हाँ, आ गया हूँ
तुम्हारी दुनिया में
अरे रे रे ...........
अभी तो आया हूँ
देखो तो कैसा
कुसुम सा खिलखिलाया हूँ
देखो मत बाँधो मुझे
तुम अपने परिमाणों में
मत करो तुलना मेरे
रूप रंग की
अपनी आँखों से
अपनी सोच से
अपने विचारों से
मत लादो अपने ख्याल
मुझ निर्मल निश्छल मन पर
देखो ज़रा
कैसे आँख बंद कर
अपने नन्हे मीठे
सपनो में खोया हूँ
हाँ वो ही सपने
जिन्हें देखना अभी मैंने जाना नहीं है
हाँ वो ही सपने
जिनकी मेरे लिए अभी
कोई अहमियत नहीं है
फिर भी देखो तो ज़रा
कैसे मंद- मंद मुस्काता हूँ
नींद में भी आनंद पाता हूँ
रहने दो मुझे
ब्रह्मानंद के पास
जहाँ नहीं है किसी दूजे का भास
एकाकार हूँ अपने आनंद से
और तुम लगे हो बाँधने मुझको
अपने आचरणों से
डालना चाहते हो
सारे जहान की दुनियादारी
एक ही क्षण में मुझमे
चाहते हो बताना सबको
किसकी तरह मैं दिखता हूँ
नाक तो पिता पर है
आँख माँ पर
और देखो होंठ तो
बिल्कुल दादी या नानी पर हैं
अरे इसे तो दुनिया का देखो
कैसा ज्ञान है
अभी तो पैदा हुआ है
कैसे चंचलता से सबको देख रहा है
अरे देखो इसने तो
रुपया कैसे कस के पकड़ा है
मगर क्या तुम इतना नहीं जानते
अभी तो मेरी ठीक से
आँखें भी नहीं खुलीं
देखो तो
बंद है मेरी अभी तक मुट्ठी
बताओ कैसे तुमने
ये लाग लपेट के जाल
फैलाए हैं
कैसे मुझ मासूम पर
आक्षेप लगाये हैं
मत घसीटो मुझको अपनी
झूठी लालची दुनिया में
रहने दो मुझे निश्छल
निष्कलंक निष्पाप
हाँ मैं अभी तो आया हूँ
तुम्हारी दुनिया में
मासूम हूँ मासूम ही रहने दो न
क्यों आस के बीज बोते हो
क्यों मुझमे अपना कल ढूंढते हो
क्यों मुझे भी उसी दलदल में घसीटते हो
जिससे तुम न कभी बाहर निकल पाए
मत उढाओ मुझे दुनियादारी के कम्बल
अरे कुछ पल तो मुझे भी
बेफिक्री के जीने दो
बस करो तो इतना कर दो
मेरी मासूम मुस्कान को मासूम ही रहने दो............
NISHCHAL MANN KI TARAH SUNDAR
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंपंक्तियों के बीच अंतराल कम होने से पढ़ने में दिक्कत हो रही है... ठीक कर लें ...
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंपंक्तियों के बीच अंतराल कम होने से पढ़ने में दिक्कत हो रही है... ठीक कर लें ...
बच्चे की तरह मासूम।
जवाब देंहटाएंShishu kee Tarah Komal BHavabhivyakti ke Liye Badhaaee .
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है
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