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सोमवार, 4 मार्च 2013

मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं

मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं
कौन सुनेगा और समझेगा क्यों उदास हूँ मैं

ना जाने कौन सी बर्फ़ जमी है
जो ना पिघली है ना रिसी है
कोई धधकता अलाव जला लो कि उदास हूँ मैं

ये जो दर्द की पोरे रिसती है

रस्सी की ऐंठन सी अकडती हैं
कोई इस दर्द को थोडा और पका दो कि उदास हूँ मैं


दिल की फ़टती बेचैनियों को समझा दो
मुझे मेरे रब से इक बार मिला दो
कोई अश्क मेरी आँख से ढलका दो कि उदास हूँ मैं

………किससे कहूँ ? कौन सुनेगा और समझेगा क्यों उदास हूँ मैं

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति वंदना जी,सादर आभार.

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  2. बहुत ही खूबसूरत भाव , बेहतरीन काव्य का नमूना बधाई

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  3. ये उदासी भी तो कुछ दे ही जाती है..

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  4. दिल से निकली आह!
    जब भी हुआ उदास मैं
    तुम बहुत याद आये ...
    शुभकामनायें!

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  5. ..बहुत ही भावपूर्ण रचना...बधाई वन्दना जी!

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  6. सपनों को हौले हौले बहने दें, हम मानव हैं।

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  7. वाह वंदना जी क्या बात है इन शब्दो ने समां बांध दिया

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  8. bahut sundar bhav...
    दिल की फ़टती बेचैनियों को समझा दो
    मुझे मेरे रब से इक बार मिला दो
    nari ka virah shrangar...bahut khoob

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  9. जादू कि जफ्फी बहुत काम करती है जी

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  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|

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  11. वाह ........"समझने वाला समझ ही लेगा क्यों उदास हो तुम"

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  12. यूँ उदास नहीं होते....दोस्तों से दिल की बात कह कर देखो ।

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  13. यह उदासी कुछ समय 'अपने' साथ बिताने का भी मौका देती है ....है न ...!!!! ....

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  14. शुक्रिया वंदना मेरी कविता को पसंद करने के लिए
    आपकी ये नज़्म पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए . प्रेम के कई शेड्स है इसमें. शब्द भावपूर्ण है .और सच तो यही है कि उदासी अपनी होती है और ईसिस उदासी में बहुत कुछ रच जाता है .

    विजय
    www.poemsofvijay.blogspot.in

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  15. उदासियों के सिले से निकल और भी जिन होगा,
    ज़िन्दगी अभी तू बहुत बाकी है,यह भी सोचना होगा

    एक अच्छी नज्म,

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  16. दिल की असमंजस भरी मौन व्यथा , कोई अपना ही समझ सकेगा |सुन्दर कविता हर मोड़ को इंगित कराती | बधाई

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  17. उदासियों का हक भी बनता है कई बार जिंदगी पर...

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