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रविवार, 2 अगस्त 2015

गर क्या हुआ

नहीं तैरती हैं मेरे पानी में जज़्बात की मछलियाँ 
जो ख्यालों के उलटने पुलटने से हो जाएँ घायल 

नहीं है मेरा पानी नीलवर्णी आकाश सा स्वच्छ 
जो तुम कर सको अपने अक्स से धूमिल 

नहीं हूँ मैं एक गूंजता हुआ अनहद नाद 
जिसकी गुंजार से हो उठो पुलकित आनंदित 

हर क्रिया प्रतिक्रिया से परे हूँ 
तभी तो 
हर प्रतिकार के बाद भी अस्तित्व में हूँ 
गर क्या हुआ 
जो मैं एक स्त्री हूँ ............

3 टिप्‍पणियां:

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