अन्दर ही अन्दर सुलग रहे हैं
कुछ कर न पाने की बेबसी डँस रही है
या खुदा तेरी ये विनाशलीला देख
तुझी पर इल्ज़ाम रखने को मचल रहे हैं
रविवार रात से दिल बहुत उदास हो गया जब से न्यूज सुनी कि 24 बच्चे व्यास में बह गये और कल से न नींद न चैन सुबह से न्यूज ही सुन रही थी और सोच सोच परेशान हो रही थी कि कैसी कुदरत की लीला है या कहूँ कैसा प्रशासन का तंत्र है कि एक पल में 24 घरों के चिराग बुझा दिए सिर्फ़ एक लापरवाही से , अब कौन जिम्मेदार होगा इसका ? और यदि अब जिम्मेदारी उठा भी लें तो क्या लौट आयेंगे उनके घर के चिराग ? यदि समय रहते सूचित किया गया होता तो ये भयानक हादसा टल सकता था , जाने क्या बीत रही होगी उनके परिवारों पर , कैसे एक एक पल भारी हो रहा होगा सोच सोच के ही हाल बेहाल हुआ जा रहा है तो उनका क्या हो रहा होगा ये तो हम समझ भी नहीं सकते ……20 साल के बी टैक के बच्चे ……उफ़्फ़ ! कल से यही दुआ कर रही हूँ कि हे ईश्वर ! कैसे भी करके वो बच्चे बच जायें क्योंकि एक वो ही कोई चमत्कार कर सकता है और जो बच्चे बह गये हैं उन बच्चों को बचा सकता है जबकि उम्मीद कम होती जा रही है मगर उसी पर विश्वास है शायद कुछ बच जायें ……
आखिर क्या दोष था उन नौनिहालों का ? क्या पढाई के स्ट्रैस से मुक्ति पाने को थोडा सा मनोरंजन करना गुनाह है ? आखिर क्यों हुआ ये सब ? कौन जिम्मेदार है ? अब ये प्रश्न बेमानी लगते हैं ………बस अब तो पीछे छुटे लोगों के गम बडे लगते हैं कैसे ज़िन्दगी को गुजारेंगे ? हो सकता है किसी का सिर्फ़ एक ही बच्चा हो , सोच कर ही दिल काँप उठता है , कैसे पहाड सी ज़िन्दगी गुजारेंगे वो? और दूसरी तरफ़ किसी को फ़र्क नहीं पड रहा क्या सरकार क्या प्रशासन , संसद मौन है क्योंकि उसका अपना कोई नहीं गया , दो मिनट का शोक तक नहीं रखा गया , इतनी संवेदनहीनता दर्शाती है अब नहीं बचे संस्कार , नहीं रहा कोई सरोकार ………जाने किसके सहारे जी रही है जनता ? क्या सिर्फ़ विकास का मंत्र ही काफ़ी है ? क्या ऐसे विकास का कोई औचित्य है जहाँ जनता की ही परवाह न हो वो मरती है तो मरे हम विकास के नाम की माला जपेंगे बस और इसी नाम पर वोट बैंक भरेंगे ……आखिर कहाँ खो गयी है मानवता और इंसानियत ……सोच में हूँ !!!
कुछ कर न पाने की बेबसी डँस रही है
या खुदा तेरी ये विनाशलीला देख
तुझी पर इल्ज़ाम रखने को मचल रहे हैं
रविवार रात से दिल बहुत उदास हो गया जब से न्यूज सुनी कि 24 बच्चे व्यास में बह गये और कल से न नींद न चैन सुबह से न्यूज ही सुन रही थी और सोच सोच परेशान हो रही थी कि कैसी कुदरत की लीला है या कहूँ कैसा प्रशासन का तंत्र है कि एक पल में 24 घरों के चिराग बुझा दिए सिर्फ़ एक लापरवाही से , अब कौन जिम्मेदार होगा इसका ? और यदि अब जिम्मेदारी उठा भी लें तो क्या लौट आयेंगे उनके घर के चिराग ? यदि समय रहते सूचित किया गया होता तो ये भयानक हादसा टल सकता था , जाने क्या बीत रही होगी उनके परिवारों पर , कैसे एक एक पल भारी हो रहा होगा सोच सोच के ही हाल बेहाल हुआ जा रहा है तो उनका क्या हो रहा होगा ये तो हम समझ भी नहीं सकते ……20 साल के बी टैक के बच्चे ……उफ़्फ़ ! कल से यही दुआ कर रही हूँ कि हे ईश्वर ! कैसे भी करके वो बच्चे बच जायें क्योंकि एक वो ही कोई चमत्कार कर सकता है और जो बच्चे बह गये हैं उन बच्चों को बचा सकता है जबकि उम्मीद कम होती जा रही है मगर उसी पर विश्वास है शायद कुछ बच जायें ……
आखिर क्या दोष था उन नौनिहालों का ? क्या पढाई के स्ट्रैस से मुक्ति पाने को थोडा सा मनोरंजन करना गुनाह है ? आखिर क्यों हुआ ये सब ? कौन जिम्मेदार है ? अब ये प्रश्न बेमानी लगते हैं ………बस अब तो पीछे छुटे लोगों के गम बडे लगते हैं कैसे ज़िन्दगी को गुजारेंगे ? हो सकता है किसी का सिर्फ़ एक ही बच्चा हो , सोच कर ही दिल काँप उठता है , कैसे पहाड सी ज़िन्दगी गुजारेंगे वो? और दूसरी तरफ़ किसी को फ़र्क नहीं पड रहा क्या सरकार क्या प्रशासन , संसद मौन है क्योंकि उसका अपना कोई नहीं गया , दो मिनट का शोक तक नहीं रखा गया , इतनी संवेदनहीनता दर्शाती है अब नहीं बचे संस्कार , नहीं रहा कोई सरोकार ………जाने किसके सहारे जी रही है जनता ? क्या सिर्फ़ विकास का मंत्र ही काफ़ी है ? क्या ऐसे विकास का कोई औचित्य है जहाँ जनता की ही परवाह न हो वो मरती है तो मरे हम विकास के नाम की माला जपेंगे बस और इसी नाम पर वोट बैंक भरेंगे ……आखिर कहाँ खो गयी है मानवता और इंसानियत ……सोच में हूँ !!!
सचमुच ये हादसा उन परिवारों से खुशियाँ छीन ले गया। और सरकारी हलको में बेपर्वाही भरी है। अब तो बस ईश्वर उन परिवारों को हिम्मत दे इस दुःख को सहने की।
जवाब देंहटाएंसुरक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं देता...एक घटना घाटी जाँच आयोग और कुछ सस्पेंशन...पर सीखना कुछ नहीं...सतर्कता हमें बचपन से सिखाई जानी चाहिये...हममें से कितने हेलमेट और सीट बेल्ट का प्रयोग करते हैं...दूरदर्शन पर एक एड आता था ज़िंदगी में रीटेक नहीं होता...
जवाब देंहटाएंदर्दनाक और अत्यंत दुख:द हादसा ।
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