१ )
मेरे मन की मधुशाला का
जो एक घूँट तुम भर लेते
फिर चाहे उम्र भर होश में ना आते
इक जीवन तो हम जी लेते ..........प्रिये !
२ )
मेरे तन के घाट पर
जो तुमने शाहकार गढ़ा
जीवन की मधुशाला में
उसे अंतिम पड़ाव मिला ...............प्रिये!
३ )
नैनों के द्वारे से कभी
जो उतरे होते निर्जन मन में
वीराने भी गुलज़ार होते
जो हाथ में हमारे हाथ होते ..........प्रिये !
४ )
देह की प्यास पर तुमने गर
तरजीह जो ह्रदय को दी होती
रूह की मधुशाला तुम्हारी
लबालब भर गयी होती ...........प्रिये !
५ )
फिर न लफ़्ज़ों के मोहताज होते
जो ककहरा प्रेम का पढ़ लेते
फिर मधुशाला की एक ही घूँट में
मौन की भाषा भी तुम गुन लेते ........प्रिये !
६ )
अधूरी अबूझी प्यास से
न कदम तुम्हारे बोझिल होते
जो मेरे मन की मधुशाला के
तुम सजग प्रहरी होते ................प्रिये !
७ )
दो तन दो मन दो प्राण का
जो एक एक घूँट हम भर लेते
फिर न द्वी के परदे में
जीवन हमारे ढके होते ............प्रिये !
८ )
अपने एकांतवास से तुम
जो बाहर निकले होते
हम की निर्झर मधुशाला में
जीवन हमारे संवर गए होते ...........प्रिये !
९ )
गर अहम् की मीनारों के
जो बुर्ज न इतने ऊंचे होते
फिर तो मधुशाला के रस में
मन रसायन हो गए होते ......प्रिये !
१ ० )
भोर की उजली धूप में
जो कुछ देर ठहरे होते
तुम और मैं के बोझ तले दबे
समीकरण सारे बदल गए होते ..........प्रिये !
१ १ )
घट भर भर कर पीया होता
जो जाम न तेरा छलका होता
फिर तो मधुशाला के मधु से तर
तेरा रोम रोम हुआ होता ............प्रिये !
१ २ )
गर एक कोशिश की होती
जो अपना सर्वस्व माना होता
फिर मेरे मन की मधुशाला तक
आना न था कठिन ......... प्रिये !
१ ३ )
खुद को न्योछावर करने की
जो दलीलें थोपी थीं कल तुमने
गर उन पर खुद भी चले होते
फिर डगर कठिन न थी मधुशाला की .........प्रिये !
१ ४ )
इक बार सिर्फ मेरे हो गए होते
जो दो घडी संग जी गए होते
प्रेम की मधुशाला पर कुर्बान
फिर मेरे मन की मधुशाला हो गयी होती ..........प्रिये !
१ ५ )
तुम न फिर तुम रहे होते
मैं न फिर मैं रही होती
इक दूजे में समायी हमारे
मनों की मधुशाला होती ........प्रिये !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कल 10/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रेम का गहरा एहसास लिए ... सुन्दर मन की मधुशाला ..
जवाब देंहटाएंवाह जी सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंमन कि सुन्दर मधुशाला...
:-)
bahut sunder madhushala
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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