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सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

कुछ तो जुस्तजू अभी बाकी है………………


तुम लिखते नही
या मुझ तक पहुंचते नही
तुम्हारे वो खत
जिसकी भाषा ,लिपि और व्याकरण
सब मुझ पर आकर सिमट जाता है
शायद संदेशवाहक बदल गये हैं
या कबूतर अब तुम्हारी मुंडेर पर नही बैठते
या शायद तुमने दाना डालना बंद कर दिया है
तभी बहेलियों के जाल में फँस गए हैं 

कोई तो कारण है 
यूँ ही नहीं हवाएं पैगाम लेकर आई हैं 

कुछ तो जुस्तजू अभी बाकी है………………

27 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वंदना जी...
    अदभुद...
    बहुत बहुत सुन्दर...

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  2. चलिये आपके पास पैगाम तो आते हैं ॥ :):) सुंदर ।

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  3. हमारे यहां कबूतर की जगह कौए के प्रतीक प्रयोग होते हैं...
    जदों जदों वी बनेरे बोले कां
    मैंनूं तेरी सौं वे मेरे सजणां...
    ☺☺☺

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  4. वाह! लाज़वाब अहसास....बहुत सुंदर

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  5. आपने तो सुन्दर सी कविता लिखी..बधाई.
    _____________

    'पाखी की दुनिया' में जरुर मिलिएगा 'अपूर्वा' से..

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  6. ओह ओह ओह ..क्या लिखा है..यूँ ही तो हवाएं पैगाम लेकर नहीं आईं..वाह ..

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  7. जी कुछ नहीं .....अभी बहुत कुछ बाकी है .....!

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  8. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  9. bahut hi sunder YAHI KUCHH JUTSAJU HI to duniya me jine ko majboor karti hai barna UPER koi hum jaise ko taklif thodi deta hai !
    Hari Attal
    Bhilai C G

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  10. जुस्तजू जारी रहे,प्यार को पाने के लिए जंग भी ज़ारी रहे !

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  11. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  12. आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक...
    यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।

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  13. आज के दौर में सुन्दर और सटीक कविता..बधाई.

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  14. बहुत अच्छी रचना,भाव पुर्ण सुंदर प्रस्तुति

    MY NEW POST ...कामयाबी...

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