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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

आखिर अग्निगंधा भी तलाशती है कुछ फूल छाँव के

धूप भी साये की आकांक्षी हो गयी
आखिर कब तक अपना ही ताप सहे कोई
यूँ ही नहीं देवदार बना करते हैं
यूँ ही नहीं छाया दिया करते हैं
उम्र की बेहिसाब सीढियों पर
अनंत से अनंत के सफ़र तक
आखिर ताप भी सुलगता होगा 
अपनी तपिश से .............
उसे भी तो जरूरत पड़ती होगी
कोई आये और सहला दे 
उसके तपते रेगिस्तान को
ड़ाल दे दो बूँद नेह की 
और सारी तपिश भाप बन कर उड़ जाए
यूँ ही नहीं धूप ने साए के आगोश में पनाह ली होगी
आखिर अग्निगंधा भी तलाशती है कुछ फूल छाँव के 

29 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल |
    कब तक लगातार तप सकता है कोई-
    शीतल तल तलाशे-

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  2. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  3. इतनी सुन्दर कविता के लिए बधाई...

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  4. वाह वंदना जी..........

    बहुत कोमल सी अभिव्यक्ति....

    अनु

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  5. परस्पर निर्भरता में ही जीवन है। इसलिए,क्या धूप क्या छाया-साहचर्य सबको चाहिए।

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  6. बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना!...आभार!

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  7. बहुत ही सुन्दर भाव.....वंदना जी ये 'अग्निगंधा' भी कोई फूल होता है क्या ? मुझे पता नहीं है इस बारे में।

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  8. यूँ ही नहीं धूप ने साये के आगोश में पनाह ली होगी...
    छाँव की तलाश तो सभी को होती है... गर्मी की तपिश में शीतलता प्रदान करती सुन्दर रचना

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  9. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...

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  10. उसकी तलाश उस धूप से तभी तो बेपरवाह है

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  11. बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती हुई बेहतरीन तख़लीक़.
    नेह की बूंदें दो ही क्यों ?
    जितनी भी हों क़ुबूल होनी चाहिएं.

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  12. beautiful lines ful of emotions and
    deep thought near to heart insisting to think .VERY VERY VERY NICE LINES .

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  13. beautiful lines ful of emotions and
    deep thought near to heart insisting to think .VERY VERY VERY NICE LINES .

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  14. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत गहरी अभिव्यक्ति.

    इस सुन्दर कविता के लिए बधाई.

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