करना चाहते हो तुम कुछ मेरे लिए
तो बस इतना करना
जब अंत समय आये तो
खुद से ना मुझे जुदा करना
किसी मसले कुचले अनुपयोगी
पुष्प सम ना मुझे दुत्कार देना
माना देवता पर चढ़ नहीं सकता
मगर किसी याद की किताब में तो रह सकता हूँ
इन सूखी मुरझाई टहनियों पर
अपने स्नेह का पुष्प पल्लवित करना
जब बसंतोत्सव मना रहे हों
कुसुम चहुँ ओर मुस्कुरा रहे हों
कर सको तो बस इतना करना
मुझ रंगहीन, रसहीन ठूंठ में भी
तुम संवेदनाओं का अंकुरण भरना
अपने स्नेह जल से सिंचित करना
अपनी सुरभित बगिया का
मुझे भी इक अंग समझना
संग संग तुम्हारे मैं भी खिल जाऊँगा
तुम्हारी नेह बरखा में भीग जाऊँगा
माना बुझता चिराग हूँ मैं
रौशनी कर नहीं सकता
मगर फिर भी मुझको
अनुपयोगी बेजान जान
देहरी पर ना रख देना
अपने प्रेम के तेल से
मुझमे नव जीवन भर देना
बुझना तो है इक दिन मुझको
पर जीते जी ना दफ़न करना
अपने नवजात शिशु सम मुझे भी
अपना प्यार दुलार देना
महाप्रयाण का सफ़र आसान हो जायेगा
तुम्हारा भी पुत्र ऋण उतर जायेगा
A wish of all elders.
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी!
जवाब देंहटाएंसहज अभिव्यक्ति की सुग्राह्यता से परिपूर्ण मन को विगलित करती रचना -साधु !
जवाब देंहटाएंसहज अभिव्यक्ति की सुग्राह्यता से परिपूर्ण मन को विगलित करती रचना -साधु !
जवाब देंहटाएंजीवन की संध्या में उमंग और स्नेह भर दे तो पुत्र का जीवन सार्थक
जवाब देंहटाएंहर ऐसी अभिलाषा पूर्ण हो !
Bhaawpurn prastuti !!
जवाब देंहटाएं