किससे करें शिकायत
किससे करें गिला
झूठे मक्कारों के देश मे
गांधी ने क्यों जनम लिया
ये गांधीवादी बनते हैं
जनता पर अत्याचार करते हैं
सिर्फ़ बातों मे ही सब्ज़बाग दिखाते हैं
मगर आचरण मे ना
गांधी के उपदेश लाते हैं
गांधी की तस्वीर के नीचे ही
सच को कदमों तले कुचलते हैं
कदम कदम पर धोखा देते हैं
अपनी बातों से ही मुकरते हैं
गांधी गर होते ज़िन्दा
अपने देश का हाल देख
खुदकुशी वो भी कर लेते
अपने नारों का
अपनी बातों का
अपनी मर्यादाओ का
यूँ तिरस्कार ना देख पाते
जो राह दिखाई थी
उस पर चलने वालों को
तिल तिल कर ना मरते देखा जाता
आतंकवादियों , भ्रष्टाचारियों की खातिर मे
देश के कर्णधारों को
यूँ दण्डवत करते देखते
तो सच मे गांधी आज
लोकतंत्र की परिभाषा पर
खुद ही शर्मिंदा होते
किसकी खातिर संघर्ष किया
किसकी खातिर अनशन किये
किसकी खातिर जाँ कुर्बान की
गर पता होता तो आज
गांधी भी ज़िन्दा होते
और देश पर विदेशियो का
राज होता तो क्या गलत होता
कल भी विदेशी राज करते थे
आज भी विदेशी राज करती है
देश की जनता तो बस
भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढती है
गर गांधी ने ये सब देखा होता
तो सिर शर्म से झुक गया होता
अन्तस मे पीडा उपजी होती
गर कुर्सी के लालची नेताओं की
ये ऐसी मिलीभगत देखी होती
जहाँ कुर्सी की खातिर
जनता से विश्वासघात होता है
वहाँ संविधान भी आज
अपनी किस्मत पर रोता है
कैसे करे इस बात को साबित
जनता को ,जनता के लिये, जनता के द्वारा
ये तो सिर्फ़ एक किताबी तहरीर
बनी है मगर इसमे ना कोई
जनता की भागीदारी है
जनता तो सिर्फ़ प्रयोगों
तक सीमित होती है
गर देखा होता आज देश का ये हाल
गांधी ने भी अफ़सोस किया होता
क्यूँ मैने झूठे मक्कारों धोखेबाजों के
देश मे जनम लिया……………
किससे करें गिला
झूठे मक्कारों के देश मे
गांधी ने क्यों जनम लिया
ये गांधीवादी बनते हैं
जनता पर अत्याचार करते हैं
सिर्फ़ बातों मे ही सब्ज़बाग दिखाते हैं
मगर आचरण मे ना
गांधी के उपदेश लाते हैं
गांधी की तस्वीर के नीचे ही
सच को कदमों तले कुचलते हैं
कदम कदम पर धोखा देते हैं
अपनी बातों से ही मुकरते हैं
गांधी गर होते ज़िन्दा
अपने देश का हाल देख
खुदकुशी वो भी कर लेते
अपने नारों का
अपनी बातों का
अपनी मर्यादाओ का
यूँ तिरस्कार ना देख पाते
जो राह दिखाई थी
उस पर चलने वालों को
तिल तिल कर ना मरते देखा जाता
आतंकवादियों , भ्रष्टाचारियों की खातिर मे
देश के कर्णधारों को
यूँ दण्डवत करते देखते
तो सच मे गांधी आज
लोकतंत्र की परिभाषा पर
खुद ही शर्मिंदा होते
किसकी खातिर संघर्ष किया
किसकी खातिर अनशन किये
किसकी खातिर जाँ कुर्बान की
गर पता होता तो आज
गांधी भी ज़िन्दा होते
और देश पर विदेशियो का
राज होता तो क्या गलत होता
कल भी विदेशी राज करते थे
आज भी विदेशी राज करती है
देश की जनता तो बस
भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढती है
गर गांधी ने ये सब देखा होता
तो सिर शर्म से झुक गया होता
अन्तस मे पीडा उपजी होती
गर कुर्सी के लालची नेताओं की
ये ऐसी मिलीभगत देखी होती
जहाँ कुर्सी की खातिर
जनता से विश्वासघात होता है
वहाँ संविधान भी आज
अपनी किस्मत पर रोता है
कैसे करे इस बात को साबित
जनता को ,जनता के लिये, जनता के द्वारा
ये तो सिर्फ़ एक किताबी तहरीर
बनी है मगर इसमे ना कोई
जनता की भागीदारी है
जनता तो सिर्फ़ प्रयोगों
तक सीमित होती है
गर देखा होता आज देश का ये हाल
गांधी ने भी अफ़सोस किया होता
क्यूँ मैने झूठे मक्कारों धोखेबाजों के
देश मे जनम लिया……………
एक समसामयिक कविता.. वाकई वर्तमान हालात से लगता नहीं है कि गाँधी इसी धरती पर पैदा हुए थे...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा , मगर ऐसे देश में ही तो गाँधी , अन्ना की सबसे ज्यादा जरुरत होती है ...गाँधी , अन्ना यानि एक सशक्त नेत्रत्व ....जनता की आवाज ...
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंसही कहा..आज गाँघी और अन्ना जैसे कर्म वीरों की जरुरत है......आभार सहित..
जवाब देंहटाएंअभिव्यंजना में आप का स्वागत है...
अभी तक उनके आँसू बह रहे होंगे।
जवाब देंहटाएंशुक्रवार --चर्चा मंच :
जवाब देंहटाएंचर्चा में खर्चा नहीं, घूमो चर्चा - मंच ||
रचना प्यारी आपकी, परखें प्यारे पञ्च ||
यथार्थ को चित्रित करती उम्दा अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना ..सच ही गांधी जी की आत्मा कलप रही होगी आज के हालात देख कर ..
जवाब देंहटाएंगांधी की तस्वीर के नीचे ही
जवाब देंहटाएंसच को कदमों तले कुचलते हैं
कदम कदम पर धोखा देते हैं
अपनी बातों से ही मुकरते हैं...
बिलकुल सही कहा है आज यदि वे जीवित होते तो अपने देश का हाल देख बहुत शर्मिंदा होते...
सामयिक रचना है ... लगता नहीं की ये नेता जो अपने आप को गांधी कहते हैं क्या करना चाहते हैं ...
जवाब देंहटाएंकाश यह संभव होता कि हम अपनी मनपसंद जगह जन्म ले सकते हैं तो आज गाँधी जी नहीं रोते :(
जवाब देंहटाएंअंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई.
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंगांधी की तस्वीर के नीचे ही
जवाब देंहटाएंसच को कदमों तले कुचलते हैं
कदम कदम पर धोखा देते हैं
अपनी बातों से ही मुकरते हैं
Gazab kaa kadua sach bayaan kiya hai tumne!
बढ़िया रचना।
जवाब देंहटाएंझूठे और मक्करों को सजा देने के लिए अवतारों का अवतरित होना जरूरी है।
सामयिक और सटीक रचना है.
जवाब देंहटाएंइस कविता का दर्द महसूस कर रहा हूं।
जवाब देंहटाएंदेश कर रहा है ...
एकदम सटीक लेखन , गांधी के देश में आज़ादी के मतलब बदल गए है, लूट की आज़ादी, भ्रस्टता की आज़ादी, कुसंस्कारों को महिमामंडन की आज़ादी , डेली बेली की आज़ादी वाह कैसा देश हुआ है .. अन्ना तुम्ही सम्हालो यदि सम्हाल सको तो ...
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक प्रभावशाली व सार्थक कविता ।
जवाब देंहटाएंवतन के हुक्मरानो , ग़लतफ़हमी में मत रहना
जवाब देंहटाएंये बूढ़ी हड्डियां इस मुल्क का चेहरा बदल देंगी
शायर - पंडित शिवकांत ‘विमल‘
गाँधी का जन्म इसलिए हुआ कि अंधरे में ही सूर्य का प्रकाश अपनी सार्थकता सिद्ध करता है!
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचनाओं में से एक ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
प्रासंगिक सार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
यथार्थ को चित्रित करती सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंkyonki hamare desh ko inki jarurat hai...
जवाब देंहटाएंगर देखा होता आज देश का ये हाल
जवाब देंहटाएंगांधी ने भी अफ़सोस किया होता
कविता के शब्द-शब्द में सच्चाई है।
संतोष तो यही है कि इतने थपेडों व विषमताओं के बावजूद आज भी वे जनमानस, नयी पीढी के लिये सार्थक व प्रेरणाश्रोत बने हुये हैं।
जवाब देंहटाएंगांधी ने तो तब भी अफ़सोस किया था जब आजादी के बाद उनकी इस बात को नहीं माना गया था कि काँग्रेस का कार्य खत्म हो चुका है.
जवाब देंहटाएंलेकिन विषमताओं में ही तो संघर्ष का जवालामुखी धधक उठता है,वंदना जी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.