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सोमवार, 22 जून 2015

अभी बहुत दूर है दिन



रात्रि और सूर्योदय के मध्य की बेला में भी 
खिल जाया करते हैं जवाकुसुम 
गर हसरतों के ताजमहल पर 
जला दे कोई एक दिया 

भोर के तारे सी किस्मत 
अभिमंत्रित नहीं होती 
जो चाहतों के सोपानों तक ही सिमट जाए ज़िन्दगी 

यहाँ अँधियारा हो 
ऐसा भी नहीं है 
मगर फिर भी 
अभी बहुत दूर है दिन .............

5 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ अँधियारा हो
    ऐसा भी नहीं है
    मगर फिर भी
    अभी बहुत दूर है दिन ...........


    सुंदर।

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  2. बहुत सुन्दर ,मन को छूते शब्द ,शुभकामनायें और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर शब्द ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .!शुभकामनायें. आपको बधाई
    कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    जवाब देंहटाएं

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