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शुक्रवार, 17 जून 2011

जो मानस का मोती बन पाता

ढूंढती हूँ मानस का मोती
शायद कहीं मिल जाए
जो छूट गया है आँगन में
फिर से मुझे मिल जाये

इक नदी सी मुझमे बहती थी
अठखेलियाँ लेती थी
दिन रात की कशमकश में
कोई अधूरी सुबह  मिल जाये

अमराइयों की छांह तले
कहीं कोई शाम मिल जाये
जो मुझे मुझसे मिला जाये
और पीर सारी ले जाए

उर की धधकती ज्वाला में
ना स्नेह का कोई गीत जगा
बरसों तलाशा है जिसको ,वो
 कहीं ना मन का मीत मिला

जिस्म की आग में पिघलते
सारे लोह खण्ड ही मिले
वक्त के तंदूर में जलते
रूह के भग्नावशेष मिले
पर  मन के दरिया में बहता
कोई ना ऐसा गीत मिला
जो मानस का मोती बन पाता
मुझे जीने का सबब दे पाता


30 टिप्‍पणियां:

  1. सही लिखा है आपने

    जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले

    तो अद्भुत है

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  2. जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले
    पर मन के दरिया में बहता
    कोई ना ऐसा गीत मिला
    जो मानस का मोती बन पाता

    मन की छटपटाहट को कहती भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  3. jeene ka sabab aaj hindi blogging hain hum sab lekhoin ke liye. aapki kavitaai dhar tej ho rahi hai. shubh kavya kamneyen.

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  4. जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले
    भावमय करते शब्‍द इन पंक्तियों के ..।

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  5. अच्छा लगा पढ़ना .... लगा खुद को ही पढ़ रही हूँ ....

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  6. जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले ...

    बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..अंतस की वेदना बहुत गहराई तक उतर आयी है...उत्कृष्ट प्रस्तुति..आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह वाह वाह...कितना प्रवाह पूर्ण. बहुत ही अच्छा लगा पढ़ना.
    बहुत सुन्दर शब्द संयोजन.

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  8. आपकी यह मार्मिक और उत्कृष्ट प्रविष्टी कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी है!

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  9. जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले ..बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  10. अमराइयों की छांह तले
    कहीं कोई शाम मिल जाये
    जो मुझे मुझसे मिला जाये
    और पीर सारी ले जाए...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब और भावपूर्ण रचना!

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  11. सुन्दर पंक्तिया , भावमय करती कविता बधाई

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  12. वंदना जी बेहतरीन अंदाज़
    इसी कल कि बगीची कि चर्चा मैं शामिल किया गया है

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  13. जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले
    पर मन के दरिया में बहता
    कोई ना ऐसा गीत मिला
    जो मानस का मोती बन पाता.


    वन्दना जी,
    आपकी बेहतरीन कविता ने ये मशहूर शेर याद दिला दिया........
    ये इश्क नहीं आसां,बस इतना समझ लीजै,
    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।

    आग के दरिया में डूब के जाना हर किसी के वश में नहीं....संवेदना से भरी इस मार्मिक रचना की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

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  14. प्रवाह पूर्ण सुंदर द्रचना।

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  15. ढूंढती हूँ मानस का मोती ....

    बेहतरीन रचना .... संवेदनशील भाव

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  16. जिस्म की आग में पिघलते
    सारे लोह खण्ड ही मिले
    वक्त के तंदूर में जलते
    रूह के भग्नावशेष मिले
    पर मन के दरिया में बहता
    कोई ना ऐसा गीत मिला
    जो मानस का मोती बन पाता
    मुझे जीने का सबब दे पाता


    sundar prastuti vandana ji

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  17. कोई अधूरी सुबह मिल जाए...वाह वंदना जी ...नूतन अभिव्यक्ति ।

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  18. बहुत ही सुन्दर लिखा है वंदना जी...

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  19. बहुत सुन्दर.....बरसों तलाशा है जिसको कहीं न मन का वो मीत मिला......शानदार |

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  20. अमराइयों की छांह तले
    कहीं कोई शाम मिल जाये
    जो मुझे मुझसे मिला जाये
    और पीर सारी ले जाए

    यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
    ----------------------------------------
    कल 21/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
    आपके विचारों का स्वागत है .
    धन्यवाद
    नयी-पुरानी हलचल

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