पृष्ठ

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

इसलिये आखिरी नहान कर लिया है मैने



1)
देखो ना

आज जरूरत थी मुझे
चादर बदलने की
रंगों से परहेज़ जो हो गया है और तुम
इबादत के लिये माला ले आये
तुलसी की तुलसी के लिये
क्या अपना पाऊँगी मैं
तुम्हारे रंगों की ताब को
जो बिखरी पडी है
शीशम सी काली देह पर
जिसको जितना छीलोगे
उतनी स्याह होती जायेगी
यूँ भी ओस मे भीगे बिछोनों पर कशीदाकारी नही की जाती
फिर कैसे अल्हडता की डोरियों को साँस दोगे
जो हाँफ़ने से पहले एक ज़िरह कर सके
अब यही है तुम्हारी नियति शायद
उम्र भर का जागरण तो कोई भी कर ले
तुम्हें तो जागना है मेरी रुख्सती के बाद भी
पायलो को झंकार देने के लिये
घुंघरूओं का बजना सुना है शुभ होता है
.........

2)
आह! …………
कितनी बरसात होती रही
और चातक की ना प्यास बुझी
बस यही अधूरापन चाहिये मुझे
नही होना चाहती पूरा
जानते हो ना
पूर्णता की तिथि मेरी जन्मपत्री मे नही है
वैसे भी देह के आखिरी बीज पर
एक रिक्तता अंकित रहती है अगली उपज के लिये
फिर क्यों ट्टोलते हो खाली कनस्तरों मे इश्क के चश्मे
क्योंकि कुछ चश्मे ख्बाहिशों की रोशनाई के मोहताज़ नही होते
कभी डूबकर देखना भीगे ना मिलो तो कहना
पीठ पर मेरी उंगलियों की छाप मेरे होने का प्रमाण देगी
यहाँ प्यासों के शहर बारिशों के मोहताज़ नही होते............


3)
नमक वाला इश्क यूँ ही नही हुआ करता
एक कंघी, कुछ बाल और एक गुडिया तो चाहिये 

कम से कम  जिसकी तश्तरी मे
कुछ फ़ांक हों तरबूज़ की और कुछ फ़ांक हों मासूमियत की
डाल कर देखना कभी तेल सिर मे
आंसुओं के बालों मे तरी नही होगी, कोइ वट नही होगा
होगा तो बस सिर्फ़ और सिर्फ़ एक नमकीन अहसास
जो खूबसूरती का मोहताज़ नही होता ,
जो उसकी रंगत पर कसीदे नही पढता
बस इबादत करता है और ये जुनून यूँ ही नही चढता
इश्क की मेहराबदार सीढियाँ
देखा ना कितनी नमकीन होती हैं
दीवानगी की चिलम फ़ूँकना कभी मौसम बदलने से पहले


4)
इश्क की सांसों पर थिरकती हर महज़बीं
मीरा नही होती , राधा नही होती
और मैं आज भी खोज मे हूँ
उस नीले समन्दर मे खडे जहाज की
जिसका कोई नक्शा ही नहीं
सिर्फ़ लहरों की उथल पुथल ही पुल बन जाती है
धराशायी मोहब्बत के फ़ूलों की
जिसकी चादर पर पैर रख
कोई आतिश जमीन पर उतरे और खोल मेरा सिमट ले …………



5)

मोहब्बत के कोण
त्रिआयामी नही हुआ करते 

जिसे कोई गणित सुलझा ले
और नयी  प्रमेय बना दे

इसलिये आखिरी नहान कर लिया है मैने
अब मत कराना स्नान चिता पर रखने से पहले
............

21 टिप्‍पणियां:

  1. सामाजिक और मानसिक कशमकश की सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी रचनाएँ स्तब्ध करती हैं वंदना.....

    सचमुच लाजवाब..

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही गहन भाव लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. एक एक भावों का मोड़ अति प्रभावशाली

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह....
    आखिरी स्नान....!!
    तन...मन...भावनाओं....संवेदनाओं...प्रेम.....मर्यादाओं....!
    सभी का एक साथ....!!

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रभाव पूर्ण सुंदर प्रस्तुति,,,,
    दुर्गा अष्टमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें *

    RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह वन्दना जी!
    रचना में 'भौतिक वाद'का विरोध दिखता है |
    'प्रगतिवाद' में एक नया बोध दिखता है ||

    जवाब देंहटाएं
  8. रचना में 'भौतिकवाद का विरोध है |
    'प्रगतिवाद' में एक नया वोध है ||

    जवाब देंहटाएं
  9. रचना में,'भौतिकवाद का विरोध दिखता है |
    'प्रगतिवाद' में एक नया बोध दीखता है ||

    जवाब देंहटाएं
  10. एक से बढ़कर एक..... जीवन की जद्दोज़हद लिए रचनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर दार्शनिक सोच की रचनाएं
    चित्र भी प्रासंगिक

    जवाब देंहटाएं
  12. गहन भाव लिए बहुत ही उत्कृष्ट रचना...
    अति सुन्दर.....
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  13. नए प्रयोग हैं । भीड से अलग एक भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  14. इन कविताओं की उत्कृष्टता चिंतन के लिए प्रेरित करती है।

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं …………………अपने विचारों से हमें अवगत कराएं ………शुक्रिया