तुम लिखते नही
या मुझ तक पहुंचते नही
तुम्हारे वो खत
जिसकी भाषा ,लिपि और व्याकरण
सब मुझ पर आकर सिमट जाता है
शायद संदेशवाहक बदल गये हैं
या कबूतर अब तुम्हारी मुंडेर पर नही बैठते
या शायद तुमने दाना डालना बंद कर दिया है
तभी बहेलियों के जाल में फँस गए हैं
कोई तो कारण है
यूँ ही नहीं हवाएं पैगाम लेकर आई हैं
कुछ तो जुस्तजू अभी बाकी है………………
वाह वंदना जी...
जवाब देंहटाएंअदभुद...
बहुत बहुत सुन्दर...
वाह ...बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...!
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
चलिये आपके पास पैगाम तो आते हैं ॥ :):) सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना... वाह!!
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
हमारे यहां कबूतर की जगह कौए के प्रतीक प्रयोग होते हैं...
जवाब देंहटाएंजदों जदों वी बनेरे बोले कां
मैंनूं तेरी सौं वे मेरे सजणां...
☺☺☺
कुछ तो बाकी ही है , रह ही जाता है
जवाब देंहटाएंवाह! लाज़वाब अहसास....बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपने तो सुन्दर सी कविता लिखी..बधाई.
जवाब देंहटाएं_____________
'पाखी की दुनिया' में जरुर मिलिएगा 'अपूर्वा' से..
बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
ओह ओह ओह ..क्या लिखा है..यूँ ही तो हवाएं पैगाम लेकर नहीं आईं..वाह ..
जवाब देंहटाएंBehad achhee rachana!
जवाब देंहटाएंजी कुछ नहीं .....अभी बहुत कुछ बाकी है .....!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut hi sunder YAHI KUCHH JUTSAJU HI to duniya me jine ko majboor karti hai barna UPER koi hum jaise ko taklif thodi deta hai !
जवाब देंहटाएंHari Attal
Bhilai C G
बहुत उम्दा।
जवाब देंहटाएंजुस्तजू जारी रहे,प्यार को पाने के लिए जंग भी ज़ारी रहे !
जवाब देंहटाएंमन से आह निकलती तो होगी..
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
जवाब देंहटाएंआपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक...
जवाब देंहटाएंयह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।
सुंदर भाव मन के......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर... अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआज के दौर में सुन्दर और सटीक कविता..बधाई.
जवाब देंहटाएंaaj to bas......wah....
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना,भाव पुर्ण सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...कामयाबी...