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बुधवार, 19 जून 2013

पल पल सुलग रही है इक चिता सी मुझमें

पल पल सुलग रही है इक चिता सी मुझमें ………मगर किसकी ………खोज में हूँ 
पल पल बदल रहा है इक दृश्य सा मुझमें …………मगर कैसा …………खोज में हूँ 
पल पल बरस रहा है इक सावन सा मुझमें ………मगर कौन सा ………खोज में हूँ 

बुद्धिजीवी नहीं जो गणित के सूत्र लगाऊँ 
अन्वेषक नहीं जो अन्वेषण करूँ 
प्रेमी नहीं जो ह्रदय तरंगों पर भावों को प्रेषित करूँ 

और खोज लूं दिग्भ्रमित दिशाओं के पदचिन्ह 
इसलिए 
सुलग रही है इक चिता मुझमे जिसके 
हर दृश्य में बरसते सावन की झड़ी 
कहती है कुछ मुझसे ...........मगर क्या ..........खोज में हूँ 

और खोज के लिये नहीं मिल रहा द्वार 
जो प्रवेश कर जाऊँ अंत: पुर में और थाह पा जाऊँ 
सुलगती चिता की , बदलते दृश्य की , बरसते सावन की 

14 टिप्‍पणियां:

  1. Bhavpurna aur gahri kavita.sunder ati sunder.
    jaiprakash purohit

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  2. ये खोज निरंतर जारी रहती है ... क्योंकि अपने अंदर की खोज नहीं हो पाती जहां होता है ये सब ...

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  3. सुन्दर - सार्थक अभिव्यक्ति

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  4. बहुत ही सुंदर रचना.अंतर की खोज हमेशा जारी रहती है, शुभकामनाये

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  5. इस खोज के लिए प्रयास जारी रहना चाहिए ॥

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. अपने प्रयासों में कमी ना होने देना हमारे हाथ में है. फल ईश्वर के हाथ में छोड़ देना चाहिये.

    बहुत सुंदर विचार और प्रस्तुति.

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  8. इस खोज का कोई अंत नहीं है. प्रभावी रचना

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आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया