सुनो
आजकल मन तुम तक नहीं पहुँचता
पता नहीं किन जंगलों में भटकता है
पता नहीं किस कांटे में उलझा है
जो अब फूलों की डगर नहीं देखता
कहीं दिखे तुम्हें किसी
अन्जान शहर में
अन्जान डगर पर
अन्जान महफ़िल में
किसी कांटे से उलझा
तो उसे याद कराना
हर बीता लम्हा
जो तुम्हारे साथ गुजरा था
शायद दिल की जमीन नम हो जाए
और फिर भी ना माने तो
एक बार उसे वापसी की राह दिखाना
जहाँ ये ठूंठ उसके इंतज़ार में सूखा पड़ा है
अब इसमें हलचल नहीं होती
आखिर कोई तो हो कारण
चाँदनी को जमीं तक पहुँचने के लिए आजकल मन तुम तक नहीं पहुँचता
पता नहीं किन जंगलों में भटकता है
पता नहीं किस कांटे में उलझा है
जो अब फूलों की डगर नहीं देखता
कहीं दिखे तुम्हें किसी
अन्जान शहर में
अन्जान डगर पर
अन्जान महफ़िल में
किसी कांटे से उलझा
तो उसे याद कराना
हर बीता लम्हा
जो तुम्हारे साथ गुजरा था
शायद दिल की जमीन नम हो जाए
और फिर भी ना माने तो
एक बार उसे वापसी की राह दिखाना
जहाँ ये ठूंठ उसके इंतज़ार में सूखा पड़ा है
अब इसमें हलचल नहीं होती
आखिर कोई तो हो कारण
आखिर कोई तो हो कारण
जवाब देंहटाएंचाँदनी को जमीं तक पहुँचने के लिए..
कहाँ उलझा पड़ा है मन ? सीधी राह पकड़ो और चाँदनी को छू लो :):)
वाह ...बहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरूप जी की बात पर गौर कीजिए ना!
जवाब देंहटाएं--
चाँद पर चलने संे जमीन नहीं मिलती है।
सिर्फ नजर आती है!
--
बहुत अच्छी रचना!
bahut bahut khoob...
जवाब देंहटाएंसही कहा ||
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ||
मन तो आखिर मन है ..अपना ही है..जरा कोशिश करो पहुँच जायेगा चाँद तक.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
सुन्दर कविता. चाँद को छूने की ललक... बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशायद दिल की जमीन नम हो जाए
जवाब देंहटाएंऔर फिर भी ना माने तो
एक बार उसे वापसी की राह दिखाना....
सुन्दर अभिव्यक्ति....
सादर बधाई...
shaandaar...
जवाब देंहटाएंaakhiri mein to bas... waah...
vaah bahut khoob.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना देखें-
**मेरी कविता:राष्ट्रभाषा हिंदी**
रचना बहुत ही अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंसूने मन की व्यथा -अच्छा चित्रण ।
जवाब देंहटाएंमन भला कब किसकी पकड़ में आया है! हां,उसे कुलांचे भरने को छोड़ दें,तो उसका स्वतः स्थान-ग्रहण निश्चित।
जवाब देंहटाएंआखिर कोई तो हो कारण
जवाब देंहटाएंचाँदनी को जमीं तक पहुँचने के लिए.....
....बहुत सुन्दर अहसास और उनकी लाज़वाब अभिव्यक्ति..
khoobsoorat rachna...sahaj aur saral..magar asardaar
जवाब देंहटाएंhttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंतमाम विसंगतियों के बावजूद आशा अभी भी जीवित है.भावनामयी अभिव्यक्ति.शायद इसे ही जिजीविषा कहते हैं.
जवाब देंहटाएंbhtrin rchnaa ke liyen mubarkbaad ......akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..... गहरे भाव लिए पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंखुबसूरत लफ्जों में लिपटे बेहतरीन अहसास........बढ़िया |
जवाब देंहटाएंachchha likha hai ...
जवाब देंहटाएंlajabab......
जवाब देंहटाएंनिराशा को खुद ही झटकना पढता है ... उदासी से बाहर आना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंमन मानता ही कहाँ है ?
जवाब देंहटाएंअहसासों से लबरेज़ सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगी।बहुत बढि़या रचना |
जवाब देंहटाएंगहन भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंman k pas bhaag jane ke kayi raaste hain, vo chhaliya hai vo apki sunega nahi apko apni suna kar aur manva kar rahega....koshish kijiye ise saadhne ki.
जवाब देंहटाएं:)
sunder abhivyakti.
vandana ji
जवाब देंहटाएंbahut si baate chupke se kah jaati hai aapki yah post.
man to aazad panhhi hai kahi bhi kabhi pahunch jaata hai use bandh ke rakhna bada hi mushkil hai.
aabhar
poonam
सुन्दर एहसास!
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बिंदास रचना होती है जो दिल है वही बाहर हमें ये बात बहुत अच्छी लगती है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
ati sundar....rachna ....wah...
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