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गुरुवार, 25 अगस्त 2011

झूठे मक्कारों के देश मे गांधी ने क्यों जनम लिया

किससे करें शिकायत
किससे करें गिला
झूठे मक्कारों के देश मे
गांधी ने क्यों जनम लिया
ये गांधीवादी बनते हैं
जनता पर अत्याचार करते हैं
सिर्फ़ बातों मे ही सब्ज़बाग दिखाते हैं
मगर आचरण मे ना
गांधी के उपदेश लाते हैं
गांधी की तस्वीर के नीचे ही
सच को कदमों तले कुचलते हैं
कदम कदम पर धोखा देते हैं
अपनी बातों से ही मुकरते हैं
गांधी गर होते ज़िन्दा
अपने देश का हाल देख
खुदकुशी वो भी कर लेते
अपने नारों का
अपनी बातों का
अपनी मर्यादाओ का
यूँ तिरस्कार ना देख पाते
जो राह दिखाई थी
उस पर चलने वालों को
तिल तिल कर ना मरते देखा जाता
आतंकवादियों , भ्रष्टाचारियों की खातिर मे
देश के कर्णधारों को
यूँ दण्डवत करते देखते
तो सच मे गांधी आज
लोकतंत्र की परिभाषा पर
खुद ही शर्मिंदा होते
किसकी खातिर संघर्ष किया
किसकी खातिर अनशन किये
किसकी खातिर जाँ कुर्बान की
गर पता होता तो आज
गांधी भी ज़िन्दा होते
और देश पर विदेशियो का
राज होता तो क्या गलत होता
कल भी विदेशी राज करते थे
आज भी विदेशी राज करती है
देश की जनता तो बस
भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढती है
गर गांधी ने ये सब देखा होता
तो सिर शर्म से झुक गया होता
अन्तस मे पीडा उपजी होती
गर कुर्सी के लालची नेताओं की
ये ऐसी मिलीभगत देखी होती
जहाँ कुर्सी की खातिर
जनता से विश्वासघात होता है
वहाँ संविधान भी आज
अपनी किस्मत पर रोता है
कैसे करे इस बात को साबित
जनता को ,जनता के लिये, जनता के द्वारा
ये तो सिर्फ़ एक किताबी तहरीर
बनी है मगर इसमे ना कोई
जनता की भागीदारी है
जनता तो सिर्फ़ प्रयोगों
तक सीमित होती है
गर देखा होता आज देश का ये हाल
गांधी ने भी अफ़सोस किया होता
क्यूँ मैने झूठे मक्कारों धोखेबाजों के
देश मे जनम लिया……………

29 टिप्‍पणियां:

  1. एक समसामयिक कविता.. वाकई वर्तमान हालात से लगता नहीं है कि गाँधी इसी धरती पर पैदा हुए थे...

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  2. बहुत सही कहा , मगर ऐसे देश में ही तो गाँधी , अन्ना की सबसे ज्यादा जरुरत होती है ...गाँधी , अन्ना यानि एक सशक्त नेत्रत्व ....जनता की आवाज ...

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  3. सही कहा..आज गाँघी और अन्ना जैसे कर्म वीरों की जरुरत है......आभार सहित..
    अभिव्यंजना में आप का स्वागत है...

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  4. शुक्रवार --चर्चा मंच :

    चर्चा में खर्चा नहीं, घूमो चर्चा - मंच ||
    रचना प्यारी आपकी, परखें प्यारे पञ्च ||

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  5. यथार्थ को चित्रित करती उम्दा अभिव्यक्ति।

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  6. समसामयिक रचना ..सच ही गांधी जी की आत्मा कलप रही होगी आज के हालात देख कर ..

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  7. गांधी की तस्वीर के नीचे ही
    सच को कदमों तले कुचलते हैं
    कदम कदम पर धोखा देते हैं
    अपनी बातों से ही मुकरते हैं...

    बिलकुल सही कहा है आज यदि वे जीवित होते तो अपने देश का हाल देख बहुत शर्मिंदा होते...

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  8. सामयिक रचना है ... लगता नहीं की ये नेता जो अपने आप को गांधी कहते हैं क्या करना चाहते हैं ...

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  9. काश यह संभव होता कि हम अपनी मनपसंद जगह जन्म ले सकते हैं तो आज गाँधी जी नहीं रोते :(

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  10. अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई.

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  11. गांधी की तस्वीर के नीचे ही
    सच को कदमों तले कुचलते हैं
    कदम कदम पर धोखा देते हैं
    अपनी बातों से ही मुकरते हैं
    Gazab kaa kadua sach bayaan kiya hai tumne!

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  12. बढ़िया रचना।
    झूठे और मक्करों को सजा देने के लिए अवतारों का अवतरित होना जरूरी है।

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  13. इस कविता का दर्द महसूस कर रहा हूं।
    देश कर रहा है ...

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  14. एकदम सटीक लेखन , गांधी के देश में आज़ादी के मतलब बदल गए है, लूट की आज़ादी, भ्रस्टता की आज़ादी, कुसंस्कारों को महिमामंडन की आज़ादी , डेली बेली की आज़ादी वाह कैसा देश हुआ है .. अन्ना तुम्ही सम्हालो यदि सम्हाल सको तो ...

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  15. प्रासंगिक प्रभावशाली व सार्थक कविता ।

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  16. वतन के हुक्मरानो , ग़लतफ़हमी में मत रहना
    ये बूढ़ी हड्डियां इस मुल्क का चेहरा बदल देंगी

    शायर - पंडित शिवकांत ‘विमल‘

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  17. गाँधी का जन्म इसलिए हुआ कि अंधरे में ही सूर्य का प्रकाश अपनी सार्थकता सिद्ध करता है!

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  18. श्रेष्ठ रचनाओं में से एक ||
    बधाई ||

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  19. प्रासंगिक सार्थक रचना....
    सादर बधाई...

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  20. यथार्थ को चित्रित करती सटीक अभिव्यक्ति.

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  21. गर देखा होता आज देश का ये हाल
    गांधी ने भी अफ़सोस किया होता

    कविता के शब्द-शब्द में सच्चाई है।

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  22. संतोष तो यही है कि इतने थपेडों व विषमताओं के बावजूद आज भी वे जनमानस, नयी पीढी के लिये सार्थक व प्रेरणाश्रोत बने हुये हैं।

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  23. गांधी ने तो तब भी अफ़सोस किया था जब आजादी के बाद उनकी इस बात को नहीं माना गया था कि काँग्रेस का कार्य खत्म हो चुका है.
    लेकिन विषमताओं में ही तो संघर्ष का जवालामुखी धधक उठता है,वंदना जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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