तुम्हारे मेरे बीच
कभी कुछ था ही नहीं
जो कह सकती मैं आज
' हमारे बीच कुछ बचा ही नहीं '
देखा कितनी कंगाल रही
हमारी , न न न मेरी मोहब्बत
जो देवता की आस में
सज़दे में सारी उम्र गुजार दी
संवाद के स्थगित पल साक्षी हैं तुम्हारे और मेरे बीच कुछ न होने के
sundar kavita... hamesha ki tarah
जवाब देंहटाएंरचना सीधे दिल से निकली अनुभूतियाँ
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमन के भावों को अच्छे शब्द दिये हैं आपने।
सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंगुस्सा
गणपति वन्दना (चोका )
वाह
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबढिया कविता है.
जवाब देंहटाएंसंवाद के स्थगित पल---
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण
संवाद के स्थगित पल--
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण-अभिव्य्क्ति
संवाद के स्थगित पल---भावपूर्ण
संवाद न होने पर भी कुछ तो है जो इतना जोर देकर कहना पड़ा - कुछ नहीं है !
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण!
संवाद न होने पर भी कुछ तो है जो इतना जोर देकर कहना पड़ा - कुछ नहीं है !
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण!