आज मुझे गुनगुनाना है दुनिया का हर एक गाना , जीना है जी भर के , कल हो न हो ........कहाँ से आये कहाँ है जाना ये सत्य भला कौन है जाना तो क्यों न जी ली जाए एक दिन में एक उम्र कि शिकायत न हो फिर खुदा से भी कोई .
अब इस पार और उस पार के फेर में कौन पड़े .........रात दोनों ही तरफ गहरी अंधियारी है और बीच में जो मिली है रौशनी की चार लकीरें तो क्यों न इस रौशन जहान से मोहब्बत कर लें .........वर्ना किसने कब क्या पाया , कोई न भेद जान पाया ..........इस पार उस पार की खोज करता रहा और वर्तमान को खोता रहा ...........मूल मकसद से ही भटक गया ..........क्या होगा जानकर उधर क्या ? जो है यही है खुली आँखों से जो दिख रहा है , बंद होते ही तो सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है ये जानते हैं फिर भी अदृश्य की खोज में लगे हैं.... न भविष्य से और न भूत से निकल रहे हैं बस इसी भूलभुलैया में घूम रहे हैं ये जानते हुए कि इस चक्कर में वर्तमान को भी खो रहे हैं .........तो क्या रहा औचित्य फिर जीवन का जब खाली ही हाथ रहा .......... न आगत का पता मिला न विगत का और जीवन के मध्यांतर को खोज के प्रांगण में बिता दिया ...........जैसा आया था वैसा ही चल दिया कसकता हुआ , रोता हुआ ...........
नहीं , मुझे नहीं गंवाना अपना अमूल्य क्षण इस तरह .............गुनगुनाना है आज हर वो गीत जो बना है और जो नहीं बना .............शायद बन जाए मेरा जीवन ही संगीत , किसी के प्रेम का मीत , कोई सांझी रीत , एक झबरीली प्रीत .............और कह उठूँ मैं एक दिन ..............पंछी बनूँ उडती फिरूं मस्त गगन में आज मैं आजाद हूँ दुनिया के चमन में .
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २५ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "लम्हे इंतज़ार के" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंक्या बात है!!
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