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शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

आत्महत्या : कितने कारण (पुरस्कृत स्क्रिप्ट )





दोस्तों एक छोटी सी खुशखबरी :
देखिए वैसे तो आज तक कभी उस क्षेत्र में हाथ आजमाया नहीं मगर कोशिश भर की और वो सार्थक हुई तो आन्तरिक खुशी मिली तो सोचा सबसे साझा करूँ । पिछले दिनो बी एस एफ़ के महानिदेशक मनोहर बाथम द्वारा एक स्क्रिप्ट राइटिंग का आयोजन किया गया था जिसकी मैने सूचना लगायी थी तो सोचा एक बार हाथ आजमाया जाए और एक स्क्रिप्ट बनाकर भेज दी जबकि इस क्षेत्र की कोई जानकारी ही नहीं थी और उसमे आपकी इस दोस्त की स्क्रिप्ट को तीसरा स्थान मिला है साथ ही 2000 रुपयों द्वारा पुरस्कृत और प्रशस्ति पत्र द्वारा सम्मानित किया गया है । 

(दोस्तों इस में वार्तालाप और परिस्थितियों को चाहे जितना बडा रूप दिया जा सकता था मगर स्क्रिप्ट की सीमा को देखते हुए इतने में ही समेटना पडा ।) 

इस स्क्रिप्ट के बनने की भी एक कहानी है । सबसे पहले ये एक कहानी के रूप में थी जो आज से कम से कम 3-4 वर्ष पहले लिखी थी ब्लॉग पर जो पिछले दिनो कहानी पर हुयी कार्यशाला में पढी थी और वहाँ इस पर एक वृहद चर्चा हुई थी तो सुभाष नीरव जी ने कहा था कि चाहो तो इसमें संवाद बहुत ज्यादा भर सकती हो , इस विषय पर तो पूरा उपन्यास लिखा जा सकता है मगर वहाँ सबने इसे फ़ेसबुक के साइड इफ़ैक्ट के रूप में देखा था जबकि 3-4 वर्ष पहले जब लिखा था तब भी मेरा उद्देश्य सिर्फ़ आत्महत्या के छुपे हुए कारणों को दर्शाना था जिसके बारे में रास्ते मे आते हुए सुभाष नीरव जी को मैने बताया था और अब जब मौका मिला तो मैने उस कहानी को स्क्रिप्ट का रूप दे दिया क्योंकि विषय वो ही था जो मैं चाहती थी सब तक पहुँचे । 

आत्महत्या : कितने कारण
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मौत की भयाक्रांत छाया में पसरा कमरा
कमरे के बीचोंबीच जलता दीया और उसके आगे एक तस्वीर
सोच के अंधियारे में डूबी एक आकृति जिसकी आँख में आँसू के कतरे लहराते तो हैं मगर बाहर नहीं ढलकते …… सोच में डूबा अतीत में खो जाता  है

निशि : अकेलेपन की ऊब से परेशान कभी इस कमरे मे तो कभी उस कमरे मे उन्ही रखी चीजों को दोबारा रखती है तो कभी यूँ ही किसी मैगज़ीन के पन्ने पलटती है तो कभी इधर उधर यूँ ही टहलती है , एक बेचैनी को दर्शाती

बेटा ( तकरीबन 18 वर्ष का ) : माँ क्या हुआ इतनी बेचैन क्यों हो ?
निशि : बस कुछ नही समझ आ रहा कि क्या करूँ सब काम कर चुकी मगर फिर भी खाली हूँ ,खाली वक्त काटने को दौडता है , बेचैनी का सबब बताती है
बेटा : तो मैं आपको एक काम बताता हूँ जिसमें आपका मन भी लगा रहेगा और आप का वक्त भी आसानी से गुजर जाएगा
निशि : हाँ बताओ
बेटा : माँ , लीजिये मैने ये आपके लिए एक एकाउंट बना दिया है यहाँ आप अपने दोस्त बनाइये , उनसे बातें कीजिए , कहते हुए बात करते करते बेटे ने एक एकाउंट कम्प्यूटर पर बना निशि के आगे रख दिया ।
निशि आश्चर्यचकित सी : अरे मुझे कहाँ आता है चलाना और क्या बात करूँ किसी से  मैं तो किसी को जानती भी नहीं ।
बेटा : मैं आपको सब सिखा देता हूँ कैसे दोस्त बनाए जायें और बात की जाए और सब पल भर मे सिखा देता है । उनसे चाहे लिखकर चाहे वीडियो द्वारा चैट कर सकती हैं ।

दूसरे दिन :

जल्दी जल्दी घर के काम करती है और कम्प्यूटर पर बैठ जाती है  और उसी तरह बात चीत शुरु करती है जैसे बेटे ने बताया था । पहले तो डरते डरते बात शुरु करती है हैलो कैसे हैं आप क्या करते हैं मगर धीरे धीरे अभ्यस्त हो जाती है अगले कुछ दिनों में ही ।

एक दिन विडियो चैट पर :

मनोज : हैलो निशि जी
निशि : हाय
मनोज : कैसी हैं , क्या करती हैं आप ?
निशि : बढिया हूँ , हाउसवाइफ़ हूँ
मनोज : घर में कौन कौन है ?
निशि : दो बच्चे और मेरे पति
मनोज : क्या करते हैं वो और बच्चे
निशि : वो मिलिट्री में मेजर है और बच्चे कॉलेज जाते हैं
मनोज : इसका मतलब घर की जिम्मेदारियों से काफ़ी हद तक मुक्त हो गयी हैं आप ?
निशि : जी बस ऐसा ही समझ लीजिए
मनोज : तो खाली वक्त में क्या करती हैं ?
निशि : बस थोडा लिखना पढना और यहाँ चैट पर मित्र बना बात करना J
मनोज : तो हमें अपनी मित्रता सूची में जोडिए न
निशि : आपका स्वागत है

धीरे धीरे एक दिन में कितनी ही बार मनोज से बातें होने लगीं
फिर एक दिन :

मनोज : निशि एक बात कहूँ
निशि : हाँ कहो मनोज
मनोज : तुम बहुत ही सुन्दर हो
निशि : जानती हूँ
मनोज : सच निशि अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता मेरे मन में मेरी नीद पर सब पर तुमने अपना कब्जा कर लिया है
निशि : ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो मनोज
मनोज : सच निशि बहकी नही हकीकत कह रहा हूँ , बहुत अकेला हूँ , सब कुछ है फिर भी कोई अपना नहीं , एक तुम ही हो जो इतनी ज़हीन हो तभी तो तुमसे बात कर लेता हूँ , तुम केवल तन की नही मन से भी बहुत सुन्दर हो ।
निशि ( मुस्कुराते हुए ) : मनोज तुम अपनी हद पार कर रहे हो
मनोज : नहीं निशि सच तुम नहीं जानती तुम क्या हो मैने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है सुनोगी
निशि मंत्रमुग्ध सी : हाँ सुनाओ
मनोज : मेरी चाहत तुझे दुल्हन बना दूँ /तुझे ख्वाबों के सुनहले तारों से सजा दूँ/ तेरी मांग में सुरमई शाम का टीका लगा दूँ /तुझे दिल के हसीन अरमानों की चुनरी उढा दूँ / अंखियों में तेरी ज़ज्बातों का काजल लगा दूँ / माथे पर तेरे दिल में मचलते लहू की बिंदिया सजा दूँ / अधरों पर तेरे भोर की लाली लगा दूँ / सिर पर तेरे प्रीत का घूंघट उढा दूँ / मेरी चाहत तुझे दुल्हन बना दूँ

निशि आँख बंद किए मुस्कुराती हुयी इठलाती हुयी सुनती है और फिर कह उठती है
मनोज कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही । उफ़ मुझे तो पता ही नहीं चला कि कोई मुझे इस हद तक चाह सकता है
मनोज : तुम क्या जानो निशि तुम मेरे लिए क्या हो । मैं तुम्हें तुम से ज्यादा पढता हूँ और समझता हूँ देखना चाहती हो मेरी चाहत की इंतेहा तो सुनो
तेरे रूप के सागर में उछलती मचलती लहरों सी चंचल चितवन / जब तिरछी होकर नयन बाण चलाती है / ह्रदय बिंध- बिंध जाता है / धडकनें सुरों के सागर पर प्रेम राग बरसाती हैं / केशों का बादल जब लहराता है /सावन के कजरारे मेघ छा जाते हैं / अधरों की अठखेलियाँकमल पर ठहरी ओस सी बहका- बहका जाती हैं / क़दमों की हरकत पर तो मौसम भी थिरक जाते हैं / ऋतुओं के रंग भी बदल- बदल जाते हैं / रूप- लावण्य की अप्रतिम राशि पर तो चांदनी भी शरमा जाती है / फिर कैसे धीरज रख पाया होगा तुझे रचकर विधाता / कुछ पल ठिठक गया होगा और सोच रहा होगा / लय और ताल के बीच किसके सुरों में सजाऊँ इसे /किस शिल्पकार की कृति बनाऊँ इसे /किस अनूठे संसार में बसाऊँ इसे /किसके ह्रदय आँगन में सजाऊँ इसे /किस भोर की उजास बनाऊँ इसे /किस श्याम की राधा बनाऊँ इसे 

खुशी से पागल निशि मनोज की आँखों से खुद को देखने लगी , मनोज के ख्यालों में ही खोयी रहने लगी । अब तो फोन पर भी बातें होने लगीं । दिन पर दिन बीतते रहे और निशि की मोहब्बत परवान चढती रही । भूल गयी थी वो अपना घर संसार बस याद था तो सिर्फ़ अपना प्यार ।

और फिर एक दिन फोन पर :

निशि : मनोज कुछ सोचा तुमने हमारे बारे में ?
मनोज : क्या सोचना है ?
निशि : अब नहीं रहा जाता मनोज तुम्हारे बिना , अब तो हमें फ़ैसला लेना ही पडेगा
मनोज : अरे ये क्या सोचने लगीं तुम जो जैसा चल रहा है चलने दो । तुम्हें पता ही है मेरा भी परिवार है और तुम्हारा भी तो कैसे उन्हें छोड सकते हैं
निशि प्यार में पागल होते हुए बोली : अरे ये तो तुम्हें आगे बढने से पहले सोचना चाहिए था अब मैं तुम्हारे बिना एक पल नहीं रह सकती
मनोज : निशि मैं अपने परिवार को नहीं छोड सकता ऐसे ही रिश्ता चलाना चाहो तो चला सकती हो ( एक कटुता सी जुबान में भरते हुए बोला )
निशि : इसका मतलब  तुम्हारी वो सब बातें तुम्हारे लिए महज खेल भर थीं ? क्या तुम्हारा प्यार सच्चा नहीं इसका मतलब  तुम अब तक मेरी भावनाओं से खेल रहे थे
मनोज : तुम जो चाहे समझो मेरी तो तुम जैसी जाने कितनी दोस्त हैं अब सबको तो पत्नी का दर्जा नहीं दे सकता न

सकते में आ गयी निशि । उफ़ ये क्या हुआ । सिर पकड कर बैठ गयी और खुद से बातें करने लगी
उफ़ मुझे ये क्या हो गया था जो इस हद तक आगे बढ गयी जहाँ से वापस लौट्ना संभव नहीं और आगे जा नहीं सकती अब मैं क्या करूँ ? शायद मनोज ने मज़ाक किया हो दोबारा फोन मिलाती हूँ मगर फ़ोन कोई नही उठाता ।

निशि एकदम निढाल हो गयी और नर्वस ब्रेक डाउन का शिकार । गहरा मानसिक आघात लगा था ।

दूसरा दृश्य :

राजीव : डॉक्टर मैं बहुत मुश्किल से छुट्टी लेकर आया हूँ ऐसा क्या हो गया निशि को अचानक ?
डॉक्टर : आपकी पत्नी को लगता है कोई मानसिक आघात पहुँचा है और ऐसे में मरीज का यदि माहौल बदल  दिया जाए तो जल्दी ठीक हो जाता है ।

अगला दृश्य  -- शिमला में

निशि गुमसुम उदास सी दूर तक फ़ैली वादियों को देख रही थी जो उसी की तरह  नितांत अकेली थीं और अपनी घुटन अपनी पीडा किसी से कह  भी नहीं सकती थीं सोचने लगी क्या फ़र्क है उनमे और मुझमें । तभी उसकी दोस्त रिया का फ़ोन आता है
रिया : अरे निशि क्या हुआ ?
निशि : कुछ नहीं
रिया : देख सच सच बता हम बचपन की सहेलियाँ हैं एक दूसरे से कभी कुछ नही छुपाया । जरूर कोई गहरी बात है जो इस हद तक तुम्हारा ये हाल हुआ है
निशि फ़ूट फ़ूटकर रो पडती है फ़ोन पर ही
रिया : हिम्मत रख , रो ले और अपना सारा गुबार निकाल दे मुझे कहकर
निशि : सारी सच्चाई बता देती है
रिया : ओह निशि तू ये किस भ्रमजाल में फ़ंस गयी । ये दोगले मुखौटों का जंगल है जहाँ जो एक बार फ़ँस गया तो उसका यही हश्र होता है लेकिन शुक्र समझ तुझे जल्दी पता चल गया अब ध्यान से सुन , भूल जा ये सब और आगे बढ तेरी घर गृहस्थी है , समझ सकती हूँ अकेलापन कितना भयावह जंगल है जिससे लडना सबसे मुश्किल होता है उस पर पति भी सीमा पर देश की रक्षा में लगा हो और उसकी पत्नी उसके इंतज़ार में । आसान नहीं होता ये जीवन जानती हूँ कितनी मुश्किल से वक्त गुजरता होगा , एक साथी की कमी महसूस होती होगी फिर शरीर की भी अपनी जरूरतें हैं सब जानती हूँ मगर फिर भी यही कहूँगी जो हुआ उसे भूल जा और आगे बढ ।

निशि : नहीं रिया मैं खुद को माफ़ नहीं कर सकती । मैने उनको ही नही खुद को भी धोखा दिया है , मेरा सारा परिवार यही समझ रहा है मैं बीमार हूँ मगर यदि उन्हें ये सच्चाई पता चल जाए कि इस उम्र में आकर मैं गलत रास्ते पर निकल गयी हूँ तो क्या सोचेंगे ? क्या असर पडेगा मेरे बच्चों पर ? क्या फिर कभी मैं उन्हें उनके किसी गलत काम के लिए उन्हें कुछ कह सकूँगी ? नहीं रिया , मैं खुद से नज़रें नहीं मिला पा रही और राजीव से भी नहीं कह  पा रही ।

रिया : देख राजीव तुम्हें बहुत प्यार करता है और तेरे बगैर वो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी नही समझता तभी तो सीमा पर रहते हुए भी तेरा और बच्चों का ख्याल बना रहता है मेरे ख्याल से राजीव बहुत समझदार इंसान है तू उसे विश्वास में लेकर एक बार सब सच बता दे क्योंकि तूने कोई गुनाह तो किया नहीं सिर्फ़ बातें ही की हैं और बातों के माध्यम से कुछ भावनायें ही तो जन्मी हैं , वो देश का रक्षक एक बडे दिल वाला इंसान है , तुझे कुछ नहीं कहेगा बल्कि तेरी स्थिति समझेगा । वैसे भी इस तरह के आकर्षण हो जाया करते हैं इसके लिए तुम खुद को दोष मत दो और राजीव को विश्वास में लेकर सब सच कह दो तो आत्मग्लानि के बोझ से बाहर आ जाओगी

अगले दिन :

राजीव : निशि क्या बात है मुझे बताओ किस बात से तुम्हारा ये हाल हुआ ? कौन सा गम है जो तुम्हें खाए जा रहा है ? अगर मुझे बता दोगी तो कोई हल खोजेंगे , तुम जानती ही हो मुझे सीमा पर जाना होगा चाहकर भी ज्यादा रुक नहीं सकता और चाहता हूँ जाने से पहले तुम ठीक हो जाओ

निशि की हिम्मत जवाब देने लगी थी दिमाग की नसें खिंचने लगी थीं इसलिए हिम्मत करके आज सोचती है
आज मुझे कहना ही होगा सब सच राजीव से शायद तभी मुक्त हो पाऊंगी इस आत्मग्लानि से – सोचते हुए बोली

निशि : राजीव आज जो मैं तुम्हे बताऊँगी शायद तुम मुझे कभी माफ़ न कर सको लेकिन लगता है तुम्हें सच पता होना चाहिए । पहले तुम पूरी बात सुनना फिर अपनी प्रतिक्रिया देना । राजीव तुम तो सीमा पर रहते हो ज्यादातर , बच्चे कॉलेज और मैं घर में बिल्कुल अकेली । ऐसे में घर के सारे काम करने पर भी समझ न आता क्या करूँ तो रवि ने मुझे नैट पर चैट करना सिखाया और विडियो पर बात करना । (और उसके बाद निशि सारा घटनाक्रम बयाँ कर देती है )
राजीव देखो मै जानती हूँ मैने बहुत बडा गुनाह किया है और इसी वजह से मेरी ये हालत हुई है मगर तुम खुद सोचो एक स्त्री क्या करे आखिर , मुझे तो नैट की दुनिया की जानकारी ही नहीं थी इसलिए इस प्रलोभन में फ़ँस गयी मगर अब सोचती हूँ तो खुद से घृणा होती है कि कैसे मैं इतना नीचे गिर गयी , कहते हुए भरभरा कर रो पडती है

राजीव क्रोध से देखते हुए मुट्ठियाँ भींचते हुए चीख उठा : ओह  तो ये गुल खिलाए गये मेरे पीछे से । और क्या क्या करती रहीं , कहाँ कहाँ गुलछर्रे उडाए अपने आशिक के साथ । मैं तो यही सोचता रहा कि तुम बीमार हो मगर मुझे क्या पता था मेरी तो दुनिया ही बर्बाद हो चुकी है , जिस के विश्वास पर बेधडक मैं सीमा पर जाकर दुश्मनों के छक्के छुडा दिया करता था वो एक दिन मेरे ही विश्वास के परखच्चे उडा देगी ।
निशि : राजीव मुझे माफ़ कर दो जो चाहे सजा दे दो मैं सब सहने को तैयार हूँ मगर इस तरह नाराज मत हो , मैं सह नहीं पाऊँगी तुम्हारी नाराज़गी , तुम्हारी नफ़रत के साथ जीना दुश्वार हो जाएगा रोते हुए जमीन पर बैठ जाती है और राजीव बाहर निकल जाता है
इन्ही हालात में वापस आ जाते हैं दोनो

फिर एक दिन :
पलंग पर कागज़ फ़ेंकते हुए : देखो बहुत हो चुका अब मैं और सहन नहीं कर सकता मुझे भी मानसिक शांति चाहिए इसलिए चुपचाप बिना शोर मचाए इन पर दस्तखत कर दो क्योंकि मैं नहीं चाहता हमारे रिश्ते का मज़ाक बने  या बच्चों पर बुरा असर ।

निशि : क्या है ये ?
राजीव : खुद ही देख लो
निशि : तलाक के कागज़ देखते ही  निशि वहीँ कटे पेड़ सी गिर पड़ी. काफी देर बाद जब उसे होश आया तो वो खूब रोई , गिडगिडायी  , काफी माफ़ी मांगी राजीव से मगर राजीव ने उसकी एक ना सुनी.
राजीव : विश्वास की डोर बहुत ही कच्चे धागे की बनी होती है और एक बार यदि टूट जाये तो जुड़ना मुमकिन नही होता । अब हमारा अलग  हो जाना ही अच्छा है ।
निशि : बच्चों को क्या बताओगे ? क्या उनकी नज़रों में मुझे गिराना चाहते हो ? राजीव ऐसा मत करो और कोई सजा दे लो मगर  सब की नज़रों से गिरकर मैं जी नहीं पाऊँगी

मगर राजीव का फ़ैसला अटल था । और निशि के पास अपने किए पर  पछतावा करने के अलावा और कोई चारा नहीं था शीशे में अपना चेहरा नज़र नहीं आता बस  खुद से बडबडाते रहती और एक दिन इसी तरह बडबडाते हुए :

निशि : मैं कैसी झूठी मृगतृष्णा के पीछे भाग रही थी. रंग - रूप , धन -दौलत, ऐशो- आराम कोई मायने नहीं रखता जब तक अपना परिवार अपने साथ ना हो. परिवार के सदस्यों का साथ ही इंसान का सबसे बड़ा संबल होता है , उन्ही के कारण वो ज़िन्दगी की हर जंग जीत जाता है मगर आज  मैं  अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी जंग हार चुकी हूँ ये दिन तो हर औरत की ज़िन्दगी में आता है जब एक वक़्त वो अकेली पड़ जाती है मगर इसका ये मतलब तो नहीं ना कि हर औरत गलत राह पर चल पड़े ,मुझे भी अपने उस वक़्त का सही उपयोग करना चाहिए था , यदि उस वक्त का मैं  कुछ अपने जो शौक छूट गये थे उन्हें पूरा करने मे सदुपयोग करती तो आज मेरी ये दुर्दशा न होती । बेशक बच्चों को कुछ नहीं पता मगर राजीव की निगाहों में बैठी अविश्वास की लकीर ही जब सहन नहीं कर पा रही तो बच्चों की नफ़रत  कैसे सहन करूँगी  ।क्या जी पाऊँगी अपने परिवार के बिना ?क्या उनके बिना मेरा कोई अस्तित्व है ? ज़िन्दगी बोझ ना बन जाएगी?तब भी तो वो अकेलापन मुझ पर हावी हो जायेगा ?तब कहाँ जाऊँगी और क्या करूँगी  ? ( घबराती बिलबिलाती सी अर्ध विक्षिप्त की सी अवस्था में )
आने वाले दिनों और हालात के बारे में सोचते सोचते निशि ने बाल्कनी से कूदकर आत्महत्या कर ली और सबने समझा डिप्रैशन में थी इसलिये ये कदम उठा लिया । कोई न जान सका आत्महत्या के पीछे के मनोवैज्ञानिक कारण को एक आत्महत्या के पीछे जाने कितने कारण छुपे होते हैं जो परिदृश्य से हमेशा बाहर रहते हैं । जाने कितनी ज़िन्दगियाँ बर्बाद हो जाती हैं 

पुराने दृश्य पर आते हुए उसी कमरे में निशि की तस्वीर के सामने राजीव उससे बात करता हुआ :

निशि तुमने ये क्या किया । तुम्हारी मौत का जिम्मेदार सिर्फ़ मैं हूँ जो तुम्हें समझ नहीं सका । तुम रोती रहीं गिडगिडाती रहीं मगर उस वक्त न जाने मुझ पर क्या क्रोध सवार था जो मैने तुम्हारी एक नहीं सुनी । हम सेनानियों के पास शायद दिल होता ही नहीं या होता है तो सिर्फ़ पत्थर जो सिर्फ़ गोलियों की आवाज़ ही सुनता है जो नहीं पिघलता सामने पडी लाश को तडपते देखकर भी तो कैसे समझ सकता था तुम्हारी स्थिति क्योंकि हमें तो यही सिखाया जाता है कि कलेजे पर पत्थर रखकर  बिना भावनाओं में बहे अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए अपने देश की रक्षा करनी है इसलिए जान ही नहीं पाते कि क्या होगी एक अकेली स्त्री की पीडा । आज तुम्हारे जाने के बाद अहसास हो रहा है कि कैसे तुम अपना वक्त गुजारती होंगी जिसमें कोई आस नहीं , कोई ऐसा नहीं जिससे अपने मन तन की कह सको , आज समझ  आ रहा है कि कुछ जरूरतें तुम्हारी भी होती होंगी जैसे पुरुष की होती हैं वैसे ही स्त्री की भी तो होती हैं और तुम उनसे भी लडती होंगी । हम पुरुष तो फिर भी इधर उधर मुँह मार लेते हैं फिर भी गुर्राते फ़िरते हैं मगर  स्त्रियाँ ऐसा कदम  जल्दी से नहीं उठातीं । और ऐसे में यदि कोई उनकी ज़िन्दगी में आ जाए तो समझ नहीं पातीं उसका मकसद और बहाव में बह जाती हैं क्योंकि उस पल वो बहुत अकेली होती हैं ( रोते हुए ) मैं क्यों भूल गया , मैं क्यों नहीं समझा तुम्हारी तकलीफ़ , नहीं निशि मैं इस दुनिया में रहने लायक नहीं जो एक स्त्री की रक्षा न कर सका , उसके मन को उसकी स्थिति को न समझ सका उसे क्या हक है जीने का । जाने किस दंभ में जी रहा था कि मैं वो सिपाही हूँ जो अपनी भारतमाता की रक्षा में सदैव तत्पर हूँ मगर मैं ज़िन्दगी की सबसे बडी जंग हार गया तो कैसे जाकर मुँह दिखाऊं अपनी भारत माता को । तुम्हारा दोष इतना बडा भी नहीं था जिसे माफ़ न किया जा सके मगर जाने मेरी सोचने समझने की शक्ति को क्या हुआ था जो आज अपने जीवन के अनमोल रतन को खो बैठा । मुझे माफ़ कर दो निशि अगर हो सके तो , अब नहीं रह सकता तुम्हारे बिना क्योंकि ये एक ऐसा गुनाह है जिसका कोई प्रायश्चित नहीं तुम्हें आत्महत्या के लिए मैने ही तो मजबूर किया तुम्हारे आगे कोई भी रास्ता न छोडकर तो कैसे खुद से आँख मिलाऊँ ? माफ़ कर दो निशि , माफ़ कर दो निशि कहते कहते चीजें उलटता पलटता है कमरे की और अपनी बन्दूक निकालकर कनपटी पर लगा ट्रिगर दबा देता है ।


वन्दना गुप्ता 

7 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह , बहुत अच्छा लिखा है . सच में . बुहत बधाई .

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  2. क्या लिखूं दी ..निशब्द हूँ ...ये एक सच्चाई लिखी है आपने ...बहुत बधाई आपको

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  3. bahut achchhi kahani hai,shuru karne ke baad ant tah tak padhne ko ji karta hai,

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  4. बधायी हो।
    --
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. दिल को छू लेने वाली रचना.. आपके कलम का जादू

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  6. vakai behatarin.... marmik chitran... badhai ho apko is rachna k liye aur iski wajah se mile samman k liye

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