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मंगलवार, 31 मार्च 2015

एक स्त्री का प्रश्न है ये ...........

एक मुद्दत हुई 
न अपना कोई धर्म बना पायी 
न ही अपनी कोई जाति 
जबकि पायी जाती है ये 
हर धर्म और जाति में 
क्योंकि संभव नहीं इसके बिना 
सृष्टि की संरचना 

जिसने जो धर्म बताया अपना लिया 
जिसने जो जाति बताई अपना ली 
जिसने जो घर बताया उम्र बिता दी 


उसका धर्म क्या है 
उसकी जाति क्या है 
ओ समाज के ठेकेदारों 
आओ उगलो उगलदानों में 
पीक अपने तालिबानी फतवों की 

क्योंकि एक मुद्दत से 
निष्कासित है वो 
घर , धर्म और जाति से 

एक स्त्री का प्रश्न है ये ...........

6 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक नारी खुद को निष्कासित नहीं करती वो है क्योंकि वो शक्ति है ... लड़ सकती है समाज से ... उसे लड़ना ही होगा अपने लिए ...

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  2. निकली है वो घर से , एक घर बनाने
    प्यार को समेटकर, समंदर बनाने
    ऐसी रमी वो , भूल गई , कौन थी वो
    पहचान अपनी भूलकर भी , मौन थी वो

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  3. अन्तर्राष्ट्रीय नूर्ख दिवस की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (01-04-2015) को “मूर्खदिवस पर..चोर पुराण” (चर्चा अंक-1935 ) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. परिस्थितियां बदल गयी हैं आदरणीया
    अब नारी और कमज़ोर नहीं है कोई उसे निष्काषित नहीं कर सकता

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  5. बिलकुल सही कहा आपने, नारी का अपना कुछ नहीं होता। जिस घर को सजाने में,संवारने में वो पूरी उम्र बिता देती है उसी घर में उसके नाम का कुछ भी नहीं होता।

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