बहुत दिन हुए
तुम नही उतरे
मेरे धरातल पर
देखो तुम्हारे
इंतज़ार मे
मौसम भी
ठहर गया है
मधुमास अभी
बीता नही है
पनघट अभी
रीता नही है
भ्रमर किलोल
कर रहा है
मन मयूर भी
डोल रहा है
पीहू पीहू
पपीहा बोल रहा है
ॠतुराज भी
फ़ाग को
आलिंघनबद्ध किये
कब से खडा है
कब आओगे सजन
देह की देहरी से
मन की डगर तक
कब आओगे सजन
तुम कब आओगे?
तुम नही उतरे
मेरे धरातल पर
देखो तुम्हारे
इंतज़ार मे
मौसम भी
ठहर गया है
मधुमास अभी
बीता नही है
पनघट अभी
रीता नही है
भ्रमर किलोल
कर रहा है
मन मयूर भी
डोल रहा है
पीहू पीहू
पपीहा बोल रहा है
ॠतुराज भी
फ़ाग को
आलिंघनबद्ध किये
कब से खडा है
कब आओगे सजन
देह की देहरी से
मन की डगर तक
कब आओगे सजन
तुम कब आओगे?
virah ki bahut sundar bhavabhivyakti.
जवाब देंहटाएंकब आओगे सजन
जवाब देंहटाएंदेह की देहरी से
मन की डगर तक
कब आओगे सजन
तुम कब आओगे?
--
वियोग शृंगार का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने इस रचना में!
तुम कब आओगे?
जवाब देंहटाएंInsha ALLAH jald .... kyunki intizar bhi kabhi na kabhi khatm ho hi jata hai.
Sundar abhiwykti !
bhtrin sndesh deti rchna mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा की लम्बी राहें।
जवाब देंहटाएंइंतज़ार का फल मीठा होता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंशब्द-रचना से बाँध दिया आपने तो.
शुभ कामनाएं.
सुन्दर विरह रचना
जवाब देंहटाएंइन्तजार... और थोडा सा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये
देह की देहरी से
जवाब देंहटाएंमन की डगर तक
bahut sundar shabdon ka prayog ki hain....wah.
देह की देहरी से
जवाब देंहटाएंमन की डगर तक..
मन तक पहुँचने में ही तो वक्त लगता है ...सुन्दर प्रस्तुति
बहुत कठिन डगर है ..समय तो लगता है न.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता.
वाह!...बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम!
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट.....इंशाल्लाह मुराद जल्द पूरी होगी.....
"देह की देहरी से
जवाब देंहटाएंमन की डगर तक
कब आओगे सजन
तुम कब आओगे?"
बहुत भावपूर्ण इंतज़ार.......!!
"लेकिन बहुत कठिन है,
कि ....
इंतज़ार की घड़ियाँ
काटे नहीं कटतीं....!"
सुन्दर अभिव्यक्ति....
देह की देहरी से
जवाब देंहटाएंमन की डगर तक
भावमय करते शब्द ।
बहुत ही सुंदर एहसासपूर्ण रचना...प्रतीक्षा के पल तो सही में सबसे सुहाना होता है..कुछ कहा ही नहीं जा सकता।
जवाब देंहटाएंआप तो बड़ी मांग कर बैठीं ! कठिन ! दुरूह ! मन तक पहुंचना....बेहद मुश्किल ! क्योंकि स्त्री मन की अथाह गहराई के सामने तो स्वयं देव भी घबराते हैं.. यह नहीं कि कुछ लोग कोशिश नहीं करते, वहाँ तक पहुँचने की...पर बड़ा बिरला है जी स्त्री मन! जैसे ही कोई पहुँचने को होता है...आहट मिलते ही और गहरे चला जाता है ! ये मिज़ाजन गहराई पसंद है. लेकिन ज़रूर करिए बड़ी मांग, और कहिये उनसे कि नापें वो उस अतल गहराई को ! इससे कम पर बात न बनेगी. शुभ दिन.
जवाब देंहटाएंदेह की देहरी से
जवाब देंहटाएंमन की डगर तक॥
कठिन सफ़र लेकिन असर दिखाने वाला ।
प्रभावी पंक्तियाँ..... वियोग की वेदना की गहन अभिव्यक्ति........ सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकब आओगे सजन
जवाब देंहटाएंदेह की देहरी से
मन की डगर तक
कब आओगे सजन
तुम कब आओगे?
विरह वेदना और इंतज़ार के पलों की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
बहुत ही उत्कृष्ट विरह रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
इंतज़ार में अकसर ऐसे प्रश्न काफी होते हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत भावपुर्ण रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंॠतुराज भी
जवाब देंहटाएंफ़ाग को
आलिंघनबद्ध किये
कब से खडा है
रस से सरावोर सुन्दर चित्रण. बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति.
PYAAR KA AAGRAH.....KAB AAOGE...
जवाब देंहटाएंआमंत्रण,निमंत्रण, इज़हार की यह पुकार सचमुच कितनी काव्यमयी है।
जवाब देंहटाएंलम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है.
जवाब देंहटाएंकमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
जवाब देंहटाएंबेहद बेहद बेहद सुंदर भावात्मक रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत भावपुर्ण रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआलिंघनबद्ध किये
जवाब देंहटाएंकब से खडा है
कब आओगे सजन
देह की देहरी से
मन की डगर तक
कब आओगे सजन
तुम कब आओगे?
intjaar man me kai bhav utpan karti ,ati uttam .holi parv ki badhai .