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सोमवार, 23 मई 2011

एक भरम और तोड़ दिया ?

चलो अच्छा है 
आज
एक भरम और
तोड़ दिया 
तुम ही कहते थे ना
दिल के उस 
हिस्से को मेरा 
वहाँ सिर्फ 
मेरा अधिकार है
वो मेरी 
अमानत है
मगर एक ही पल में
कैसे तुमने
सारे भरम तोड़ दिए
जब माँगा उस हिस्से 
को अपने लिए
तो तुमने मुझे 
गैर बना दिया 
आह ! मोहब्बत
क्यूँ ये भरम 
तोड़ दिया
कम से कम
तब तक 
ज़िन्दा तो थी
मगर अब ज़िन्दगी 
बुलाती नहीं और
मौत  गले 
लगाती नहीं
सीली लकड़ियाँ 
सिर्फ चटक रही हैं
ना बुझती हैं ना जलती हैं

41 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना सुन्दर भाव बहुत खूब.....वंदना जी

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  2. सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

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  3. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं

    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ.

    सादर

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  4. भ्रम था तो टूटना ही था ...मार्मिक अभिव्यक्ति

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  5. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं

    सच्चाई बयाँ कर दी बिलकुल...

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  6. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं

    खूबसूरती से कही गई ये बात ..mujhe बहुत पसंद आई -कभी -कभी दिल कुछ अजीब से भ्रम पाल लेता है --जो तकलीफ ही देते है ?

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  7. क्यूँ ये भरम
    तोड़ दिया
    कम से कम
    तब तक
    ज़िन्दा तो थी
    मगर अब ज़िन्दगी
    बुलाती नहीं और
    मौत गले
    लगाती नहीं

    भ्रम का टूटना ... मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति.........

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  8. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है……. धन्यवाद

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  9. भरम पालने से तो टूट जाना अच्छा है ... सुन्दर रचना !

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  10. बहुत खूब .....शानदार .....सीली लकड़ियाँ....लाजवाब

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  11. ये भ्रम ही होता है, जब यथार्थ की कसौटी पर कसने की बात आती है तो फिर सारे अर्थ बदल जाते हैं. इस लिए ये भ्रम ही था , है और रहेगा.

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  12. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना!

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  13. टूटे भ्रम की वेदना!! मार्मिक अभिव्यक्ति!!

    सुंदर भाव संयोजन!!

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  14. भ्रम बना रहना निहायत जरूरी है, कम से कम रुसवाई का दर्द छिपा रहता है जब टूट जाये तो उस भ्रम को भूलना ही अच्छा , एक बार संपूर्ण दर्द को सहना अच्छा है बार बार की चुभन से , दर्द से सराबोर उदगार बधाई

    जवाब देंहटाएं
  15. भ्रम बना रहना निहायत जरूरी है, कम से कम रुसवाई का दर्द छिपा रहता है जब टूट जाये तो उस भ्रम को भूलना ही अच्छा , एक बार संपूर्ण दर्द को सहना अच्छा है बार बार की चुभन से , दर्द से सराबोर उदगार बधाई

    जवाब देंहटाएं
  16. तोड़ दिया
    कम से कम
    तब तक
    ज़िन्दा तो थी
    मगर अब ज़िन्दगी
    बुलाती नहीं और
    मौत गले
    लगाती नहीं
    बहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं वंदना जी

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  17. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं..

    भ्रम कब तक साथ देते हैं..एक न एक दिन तो उनको टूटना ही होता है...बहुत मार्मिक प्रस्तुति..आभार

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  18. हमेशा की तरह बेहतरीन शब्दों के साथ बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.........आभार !!

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  19. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

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  20. भ्रम की रात छटने के बाद एक नयी सुबह आती है।

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  21. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं
    sunder abhivyakti ..!!

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  22. भ्रम जितनी जल्दी टूट जाए , ठीक ही है ...
    सीली लकड़ियों सी चटकना , ना जलना ना बुझना ...
    सुन्दर शब्दों का प्रयोग !

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  23. क्यूँ ये भरम
    तोड़ दिया
    कम से कम
    तब तक
    ज़िन्दा तो थी
    मगर अब ज़िन्दगी
    बुलाती नहीं और
    मौत गले
    लगाती नहीं
    bahut hi sundar aur bhav purn rachna ......

    जवाब देंहटाएं
  24. charcha manch ke madhyam se aapki yeh rachna padhi sorry padhne me kuch late ho gai.ek bharam tod diya....pahle to sheershak hi laajabab hai,aur prastuti usse bhi shandar hai.last ki lines to wow...

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  25. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं

    गहन भावों का समावेश ।

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  26. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं
    पर सीली लकड़ियाँ आग लम्बे समय तक कायम रखती हैं.
    एहसास की सुन्दर अभिव्यंजना

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  27. सीली लकड़ियाँ धुंआ भी बहुत देतीं हैं...सुलगती रहतीं हैं...अच्छी रचना...

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  28. बेहतरीन रचना,
    अच्छी रचना,

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  29. सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं
    ye panktiyaan man ko bha gayi

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  30. लो अच्छा है
    आज
    एक भरम और
    तोड़ दिया
    ..जिंदगी की ओह पोह के बीच झूलती मनोभावों के सुन्दर प्रस्तुति ...
    ...भ्रम जितना जल्दी टूट जाय वह उतना ही अच्छा है जिंदगी के लिए ....

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  31. मगर अब ज़िन्दगी
    बुलाती नहीं और
    मौत गले
    लगाती नहीं
    सीली लकड़ियाँ
    सिर्फ चटक रही हैं
    ना बुझती हैं ना जलती हैं.

    बहुत अच्छी पंक्तियाँ. बेहतरीन रचना. सुन्दर भाव.

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  32. आपकी रचना पढ़कर....ऐसा लग रहा है मनो आपने तो मेरे मुह से शब्द ही छीन लिए....क्या लिखूं...?कुछ समझ में ही नहीं आता....ऐसा मेरे साथ सिर्फ 2 परिस्थितियों में होता है ...या तो रचना बेहद खराब हो या फिर इतनी उम्दा हो कि कुछ लिखते ही न बने और यक़ीनन ये इतनी उम्दा है कि कुछ लिखते ही नहीं बन रहा....आभार

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  33. बहुत खूब ... भरम में ही रहना चाहिए ... माँगना नही चाहिए ...

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  34. शानदार,बेमिशाल रचना.. बहुत अच्छी लगी

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  35. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
    आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
    --
    बुधवारीय चर्चा मंच

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