नहीं जानती
कैसे उठती है उमंग इस रिश्ते के लिए
नहीं जानती
कैसे इस रिश्ते की ऊष्मा से लबरेज
बाँध लेते हैं सारा प्यार
मोली के एक तार से
नहीं जानती
सारी दुनिया को कर दरकिनार
इस एक दिन
कैसे दौड़ पड़ती हैं बहनें भाइयों के लिए
और भाई बहनों के लिए
होकर आतुर किसी बच्चा जनी गाय की तरह
होकर विह्वल
कह सकते हैं
खून के रिश्तों से बढ़कर होते हैं उधार के रिश्ते
जाने क्यों फिर भी
नहीं उमगी कोई उमंग इनके लिए
कौन विश्वास के दामन में
कब अविश्वास की कील ठोंक दे
और मर्यादा की सीमारेखा लांघ दे ...नहीं पता
इसीलिए
उधार के रिश्तों से कभी दामन भरा नहीं
बस विश्वास और अविश्वास के मध्य ही झूलती रही
कभी न गा सकी वो गीत किसी के लिए
' भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना '
या फिर
' चंदा रे मेरे भैया से कहना , बहना याद करे '
कैसा होता है ये राखी का बंधन ....... नहीं जानती
क्योंकि
मेरा कोई भाई नहीं ..............
( कुछ सत्य स्वीकारने से ही मुक्ति पाया करते हैं )
प्यारा कनफेसन
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-08-2015) को "ये राखी के धागे" (चर्चा अंक-2083) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस पोस्ट को, २९ अगस्त, २०१५ की बुलेटिन - "रक्षाबंधन की शुभकामनायें" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
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