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रविवार, 26 फ़रवरी 2012

यादों का झुरमुट समेट लायी हूँ मै एक गंगा साथ ले आयी हूँ

दोस्तों
कल मेरा अपने ननिहाल अनूपशहर (छोटी काशी ) जो कहलाता है वहां जाना हुआ . मौका तो ऐसा था कि क्या कहूं ? लेकिन पता था शायद अब आना संभव नहीं होगा तो कुछ यादें समेट लायी . यूं तो मेरी मामी जी ने ४-५ दिन पहले इस दुनिया से विदा ले ली तो उसी सन्दर्भ में जाना हुआ और अब न ही मामा जी रहे तो लगा जैसे अब फिर कभी जाना हो न हो तो क्यों न सब यादों को समेट लिया जाये ........वैसे उनके दो लड़के वहां रहते हैं मगर कहाँ जाना होगा .........जब अभी पिछले २७-२८ सालों में सिर्फ मामाजी और मामीजी के दुनिया से कूच करने पर ही जाना हुआ तो आगे का क्या सोच सकती हूँ ..........बस इसलिए कुछ यादें हमेशा के लिए ले आई हूँ ...........कुछ ऐसे पलों को संजो लायी हूँ जो अब हमेशा मेरे साथ रहेंगे .


गाडी मे से चलते -चलते एक नज़ारा ये भी उत्तर प्रदेश के खेत खलिहान का


 कहीं ठूंठ तो कहीं हरे- भरे



देखो मिल गया जमीं आसमाँ
कहाँ दीखते हैं ये नज़ारे 
इन कंक्रीट के गलियारों में 



आज भी खुला आसमान दिखता है 

आज भी कहीं खलिहान मिलता है





 ये है मेरे देश की मिट्टी जहाँ 


आज भी अपनापन मिलता है


राह के नज़ारे  
उपलों का संसार 
सिर्फ यहीं दिखता है  


 अनूपशहर का मन्दिर जिसके पास है ननिहाल मेरा

 ये एक छोटा सा मन्दिर जिसके साथ लगती सीढियाँ गंगा जी तक जाती हैं


आहा ! माँ गंगे के दर्शन किए 


अद्भुत आनन्द समाया 

लफ़्ज़ों मे वर्णित ना हो पाया


 बरसात के दिनो मे गंगा जी जो शेड दिख रहे हैं वहाँ तक पहुंच जाती हैं

 ना दिखा फ़र्क जहाँ धरती और आसमाँ मे

क्षितिज़ पर मिलन हुआ गंगा का दर्शन हुआ




हर हर गंगे तुमको नमन 

करो स्वीकार मेरा वन्दन



गंगा को नमन और आचमन
 मेरा भांजा ………राजू उर्फ़ उज्जवल


ये देखो त्रासदी मेरे देश की 

गंगा का पवित्र किनारा 
वहीँ बैठ करते ये मय का पान 
कहो कोई कैसे करे गुणगान



कल कल करती गंगा बहती जाये 

जिसके कदमों मे आस्माँ भी झुक जाये

 गंगा का किनारा 

शांत सुरम्य शीतल

 बहती जलधारा 

मन्द मन्द समीर ने 

मन को मोहा

 हनुमान जी की सेना ने भी लगाया डेरा

 अब कहाँ दिखता है ऐसा खुला आस्माँ और ये नज़ारे


ये वो सीढियाँ जो गंगा की तरफ़ जाती हैं


 मेरे देश के खेल खलिहान


शाम को सरसों के खेत का एक दृश्य

चलो चलें सरसों के खेत मे



 सरसों संग हम भी खिल गये


 राह के नज़ारे


 चलती गाडी से

अद्भुत आनन्द मे डूबे


सूरज को जल देते हुये


इतना अद्भुत आनंद था गंगा किनारे आने का मन ही नहीं हो रहा था .........यूं लग रहा था बस यहीं रुक जाऊं .........अन्दर तक उतार लूं इस अद्भुत आनंद को .......चारों तरफ खुला नीला आसमाँ , शांत सौम्य गंगा का किनारा , हलके -हलके बादल और मंद -मंद बहती हवा ........उफ़ !यूं लगा जैसे ओक बनाकर एक घूँट में सारा अमृत पी जाऊँ 




कमी थी तो सिर्फ एक उत्तर प्रदेश की सडकें जैसी पहले थीं आज भी वैसी ही हैं ..........अब सरकार कोई हो कुछ कब्रों पर फर्क नहीं पड़ता .....हिचकोले खाते , हड्डियाँ चटकवाते  जैसे तैसे पहुंचे हम बुलंदशहर से अनूपशहर तक ...........तौबा कर ली और इसीलिए लगा अब कभी वापस यहाँ आना नहीं होगा ........

49 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चित्र मयी पोस्ट .... ये नज़ारे देखने को तरस जाते हैं ...

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    1. संगीता दी मै उसमे जीकर आयी हूँ भीगकर आयी हूँ इसलिये जिस तरह से लिखना चाहिये था वैसा नही लिख पायी क्योंकि उन ही अहसासो मे अभी तक डूबी हुयी हूँ और वाणी मौन हो गयी है ………इसलिये शब्द भी खामोश हैं सिर्फ़ चित्र बोल रहे हैं।

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  2. @ सूरज को जल देते हुए .......!~
    achha hai ....koi to hai ...!

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    1. केवल राम वैसे जल नही देती सूरज को मगर जब गंगा जी जाती हूँ तब जरूर देती हूँ ॥

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  3. सारे जहा से अछा हिन्दोस्तान हमारा

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    1. सही कहा विपिन …………अपनी मिट्टी अपनी ही होती है।

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  4. बहुत सार्थक और सुंदर चित्रण...

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  5. अच्छा लगा पोस्ट को पढ़कर .....अत्यंत सुंदर .....

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  6. आपके सथ हमने भी गंगा दर्शन कर लिया।

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  7. बहुत अच्छा लगा...
    सच में मन कितना जुड़ा रहता है मिट्टी से....
    एक मुट्ठी मिट्टी भी लेती आतीं...
    भावुक मन हो गया...

    सस्नेह.

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    1. विद्या जी यादों की मिट्टी लायी हूँ और उनमे गंगा की नमी भी साथ आयी है …………कल से मेरा मन वहीं रुका है अब तक वापस आया ही नही उस गंगा के किनारे से …………।

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    2. यादों की मिट्टी जो कभी नहीं मिटती.... !!

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  8. तस्वीर के साथ वर्णन .......
    एक चलचित्र सा लगा. ..... ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  9. कि‍सी के भी ल‍िए नन‍िहाल का अर्थ ही ढेरों मीठी मीठी यादें होता है... समझ सकता हूं आपकी पीड़ा

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  10. चित्र ही गंगा मैया के आशीर्वाद को व्यक्त कर रहे हैं..

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  11. वंदना जी मेरा ददिहाल है अनुपशहर लेकिन मेरा दुर्भाग्य मैं आज तक नहीं गया| पिता जी और माँ से कहानियों की तरह सुना आज चित्र दिखाने के लिए, आभार

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    1. सुनील जी जाने पर अच्छा लगेगा एक अलग ही सुकून सा महसूस होगा। कीजियेगा कभी कोशिश जाने की एक बार्।

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  12. शहर से गाँव की ओर निकलें तो बहुत अच्छा लगता है ।
    ठीक वैसे जैसे पिकनिक पर लगता है ।

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  13. वाह तो गोया ये कहिए कि , जिंदगी के एक दिन में इक उम्र जी आई हैं आप । समझ सकते हैं कि आपको कैसा अनुभव हो रहा होगा । यदि ये बुलंदशहर वाला अनूपशहर है , जो कि बंदरों की फ़ौज को देख कर भी लग रहा है , तो खुशकिस्मती से मैं भी यहां दो दो बार जा चुका हूं , रास्ते में मोर भी दिखे थे मुझे तो । बहुत ही सुंदर यादें सहेज ली आपने ।

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    1. सही कहा अजय जी यूँ ही लगा जैसे इक उम्र जी आयी और सहेज लायी उम्र का लिहाफ़ ………और ये बुलन्दशहर वाला ही अनूपशहर है और यहाँ से थोडा जंगल की तरफ़ या अमन्तका देवी की तरफ़ निकलें या हरि बाबा के बांध की तरफ़ तो मोर भी मिल जाते हैं…………मै अमन्तका देवी तो गयी हूँ मगर हरि बाबा के बांध पर नही जा पायी इस बार भी क्योंकि देर हो रही थी और सफ़र लम्बा था इसलिये वहाँ नही गये मगर इच्छा जरूर थी।

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  14. तस्वीरों को शब्द देते हुए मन की खुशी और दर्द को बयां करती पोस्ट।

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  15. चित्रमय खुबसूरत प्रस्तुती......

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  16. सुन्दर यात्रा व्रातांत चित्रों से सजा, कविता से इतर कलम भी चलती रहे बधाई वंदना जी

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  17. यादों की मिट्टी जो कभी नहीं मिटती.... !! आप सही लिखी..... जब अपने नहीं होते.... कहाँ जाना हो पाता..... मेरे पापा को गुजरे दो साल हो गए..अभी तक जाना नहीं हो पाया.... !! आपकी यादे(मुझे बहुत कुछ याद दिला दी) संजो कर रखने लायक है..... ये अतीत की धरोहर बनेगी.... :):)

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    1. मै समझ सकती हूँ विभा रानी जी इस दर्द को क्योंकि गुजरी हूँ इसी मुकाम से और गुजर् रही हूँ। मेरा भी अब मायका कहाँ रहा जिस दिन से मेरे बाऊजी गये मम्मी हैं वो मेरे साथ ही हैं और उस घर की सिर्फ़ यादें ही हैं एक दिन वहाँ की भी सारी तस्वीरें लाऊँगी सहेजूंगी अपने बचपन को भी:(

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  18. यादें तो क्लिक हो गयीं ... और हम तक आ गईं ... बहुत सुन्दर

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  19. वंदना जी,बहुत सुंदर चित्रों सहित आँखों देखा वर्णन,
    मेरा भी ननिहाल UP के रायबरेली जिले में गंगा के
    किनारे रौतापुर गाँव में है,बचपन में कई बार गया था,...
    लेकिन अब वहाँ कोई नही रहता,नाना मामा जी अब नहीं
    रहे,उनका पूरा परिवार,शहडोल केशवाही में आकर रह रहे है..

    अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

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  20. यादों को इतने सलीके से सहेज कर कोई करे तौबा तो यकीन मानिए तौबा टूट जायेगा।

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    1. क्या बात कह दी देवेन्द्र पाण्डेय जी…………शुक्रिया

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  21. गाँवों में जाओ तो वहाँ की शान्ति और ठहराव मन को आनल्दित करता है लेकिन फिर लौट आना पड़ता है अपने डेरे पर ही। बहुत अच्‍छी पोस्‍ट दी है आपने।

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  22. हम भी आपका ननिहाल घूम लिए ...
    धन्यवाद
    :)
    kalamdaan.blogspot.in

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  23. फोटो का पीलापन जैसे गहरी उदासी और एकाकी जीवन की व्यथा कह रहा है ...
    शान्ति तो जरूर होगी वहाँ जहां गंगा का किनारा है ...

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  24. यह इलाका मेरा भी देखा हुआ है.पर आपने जिस सुंदरता से वर्णन किया है..बहुत सी यादें ताज़ा हो गईं.

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  25. अरे वंदना जी ,आपने तो कमाल कर दिया । मेरा अतीत इस उम्र की मुंडेर पर बैठा कबूतर की तरह गुटुर गूं --गुटुर गूं करने लगा और मैं सारे काम -धाम छोड़ उसके पीछे भाग खड़ी हुई । अनूपशहर की गली -गली ,गंगा के घाट ,उस पर बने मंदिर ,हरिहर बाबा का आश्रम ,अपने अंतिम दिनों में ली गई उनकी समाधि ,खरबूजों -तरबूज़ों की बाड़ी --कुछ तो नहीं भूली । मुझे भी अपनी जन्मस्थली जाने की धुन सवार हो गई है ।
    फोटोग्राफी के साथ प्रस्तुति शानदार है । आपके ब्लॉग पढ़े और समझने की कोशिश की । बहुत अच्छे लगे ।

    सुधा भार्गव

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  26. टिप्पणी देते -देते अन्य टिप्पणियों का भी अवलोकन किया। इस दौरान सुनील कुमार व अजय कुमार झा जी से मिलकर बड़ी खुशी हुई जिनका किसी न किसी रूप में अनूपशहर से संपर्क रहा । झा जी ने ठीक हीकहा -वहाँ बदरों की फौज ही रहती है वह भी छत पर । लगता है छ्तें उनके ही लिए बनी हैं ,बस नीचे उतरने पर निषेध है । तब भी अनूपशहर अनूप है ।
    वंदना जी का आभार --जिनके कारण बहुत सी यादें ताजा हो आईं ।

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  27. चित्रों के माध्यम से यादों को बहुत अच्छे ढंग से समेटा है आपने!

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  28. चित्र और शब्द दोनों मन में उतरते हुए.......

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  29. बहुत ही सुंदर चित्रमय प्रस्तुति।

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  30. नदी किनारे गाँव रे , हिचकोले खाते भी पहुँचने में क्या हर्ज़ है ...
    सुन्दर चित्र !

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  31. oh vandana ye to mujhe aaj hi pta chala ki aapki nanihaal anupshahr hai, 20 sal ho gae vaha jae phir bhi ye mandir achchhi tarah yaad aagya, dinesh ke ghat par to aap veena ke ghar pas hi gayi thin.

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