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रविवार, 13 मार्च 2011

संकेत या संदेश ?

वो कहते हैं
बन जाओ
तुम भी
फूहड़
ओढ़ लो
विसंगतियां
ज़माने की
तुम भी लिखो
कुछ ऐसा
जिसमे
उन्माद हो
तुम भी करो
कुछ ऐसा
जिसमे
दोहन हो
तुम भी करो
कुछ ऐसा
जिसमे
विध्वंस हो
बन जाओ
विस्फोटक
और करो
एक बार फिर
नव काव्य सृजन
जिसमे
शिव का तांडव हो
कामदेव का संहार हो
मृदु मधुर
गीतों का ना
समन्वय  हो
आग्नेय लफ़्ज़ों
का प्रहार हो
काम दीप्त ना
उद्दीप्त हो
कंटकाकीर्ण
बाणों का
प्रहार हो
हवाएं तप्त
हो जायें
आसमां दग्ध
हो जायें
सारे मौसम
विलुप्त हो जायें
बस सिर्फ
एक ही मौसम का
साम्राज्य हो
चहुँ ओर
पतझड़ का
आगाज़ हो
पीले पत्ते
सारे झड़ जायें
विष भरे
सभी स्रोत
लुप्त हो जायें
तोड़ देना
मर्यादाएँ
सीमाएं
बँधन
कर देना
इक ऐसा सृजन
फिर ना
विषबेल बढ़ पाएं
प्रलयंकारी
बन जाना
अब ना रोगाणु
पनपने देना
वक्त का
इंतज़ार मत करना
वक्त को तुम ही
पलट देना
देखना फिर
प्रलय के बाद
शुद्ध सात्विक
शांत प्रकृतिस्थ
स्वरूप
नव पल्लव
खिलने लगेंगे
नव सृजन
होने लगेंगे
नव युग का
निर्माण तुम
कर देना
अब ना किसी
देव का
इंतज़ार करना
स्वंय को स्वंय मे
समाधिस्थ कर लेना
और पूर्ण को
पूर्ण मे
स्थापित कर लेना


पता नहीं दोस्तों , ये कविता क्यों लिखी गयी .........अभी 9 तारीख को ही लिखी  थी ..........शायद ईश्वर का कोई सन्देश था इसमें तभी ऐसी कविता लिखी गयी ............शुक्रवार को सुबह से आंसू झर झर बह रहे थे मगर समझ नहीं आ रहा था क्यों ऐसा हो रहा है ? कभी कभी अनहोनी की आशंकाएं हमें पहले ही सूचित कर रही होती हैं मगर हम ही उसका इशारा समझने में सक्षम नहीं हैं .........उस दिन बस सुबह से ये हाल था तो एक रचना भगवान को समर्पित की जिसमे उससे मिलने की पुकार थी वो मैंने फेसबुक पर लगायी ..........इतनी बेचैनी थी कुछ लोगों से वहां बातचीत होती रही और उस दिन वहां ज्यादातर भगवान की सत्ता की ही बात होती रही वर्ना फेसबुक पर कहाँ ऐसी बातें होती हैं और थोड़ी देर में ही ये खबर मिल गयी कि जापान में कुदरत ने अपना कहर बरपाया है ............उसके बाद का तो सबको मालूम है मगर न जाने क्यों ऐसा लगता है कि कई बार ईश्वर हमें संकेत देता है तभी ऐसा सृजन हो पाता है ......... और ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ है ........मैं नहीं जानती क्यूँ मगर मेरे साथ होता है ..........आज से कई साल पहले जब २ ट्रेन टकराई थीं और काफी लोग मारे गए थे तब भी मैं इतनी ही बेचैन हुयी थी ......और तब से रोज सुबह भगवान से पहली प्रार्थना यही करती हूँ कि भगवान दुनिया में सब तरफ सुख शांति बनी रहे ............शायद कोई संकेत है ये ऊपर वाले का हम सबको .....हो सकता है सबके साथ ऐसा होता हो ..........और आज अभी हिंदुस्तान पेपर में बिरला फ़ाउंडेशन पुरस्कार से सम्मानित विश्वनाथ जी कि कविता पढ़ी उसमे भी यही दर्शाया गया था कि "सब कुछ मिट जायेगा , क्यों होगा , कैसे होगा, नहीं पता मगर होगा और इसका पता मुझे तो नहीं है मगर जब मैं मिट जाऊंगा तब भी कुछ बाकी रह जायेगा और जो रह जायेगा वो ही बताएगा कि क्या बचा" ............शायद बिलकुल सच है ये .........आज देखो जापान में जो हुआ है वो शायद इसी का संकेत है कि हमेशा जब भी कुदरत का प्रकोप हुआ है तो सब कुछ मिटने के बाद भी कुछ बाकी बचता है और वो ही आगे की नव सृजन की नींव रखता है.

बस अब यही प्रार्थना है कि कुदरत अब रहम करे और जापानवासियों  को  इस संकट की घडी में हौसला प्रदान करे .

35 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई ऐसा संयोग हो जाता है कभी -कभी ...
    बेवजह उदासी से लगती है , मगर जल्दी ही पता चल जाता है कि यह अनायास नहीं थी ...

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  2. सही कहा आपने कुछ बातों का पूर्वाभास हो जाता है,हमें लगता है कुछ होने वाला है लेकिन क्या ,कब और कहाँ यह एक प्रश्न होता है जिसका उत्तर अचानक प्रकट हो कर चौंका देता है

    हम सभी की हार्दिक संवेदनाएं जापान वासियों के साथ हैं.

    सादर

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  3. कृपा कर रहीं शारदे, देकर शब्दविधान।
    रचनाकारी आपकी, बाँट रही है ज्ञान।।

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  4. अक्‍सर ऐसा पूर्वाभास हो जाता है लेकिन हम अनजान रहते हैं और जब कोई घटना घटती है तब लगता है ये तो हमें आभास हो गया था।
    अच्‍छी रचना।

    हिरोशिमा और नागासाकी जैसी तबाही झेल चुके जापानियों ने अपने बुलन्द हौसले के दम पर दुनिया में एक नयी क्रांति का सूत्रपात किया है। उम्‍मीद है वे जल्द ही इस प्राकृतिक क़हर से उबर कर कहेंगे...ज़िन्दगी ज़िन्दाबाद....

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  5. यह संकेत देता सन्देश था ...अब नव सृजन तो होना ही है ...अच्छी रचना

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  6. शायद इसको ही पूर्वाभास कहते हैं ।
    जापान-वासियों की पुनरनिर्माण करने की क्षमता और उनका मनोबल ही उनकी तरक्की की कहानी कहेगा !

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  7. हम सभी की हार्दिक संवेदनाएं जापान वासियों के साथ हैं.

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  8. ऐसा होता है वंदना जी, कुछ शब्द कभी-कभी अनायास ही दिल से निकल पड़ते है!

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  9. सात्विक मन को कभी कभी घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है..जापान के निवासियों के साथ हम सब की हार्दिक संवेदनाएं हैं..आभार

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  10. जापानवासियों की जीवटता और बढ़े, जूझने की।

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  11. हमारी हार्दिक संवेदनाएं जापानीयो के संग हे, उन के दुख को हम भी महसुस कर रहे हे, भगवान उन्हे हिम्मत दे, ओर रक्षा करे.

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  12. Badee gahan anubhootee hai yah to! Tumhare saath,saath maibhi yahi dua karungi ki,eeshwar aapadgraton ko dilasa,dhairya de.

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  13. विचारोत्तेजक घट्ना!!

    निर्मल मन को संकेत मिलते ही है।

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  14. ईश्वर से प्रार्थना ही की जा सकती है इस दुखद घड़ी में शक्ति प्रदान करने की जो इस भयावह सत्य को झेल सकें.

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  15. हम भी प्रार्थना करते हैं...

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  16. चाहे यह संकेत हो या सन्देश, मगर एक रचना ने जन्म लिया, सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  17. kitna sahi kah rahin hain aap......japan ko lekar har jagah ,har koi shok men dooba hua hai.

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  18. हम सभी की हार्दिक संवेदनाएं जापान वासियों के साथ हैं|

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  19. पतझड़ के बाद बहार आयेगी ,उम्मीद है

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  20. प्राकृतिक आपदाएँ हमें सन्देश देती हैं, प्रकृति से छेड़छाड़ न करने का
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  21. ऐसा हिर्दय-विदारक घटनाए ही दिल को तोड़ देती है --दिल यह सोचने लगता है की ईश्वर है ही नही वरना इतने मासूम लोगो की जानो से खिलवाड़ नही होता ---

    उनकी आत्मा को शान्ति मिले -

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  22. सही कहा वंदना जी .. इश्वर कई तरह से संकेत देता है .. परन्तु हम समझ नहीं पाते .. यदि समझ भी जाएं तो भी लाचार ही रहते हैं ... क्यूंकि होनी के आगे किसी की नहीं चलती ...

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  23. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ....।

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  24. नव सृजन के लिए सचमुच ही पुरानी जंजीरों को तोड़ना पड़ता है।

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  25. वंदना जी ,

    शायद आपके पास कोई कुदरती शक्ति है ....
    सबको यूँ आभास नहीं होता ....
    अब तो सुना है जापान में दूसरा उससे भी बड़ा विध्वंशकारी
    भूकंप आने वाला है .....
    शायद अब दुनिया का अंत आने वाला है ....

    अब ना किसी
    देव का
    इंतज़ार करना
    स्वंय को स्वंय मे
    समाधिस्थ कर लेना

    आपकी पंक्तियाँ सार्थक हुईं .....

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  26. कोमल हृदयों को ईश्वर के संकेत मिलते रहते हैं.
    बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है.
    सलाम.

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  27. आदरणीय वंदना जी
    नमस्कार !
    ...ईश्वर से प्रार्थना ही की जा सकती है

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  28. "संकेत या सन्देश रचना" और आपकी संदर्भित अभिव्यक्ति भी पढ़ी.
    इस सन्दर्भ में मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि आत्मा और परमात्मा के बीच की डोर ही सब अनुभव कराती है. बस दोनों के बीच तादात्म्य होना चाहिए.

    देखना फिर
    प्रलय के बाद
    शुद्ध सात्विक
    शांत प्रकृतिस्थ
    स्वरूप
    नव पल्लव
    खिलने लगेंगे
    नव सृजन
    होने लगेंगे
    - विजय तिवारी 'किसलय'

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