दोस्ती अलग है
प्रेम अलग है
सेक्स अलग है
किसी ने कहा मुझे
क्या कर सकती हो व्याख्या ?
बता सकती हो
क्या हैं इनके अस्तित्व?
क्या ये हैं समाये इक दूजे में
या हैं इनके भिन्न अस्तित्व?
दो विपरीत लिंगी
दोस्ती हो या प्रेम
हमेशा कसौटी पर ही
खड़ा पाया जाता है
क्यूँ समझ नहीं आ पाता है
दोस्ती का जज्बा
नेमत खुदा की
जिसको नवाज़ा है
होगा कोई बाशिंदा
जहान से अलग
खुदा के नज़दीक
यूँ ही तो नहीं खुदा को
उस पर प्यार आया है
मगर विपरीत लिंगी दोस्ती
पर ही क्यूँ आक्षेप लगाया है
क्यूँ नहीं किसी को समझ आया है
हर दोस्ती की बुनियाद
सैक्स नहीं होती
इमारत इतनी कमजोर नहीं होती
महज़ शारीरिक आकर्षण
और स्त्री पुरुष का संग ही
क्यूँ ये दर्शाता है
यहाँ तो सिर्फ इनका
शारीरिक नाता है
देह से इतर भी
सम्बन्ध होते हैं
जो प्रेम से भी गहरे होते हैं
फिर चाहे हो कृष्ण
सखी तो एक ही बन पाई थी
पांचाली ने भी तो
दोस्ती कृष्ण संग निभाई थी
पर वहाँ प्रेम दिव्यता पा गया था
दोस्ती की रस्में निभा गया था
प्रेम की डोर
बड़ी कच्ची होती है
इसमें ना कोई कड़ी होती है
अदृश्य तरंगों पर
ह्रदय तरंगित होते हैं
बिन देखे , बिन मिले
बिन जाने भी
भाव स्खलित होते हैं
प्रेम में स्त्री पुरुष
कब चिन्हित होते हैं
वहाँ तो आत्माओं
के ही मिलन होते हैं
फिर कैसे भेद करूँ
स्त्री पुरुष को अलग करूँ
फिर चाहे गोपी भाव
में समाहित हो
जहाँ कृष्ण गोपी बन जाता हो
या गोपी कृष्ण बन जाती हो
पर प्रेम की थाह न कोई पाता है
प्रेम तो ह्रदय की वीथियों
पर लिखा अनवरत नाता है
जिसकी गहराइयों में
जिस्म से परे सिर्फ
आत्मिक मिलन ही हो पाता है
जो हर किसी को ना आता है
और वो प्रेम को भी
शरीरों के मिलन से ही
तोल पाता है
मगर अपनी जड़ सोच से
ना मुक्त हो पाता है
सिर्फ स्त्री पुरुष रूप में ही
परिभाषित किया जाता है
मगर कभी उसकी दिव्यता को
ना जान जाता है
तभी प्रेम कभी भी
अपना मुकाम ना पा पाता है
इक बार स्त्री पुरुष भेद से बाहर आओ
खुद को प्रेम के सागर में डुबा जाओ
तो शायद तुम भी प्रेमग्रंथ लिख जाओ
दो विपरीत लिंगी मिलन
महज सम्भोग को ही
दर्शाता है
सिर्फ देह से शुरू होकर
देह तक ही सिमट जाता है
कभी देह से इतर
ना इक दूजे को जान पाता है
और बीच राह में ही
बँधन चटकता जाता है
जब तक ना आपसी
सौहार्द हो
तब तक कैसे ढाई अक्षर
का आधार हो
सम्भोग का कैसे श्रृंगार हो
जब तक ना मित्रमय
वातावरण का विचार हो
जब तक ना प्रेम के बीज का रोपण हो
कैसे कहो तो सम्भोग हो
सम्भोग मात्र क्रिया नहीं
जीवन दर्शन समाया है
सम्भोग से भी अध्यात्म तक
मार्ग बताया है
पर वहाँ देह से इतर ही
सम्बन्ध बन पाया है
सिर्फ कुछ पलों का सामीप्य ही
ना दीवार बने
मानस के मन का मजबूत आधार बने
जहाँ एक दूजे में ही
प्रेमी, सखा ,आत्मीय,
ईश्वरीयतत्व
सबका दर्शन हो जाए
तन से परे मन का मिलन हो जाये
तो सम्भोग पूर्णता पा जाये
तभी शायद विपरीत लिंगी होना
सिर्फ एक रूप रह जायेगा
सम्भोग में भी दोस्ती और प्रेम का
आधार नज़र आएगा
और संपूर्ण दिव्यता को मानव पा जायेगा
यूँ तो दोस्ती , प्रेम और सैक्स
तीनो अपने मानदंडों पर खरे उतरते हैं
पर इनके अस्तित्व भी
इक दूजे में ही समाहित होते हैं
जहाँ बिना दोस्ती के
प्रेम ना जगह पाता है
और बिना प्रेम और दोस्ती के
सम्भोग का कारण ना
उचित नज़र आता है
फिर कैसे इन्हें अलग करूँ
अलग होते हुए भी
इनके अस्तित्व इक दूजे बिन
ना पूर्णता पाते हैं
हाँ ...अलग अस्तित्व
तभी सम्पूर्णता पाते हैं
जब इक दूजे में सिमट जाते हैं
मगर वहाँ वासनात्मक
राग ना बहता है
सिर्फ अनुराग ही अनुराग होता है
सर्वस्व समर्पण जहाँ होता है
वो ही प्रेम हो या दोस्ती या सैक्स
सभी का आधार होता है
शायद वहीँ दिव्यता का भान होता है
दोस्तों ये फ़ोटो गुंजन जी के ब्लोग से ली है जो इस रचना पर खरी उतर रही है आभारी हूँ गुंजन जी की।
ek aisi kavita , jisme zindagi ko jeene ka sara gyaan nihit hia .. ek adbut kavita jo kee prem ke naye aayamo ko darshaati hai .. aap ka lekhan bahut sundar ho chala hai vandana ji . is vilakshan kavita ke liye badhayi sweekar kare...
जवाब देंहटाएंएकदम सीधी सच्ची बात कहती कविता जो मेरी अब तक पढ़ी गयी बेहतरीन कविताओं मे से एक है।
जवाब देंहटाएंसादर
Very Bold, Clear and Direct thoughts...
जवाब देंहटाएंBehtareen arth, vyang aur jeevan darshan se bhari kavita...
Adbhut lekhan....
बहुत बारीकी से आपने इन तीन चीजों में अंतर को स्पष्ट कर दिया है..........तस्वीर भी चार चाँद लगा रही है पोस्ट में.........हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए|
जवाब देंहटाएंBahut khoob! Aise hee ye jazbe hote hain....hone chahiyen!
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण किया है ... उत्तम विचार .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंबिन चराग का उजाला है प्रेम,
जवाब देंहटाएंइथोपिआ में ब्रैड का निवाला है प्रेम,
सूफ़ी के लिये दोहा,मयकश के लिये प्याला
जिसे यकीं है उसका मक्का और शिवाला है प्रेम,
प्रेम को भला बताओ परिभाषित क्यों करना,
अद्भुत है ईश्वर की तरह निराला है प्रेम!
वंदना जी,सादर वंदन जी.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति का करुण क्रंदन
रह रहकर रहा है पुकार
बस प्यार,प्यार ,प्यार
शरीर के बंधन से परे
आत्मिक मिलन की ओर
आपकी बातों पर करें गौर
तो नवीन ही होगा वह दौर.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,जी.
इन शब्दों में दिव्यता ढूढ़ने के लिये मन की निर्मलता कहाँ ले आयेगी, अत्यन्त विरल है।
जवाब देंहटाएंप्रेम तो ह्रदय की वीथियों
जवाब देंहटाएंपर लिखा अनवरत नाता है
जिसकी गहराइयों में
जिस्म से परे सिर्फ
आत्मिक मिलन ही हो पाता है
जो हर किसी को ना आता है...
बहुत ही सटीक विश्लेषण किया है आपने... आपकी सोच को नमन
'प्रेम' मेरा प्रिय विषय हैं --मेरी रचनाए हमेशा प्रेम पर ही आधारित होती हैं ! आज मैने एक कविता और एक लेख पढ़ा -- दोनों एक से बढकर एक लगे --जहां रश्मिजी का प्रेम आकर्षण में बंधा था वही वंदनाजी का प्रेम भक्ति से सराबोर था --दोनों ही रचनाए प्रेम के सर्वोच्य शिखर पर आसीन हैं ---
जवाब देंहटाएंसच, शारीरिक आकर्षण ही संबंधों का आधार हो, ज़रूरी नहीं
जवाब देंहटाएंइतनी खूबसूरती और खुले शब्दों में आपने जीवन के तीनों पहलुओं का वर्णन किया है शायद ही कोई कर पाए....या करना चाहते हुए भी न कर पाए !कई बार हमारे पास शब्द होते हुए भी हम नहीं कह पाते हैं !
जवाब देंहटाएंसभी संबंधों का अच्छा विश्लेषण किया है आपने.....
शुभकामनाएं !!
आपने अपनी कविता के जरिये एक बहुत बड़े मुद्दे को उठाया है. हलाकि सोच बदल रही है लेकिन ये अभी तक सिर्फ बड़े शहरों तक ही सिमित है. छोटी जगहों पर तो आज भी विपरीत लिंग का प्यार या दोस्ती को सेक्स कि कसौटी पर ही कसा जाता है.
जवाब देंहटाएंएक आख्यान रच डाला है आपने। संवेदनशील विषय पर विचारोत्तेजक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खुब । बहुत अच्छा लिखा आपने वंदना जी प्रेम,नेह,दोस्ती,देह,मन,सेक्स,इन सबके बीच बारीक, बहुत सुक्ष्म अंतर है जिसे समझना
जवाब देंहटाएंएक आम इंसान के वश में नही है।इतनी अच्छी रचना पढवाने के लिये बहुत -बहुत धन्यवाद।
इस कविता में बारे में क्या कहू....जीवन दर्शन है यह कविता... लेकिन अपने समाज को यहाँ तक पहुचने में शायद वक्त लगेगा....
जवाब देंहटाएंअद्भुत है आपकी आन्तारिक अनुभुतियों का आकाश, सोच का विस्तृत आकाश और उसको बेबाक कहने का अदम्य साहस,यही सब तो वंदना जी आपको सबसे इतर बनाता है. बेबाक और विश्लेषित विवरण युक्त कविता दुबारा शायद ही पढ़ पाऊ. बधाई
जवाब देंहटाएंgambhir visay per achcha likhi hain....
जवाब देंहटाएंआपका यह कविता विमर्श विचारोत्तेजक है।
जवाब देंहटाएंteeno sthitiyon ka baariki se vishleshan kar sunder shabd shaili me dhala hai.
जवाब देंहटाएंप्रेम और दोस्ती पर बहुत विस्तार से लिखा आपने ...प्रेम और मित्रता यूँ तो हर रिश्ते की आवश्यकता है , फिर भी मित्रता बहुत लोगों से हो सकती है , मित्र एक समान विचारों वाले या असमान विचारों वाले भी हो सकते हैं जबकि प्रेम सबसे नहीं होता, निर्धारित नहीं होता , इसमें किसी के गुण या अवगुण इतना मायने नहीं रखते !
जवाब देंहटाएंबहुत सूक्ष्म अवलोकन और विवेचना पेश की है प्यार और वासना की.
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सैयत विचार रखे है कविता के माध्यम से. बधाई.
विचारनीय पोस्ट .......गंभीर सन्दर्भों में अनुपम सृजन ,शुभकामनायें जी /
जवाब देंहटाएंआजकल के नवयुवक/युवतियां जिसे प्रेम की संज्ञा देते हैं उसमें वो महज सेक्स आकर्षण ही देखते हैं.ये समय की विडंबना है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही व्याख्या।
जवाब देंहटाएंप्रेम और दोस्ती की पूर्ण परिभाषा.....
जवाब देंहटाएंWonderful analysis !
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत सच्ची, अच्छी और गहरी बात कही है आपने कविता के माध्यम से. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंकविता है कि पूरा शोध!
जवाब देंहटाएंअंत पढ़कर आनंद आ गया।
काफी चिंतन कर लिया आज तो.
जवाब देंहटाएंएक ऐसा छेत्र, जिसकी मीमांसा करना हर किसी के लिए पसीने छूटना जैसा है. अद्भुत प्रयास. बधाई.
जवाब देंहटाएंवंदना जी
जवाब देंहटाएंदोस्ती,प्रेम,और,सेक्स,की मेरे ख्याल से इससे अच्छी
व्याख्या हो नही सकती वो भी कविता के माध्यम से
सरल सुंदर शब्दों में लिखी बेहतरीन पोस्ट..
नंबर देने की बात होती तो १०० में १०० नम्बर देता..
आपके इस पोस्ट को पढकर आपका समर्थक बन गया हूँ,
मेरे नए पोस्ट "माँ की यादे" में स्वागत है जरूर आइये...
एक अच्छी और गहन रचना. की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय महोदया
जवाब देंहटाएंअमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा इसी शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
भवदीय
(अशोक कुमार शुक्ला)
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
वंदना जी , कितनी स्पष्टता से आपने रचना के माध्यम से तीनों के अंतर को लिख दिया
जवाब देंहटाएंbahut hi saralata se apne ise prastut kiya hai...
जवाब देंहटाएंbahut hi acchi prastiti hai...
अगर ये तीनों बातें एक ही प्रेमिका में मिलें या अगर ढूँढें तो जीवन सार्थक हो जायगा ...
जवाब देंहटाएंकुछ अलग हट के लिखी रचना ...
बहुत व्यापक है - सराहनीय
जवाब देंहटाएंसीधे और सहज भाव से प्रेम,नेह,दोस्ती,देह,मन,सेक्स पर सुन्दर विचार..
जवाब देंहटाएंअपने विचारों को खूबसूरत कविता का रूप दिया है आपने!
जवाब देंहटाएंAAPKEE LEKHNEE KE AAGE MAIN NAT
जवाब देंहटाएंMASTAK HUN . AAPKEE KAVITA KO PADH
KAR ABHIBHOOT HO GYA HUN . KAALJAYEE KAVITA HAI AAPKEE .
SHUBHASHEESH .
बहुत सुन्दर और ज़बरदस्त रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंpahli baar is vishay par itno sarthak kriti padhne ko mili...sarthak aur sahaz lekhan ki badhai sweekar karen...
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyaktee ..shaandaar !
जवाब देंहटाएंउलझे हुए रिश्तों को पहचान दी है बहुत सीधे तरीके से.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा.
Mitrata,prem aur sambhog pranee matra kee prakartik aur apriharya kriyayen hain,jinkee anubhuutiyon aur triptiyon ke abhav men pranee matra ka jeevan adhuura asaphal hai.
जवाब देंहटाएंJahan- jahan inkee upsthiti hai,vahan -vahan jeevandarshan kee abhivykti hai.
ye sabhee prakritik aur Satyam,Shivam aur Sundaram kee prapti men sahayak Siddha hain.
kavyitree Vandana ji ne is rachana men Mitrata, prem aur sambhog ke antar aur unkee unubhuutiyon tatha trptiyon ke sandarbh se apne kavya - sarokar ko sahas ke sath bebakee se spastkarne kee sarthak koshish kee hai.Atdarath Badhai.
-Meethesh Nirmohi,Jodhpur.
SACH HAMESHA SHASHWAT HOTA HAI. KUCHH RISHTO KA KOI NAM NAHI HOTA HAI.......
जवाब देंहटाएंek hi chashme se kyo dekhe isako
RISHTE hote hai pavitra
Har RISHTA na badnam hota hai....
आज के वक़्त के मुताबिक सही आंकलन
जवाब देंहटाएं