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बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

तेरी हसरत, तेरी कसम मेरी जाँ लेकर जायेगी

मेरी नज़रों के स्पर्श से 
नापाक होती तेरी रूह को
करार कैसे दूँ 
बता यार मेरे 
तेरी इस चाहत को
"कोई होता जो तुझे तुझसे ज्यादा चाहता"
इस हसरत को 
परवाज़ कैसे दूँ

तुझे तुझसे ज्यादा 
चाहने की तेरी हसरत को
मुकाम तो दे दूँ मैं
मगर
तेरी रूह की बंदिशों से
खुद को 
आज़ाद कैसे करूँ यार मेरे
प्रेम के दस्तरखान पर
तेरी हसरतों के सज़दे में
खुद को भी मिटा डालूँ
मगर कहीं तेरी रूह
ना नापाक हो जाये
इस खौफ़ से 
दहशतज़दा हूँ मैं
अस्पृश्यता के खोल से 
तुझे कैसे निकालूँ
इक बार तो बता जा यार मेरे
फिर तुझे 
"तुझसे ज्यादा चाहने की हसरत" पर
मेरी मोहब्बत का पहरा होगा
तेरे हर पल 
हर सांस 
हर धडकन पर
मेरी चाहत का सवेरा होगा
और कोई 
तुझे तुझसे ज्यादा चाहता है 
इस बात पर गुमाँ होगा
बस एक बार कसम वापस ले ले
"अस्पृश्यता"  की
वादा करता हूँ
नज़र का स्पर्श भी
तेरे अह्सासों को
तेरी चाहत को
तेरी तमन्नाओं को
मुकाम दे देगा
तेरी रूह की बेचैनियों को
करार दे देगा
तेरे अन्तस मे 
तुझे तू नही
सिर्फ़ मेरा ही 
जमाल नज़र आयेगा
कुछ ऐसे नज़रों को
तेरी रूह में उतार दूँगा
और मोहब्बत को भी
ना नापाक करूँगा
मान जा प्यार मेरे
वरना
तेरी हसरत, तेरी कसम
मेरी जाँ लेकर जायेगी ……………

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. मुहब्बत का ऐसा भी इकरार .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. रूह की गहराइयों से निकले बहुत सुन्दर अहसास... आभार वंदना जी

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  4. आप तो अतुकान्त रचनाओँ की मलिका हो!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन. बहुत सुन्दर .

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  6. लाजबाब इकरार मोहब्बत का,,,,खूबशूरत प्रस्तुति ,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  7. BAHUT KHOOB"तेरी रूह की बंदिशों से खुद को आज़ाद कैसे करूँ यार मेरे>>>>>>>>>>>>>>"

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