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मंगलवार, 19 नवंबर 2013

बालार्क की दूसरी किरण


बालार्क की दूसरी किरण ज्योति खरे :

कवि की वास्तविक पहचान उसका लेखन होता है और उसका सबूत ज्योति खरे ने "आसमान , तुम चुप क्यों हो " नामक कविता के माध्यम से दिया है कि इंसान की इंसानियत के प्रति की गयी वादाखिलाफी एक दिन उसके सीने में जब शूल सी चुभती है तो कर देता है दोषारोपण खुद को मुक्त करने के लिए , बेसाख्ता उठा  देता है सवाल तुम चुप क्यों हो इन दुश्वारियों पर जो हर इंसानियत के पैरोकार को सोचने पर मजबूर कर देता है। 

"चिड़िया " कविता मानव के जाने कितने सपनो का चित्रण है जो उम्मीद की चिड़िया के पंखों पर उड़ान भरता है और निर्द्वन्द सा विचरता है शायद तभी उम्मीद पर दुनिया कायम है। 

ज़िन्दगी कितनी है कौन जानता है तो क्यों ना कुछ सत्यों को सहेजा जाए , कुछ ज़िन्दगी की खुश्गवारियों को चुना जाए , कुछ पल जो खिलखिलाते तो हैं आस पास मगर हैम नज़रअंदाज़ कर जाते हैं ऐसे में हमें चाहिए कि उनमे से थोड़ी से ख़ुशी की रोशनाई सहेज ली जाए तो जीवन सिर्फ दर्द की तहरीर ही नहीं बना रहता बल्कि एक खूबसूरत यादों की तस्वीर भी साथ साथ चलती है जो ज़िंदादिली कायम रखती है बस इतना सा तो कहना है कवता " पर अभी कुछ सत्य कह लें " का। 

पिता की यादों को समर्पित कविता " पापा अब " इस रिश्ते की ऊष्मा और गरिमा दोनों को सहेजती है वो सब देखती है जो सामने घटित हो रहा है मगर बेबसी की शाखें भी इर्द गिर्द होने का अहसास करा रही हैं।  संवेदनाओं से भरपूर रचना मन पर दस्तक देती है। 

गाँव के परिदृश्य को समेटती कविता " लौट चलो " की स्पन्दन्ता वो ही महसूस कर सकता है जो बिछड़ा हो अपने मूल से और कभी आ गया हो कुछ पल सहेजने……… अनुभव को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना और कल और आज के स्वरुप को इंगित करना ही इसकी विशेषता है। 

" सूख रहे आँगन के पौधे " नाम के अनुरूप आज के यथार्थ को चित्रित करती है जो हर घर की कहानी है , कैसे स्वार्थपरता और संवेदनहीनता ने रिश्तों को खोखला कर दिया है और जो इंसान के लहू में दीमक सी घुस गयी है जब तक खोखला ना करे छोड़ती ही नहीं।  

ज़िन्दगी के अनुभवों और सच्चाइयों को कोई सच्चा कवि जब महसूसता है तो रोके नहीं रुकता , कलम के माध्यम से छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी समस्या पर अपनी चिंताओं के फूल रख देता है कुछ ऐसी ही दीवानगी है ज्योति खरे के लेखन में जो हर पहलू पर दृष्टिपात करती है फिर समस्या देश की हो , समाज की या पारिवारिक सब पर उनकी कलम बराबर असर करती चलती है यही तो एक कवि के लेखन की , उसके मौन की मुखर अभिव्यक्ति होती है।  

मिलती हूँ अगले कवि के साथ :

6 टिप्‍पणियां:

  1. लाज़वाब...बहुत उत्कृष्ट समीक्षा...

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  2. ज्योति खरे जी को लगातार पढता हूँ ... उनकी संवेदनशीलता मन को छूती है ...
    अच्छी समीक्षा कड़ी है ...

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  3. बहुत ही सटीक और बेहतरीन समीक्षा.

    रामराम.

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  4. बहुत बढ़िया समीक्षा है वन्दना जी ! आपकी समीक्षा के माध्यम से कवि और कविता के अनन्य सम्बन्ध को समझने में बड़ी सहायता मिलती है ! सार्थक एवँ सराहनीय प्रयास के लिये साधुवाद !

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