ख़ामोशी चुप्पी मौन
इनका तुमने एक ही अर्थ लगाया
मगर कभी नहीं आँक पाए वास्तविक अर्थ
खामोशियों के पीछे जाने कितने तूफ़ान छुपे होते हैं
चुप्पी के पीछे जाने कितने चक्रवात चला करते हैं
मौन की आँधियों में भी शोर हुआ करते हैं
सावधान रहना , मत छेड़ना कभी
किसी के मौन को
किसी की ख़ामोशी को
किसी को चुप्पी को
क्योंकि
फिर कुछ नहीं बचेगा बचाने को
महज वहम है तुम्हारा ख़ामोशी चुप्पी और मौन पर्याय हैं विकल्पहीनता के
इनका तुमने एक ही अर्थ लगाया
मगर कभी नहीं आँक पाए वास्तविक अर्थ
खामोशियों के पीछे जाने कितने तूफ़ान छुपे होते हैं
चुप्पी के पीछे जाने कितने चक्रवात चला करते हैं
मौन की आँधियों में भी शोर हुआ करते हैं
सावधान रहना , मत छेड़ना कभी
किसी के मौन को
किसी की ख़ामोशी को
किसी को चुप्पी को
क्योंकि
फिर कुछ नहीं बचेगा बचाने को
महज वहम है तुम्हारा ख़ामोशी चुप्पी और मौन पर्याय हैं विकल्पहीनता के
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंपूर्णतया सह्मत हुं
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