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गुरुवार, 4 सितंबर 2014

तुम्हारे मेरे बीच

तुम्हारे मेरे बीच 
कभी कुछ था ही नहीं 
जो कह सकती मैं आज 
' हमारे बीच कुछ बचा ही नहीं '

देखा कितनी कंगाल रही 
हमारी , न न न मेरी मोहब्बत 
जो देवता की आस में 
सज़दे में सारी उम्र गुजार दी 

संवाद के स्थगित पल साक्षी हैं तुम्हारे और मेरे बीच कुछ न होने के 

12 टिप्‍पणियां:

  1. रचना सीधे दिल से निकली अनुभूतियाँ

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  2. सुन्दर रचना।
    मन के भावों को अच्छे शब्द दिये हैं आपने।

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  3. संवाद के स्थगित पल--
    भावपूर्ण-अभिव्य्क्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. संवाद न होने पर भी कुछ तो है जो इतना जोर देकर कहना पड़ा - कुछ नहीं है !
    अर्थपूर्ण!

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  5. संवाद न होने पर भी कुछ तो है जो इतना जोर देकर कहना पड़ा - कुछ नहीं है !
    अर्थपूर्ण!

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