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गुरुवार, 5 मई 2011

क्यूँकि मैंने देखा है वक्त को वापस मुड़ते हुए

दोस्तों
आज की इस रचना का जन्म फेसबुक पर एक दोस्त से बात करते हुआ ..........वक्त पर बात चलते - चलते मैंने आखिरी लाइन लिखी और लिखते ही लगा कि ये तो एक कविता का सूत्रपात हो गया .........बस तभी लिखनी शुरू कर दी और जब तैयार हुई तो और भी कमाल हो गया क्यूंकि उसी दिन विजय सपत्ति जी से बात हो रही थी और वो कह रहे थे कि कभी उनके स्टाइल में कविता लिखूं तो मैंने कहा कि सबका अपना स्टाइल होता है कोई किसी को कॉपी नहीं कर सकता मगर जब ये कविता तैयार हुई तो पहली नज़र में लगा जैसे सच में विजय जी की मुराद पूरी हो गयी ..........इसलिए आज मैं ये कविता विजय जी को समर्पित करती हूँ . 




याद है आज भी
वो गली के नुक्कड़ पर
तुम्हारा कुछ देर रुकना
पीछे मुड़ना
दरवाज़े को देखना
और सूनी आँखों से
एक इबारत कह देना
और उसे मैंने
किवाड़ की झिर्री में से
पढ़ लिया था
वो चेहरे पर
शाम का उतर आना
मैंने देखा था
वो आँखों में
समंदर का ठहर जाना
मैंने देखा था
वो लबों पर
ख्वाहिशों का
दफ़न होना
मैंने देखा था
तुम तो इस तरह
मुड कर चल दिए
जैसे कभी
उस शहर
उस गली
उस दरवाज़े
पर कभी ठहरे ना हों
मगर मैं जानती हूँ
तुम आओगे
एक दिन जब
मेरी सांस तुम ले रहे होंगे
तुम आओगे उस दिन
जब मेरी धड़कन
अपने दिल में सुन रहे होंगे
तुम आओगे उस दिन
जब मेरी आँखों का पथराव
अपनी आँखों में देखोगे
मुझे इंतज़ार है आज भी
तुम्हारे लौटने का
लोग कहते हैं
गया वक्त नहीं आता

मगर वक्त भी दोबारा
एक बार जरूर
दस्तक देता है
क्यूँकि मैंने देखा है
वक्त को वापस मुड़ते हुए

41 टिप्‍पणियां:

  1. Vandna,
    मैंने कही पढ़ा था किसी कवियत्री कि कोई नज़्म ,जिसमे उन्होंने लिखा था कि कभी कभी ज़िन्दगी एक मौका और देती है और आज तुम्हारी ये कविता , जीवन के उसी आशा को highlight करती है . इतनी सुन्दर और philosophical poem के लिए मेरी दिल से बधाई और मुझे ये सम्पर्पित करने के लिए मैं तुम्हारा दिल से आभारी हूँ . तुम्हारी कविता के अक्षर जैसे ठहर गए हो समय कि शिला पर !!!!
    बधाई

    विजय

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  2. @ विजय जी
    मुझे उम्मीद नही थी कि मै ऐसा कर पाऊँगी और आपको पसन्द आयी तो लिखना सार्थक हो गया क्योंकि आपको ही समर्पित की है तो कम से कम आपको तो पसन्द आनी ही चाहिये……………वैसे आपने जो अन्तिम पंक्ति लिखी है उसमे भी एक कविता छुपी है और मै चाहूँगी कि आप उसे उसका मुकाम दें तो अच्छा लगेगा।

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  3. मगर वक्‍त भी दोबारा

    एक बार जरूर

    दस्‍तक देता है ...



    बेहतरीन ... बेहतरीन .... ।

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  4. तुम्हारी कविता के अक्षर जैसे ठहर गए हो समय कि शिला पर !!!!

    is par ek kavita jarur likhunga , ye waada raha !!

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  5. बेहद खूबसूरत नज़्म ... इतना सोफ्ट कि लग रहा है समय सिमट आया हो पहलू में...

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  6. वाह, यह तो बहुत सुन्दर कविता है..बधाई.

    ________________________________

    'पाखी की दुनिया' में 4 साल की उम्र में इतना बड़ा इनाम सुन हैरान हो जाएंगे आप.

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  7. गया वक्त नहीं आता
    मगर वक्त भी दोबारा एक बार जरूर
    दस्तक देता है
    क्यूँकि मैंने देखा है
    वक्त को वापस मुड़ते हुए..

    बहुत खूब...बहुत ही बेहतरीन रचना..अंतिम पंक्तियों का कोई ज़वाब नहीं..आभार

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  8. जब जज्बात दिल से आते हैं तो, शब्दों को जोड़ना नहीं पड़ता, वो तो बस यूं ही निकल पड़ते हैं. कब कविता बन जाती है, पता ही नहीं चलता, आरोह, अवरोह, निरन्तरता निश्चलता से प्रवाहित होने लगती है......
    ये कविता मेरी कहानी है ........ बस जुबान आपकी है ............ मगर मेरा एक दर्द और है ............. उसे पढियेगा
    (ये मगरूर वक्त ठहर क्यों नहीं जाता?
    मौत मुझे आये
    सबसे पहले
    हर कोई क्यों
    मुझे छोड़ जाता
    ये वक्त मुड़ता है
    बरबादियों के लिए मेरी
    क्यों न ये,
    मुझे ख़त्म कर देता
    आखिर हर बार क्यों छोड़ देता
    इस बियावान
    मरने बार- बार
    ये मगरूर वक्त ठहर क्यों नहीं जाता?)
    आज जब आपकी ये पंक्तिया पढी तो अपना अश्क मिला, असली कविता ही वह जो अपनी कहानी लगे, इसी को काव्य की पूर्णता कहते हैं? और आज आपने इस कविता के जरिये उसे भी पा लिया.

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  9. मैंने देखा है वक़्त को मुड़ते हुए ..
    वक़्त तो नहीं मुड़ता , मगर उससे जुडी यादें बार- बार लौट आती हैं , दस्तक देती हैं ...शायद उन यादों से जुड़े लोग भी कभी वापस आ जाते होंगे ...
    उम्मीद और आशा की अच्छी कविता !

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  10. मैं कवि नहीं लेकिन कभी कभी ऐसे ही प्रतिक्रिया के क्षणों में बेहतरीन कविताएँ उपजती हैं।

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  11. क्या बात है गज़ब का शब्द संयोजन.
    बहुत प्यारी रचना बन पडी है सच ही.
    लिखते रहिये.अब तो कविता से कविता निकलेगी :) इंतज़ार रहेगा.

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  12. जब मेरी आँखों का पथराव
    अपनी आँखों में देखोगे
    मुझे इंतज़ार है आज भी
    तुम्हारे लौटने का
    ........

    ashawadi kavita

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  13. आप ध्यान दें न दें, समय मुड़कर देखता अवश्य है।

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  14. वंदना जी, बहुत सुन्दर भाव और बहुत खूब कविता. बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर..

    दुनाली पर स्वागत है-
    ‌‌‌ना चाहकर भी

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  15. वो चेहरे पर
    शाम का उतर आना
    मैंने देखा था
    वो आँखों में
    समंदर का ठहर जाना
    मैंने देखा था
    वो लबों पर
    ख्वाहिशों का
    दफ़न होना
    मैंने देखा था
    .........बहुत खूब...बहुत ही बेहतरीन रचना.

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  16. गया वक्त नहीं आता
    मगर वक्त भी दोबारा एक बार जरूर
    दस्तक देता है
    क्यूँकि मैंने देखा है
    वक्त को वापस मुड़ते हुए..

    बहुत ही अच्छी रचना..अंतिम पंक्तियों का कोई ज़वाब नहीं है, "क्यूँकि मैंने देखा है वक्त को वापस मुड़ते हुए" ..आभार

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  17. आपको तो क्लू मिलना चाहिए और रचना तैयार!
    माँ सरस्वती की असीम कृपा है आप के ऊपर!
    बहुत सुन्दर रचना रची है आपने!

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  18. नाजुक रेशों से बुनी हुयी कीमती नज़्म !

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  19. bahut sundar bhavon ko bahut hi sundarta ke sath prastut kiya hai aapne .badhai .

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  20. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं बहुत अच्छी सुन्दर रचना, बधाई ......

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  21. bahut hi sahaj bhaav ko ujaagar karti hui uttam kavita.really kabhi kabhi vaqt apne ko duhraata hai.

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  22. बहुत ही बेहतरीन रचना| धन्यवाद|

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  23. वक्त भी दुबारा जरुर आता है ...सुंदर अभिव्क्ति ..

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  24. बेहतरीन रचना..... वक्त का फिर दस्तक देना ....खूब

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  25. Nihayat sundar aur bhavuk rachana! Ekek shabd wahwaahee kaa haqdaar hai!

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  26. बहुत उम्दा रचना उतर आई..

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  27. बहुत सुन्दर कविता, धन्यवाद

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  28. वक्त सच ही एक बार तो मुड़ता ही है ...बहुत सुन्दर ...भाव ..शब्दों का संयोजन ...कमाल है बस ...खूबसूरत रचना

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  29. क्यूँकि मैंने देखा है
    वक्त को वापस मुड़ते हुए..

    aur vastav mein waqt mudta hai...bas dhairy hona chaahiye....!!
    sundar abhivyakti..!

    vijayji....
    aapko samrpit ye kavita n jaanre kitno ke liye prerna shrot hai...!!
    aapko bhi dhanyvaad..

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  30. वक़्त का वापस मुड़कर देखना..........
    वाह क्या बात है.मगर कहीं इस चक्कर में आदमी वक़्त का इंतज़ार ही करता न रह जाये.इसलिए वक़्त के मुड़ के देखने का इंतज़ार उचित नहीं लगता.

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  31. bahut acchi rachna ...waqt ko murte maine dekha hai,,,,,zindagi hame mauka deti hai.....baht badhai

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  32. वंदना जी,

    बहुत अच्छी लगी ये कविता......कवि को हर जगह कविता ही नज़र आती है.......तभी तो वह इतना भावुक और उदार ह्रदय हो जाता है..........बहुत सुन्दर|

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  33. बस एक जाना की कमी है..जो विजय जी लिखा करते हैं..बधाई

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  34. बेहद प्रभावशाली शब्दांकन, जीवन को करीब से देखने की प्रश्तुती बधाई

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  35. बहुत सुंदर कविता लिखी है.कभी कभी एक शब्द या वाक्य एक सुंदर कविता या गीत को जन्म दे देता है.
    घुघूती बासूती

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