीति हर क्षेत्र में इस हद तक व्याप्त है कि कोई अपना स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकता और लेता है तो या तो मार दिया जाता है या आरोपित हो जाता है ? ये कैसा माहौल बन गया अचानक ? इतनी अराजकता पहले तो न थी तो अभी अचानक ऐसा क्या हुआ जो कोई भी खुद को कहीं सुरक्षित नहीं पा रहा ?
जरा सोचिये ............
बहुत बढ़िया चिंतनशील विचार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें