प्रेम के पनघट पर सखी री
कभी गागर भरी ही नही
मन के मधुबन मे
कोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही
किस प्रीत की अलख जगाऊँ
ऐसा देवता मिला ही नही
किस नाम की रट्ना लगाऊँ
कोई जिह्वा पर चढा ही नही
कौन सी कालिन्दी मे डूब जाऊँ
ऐसा तट मिला ही नही
जिसके नाम का गरल पी जाऊँकभी गागर भरी ही नही
मन के मधुबन मे
कोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही
किस प्रीत की अलख जगाऊँ
ऐसा देवता मिला ही नही
किस नाम की रट्ना लगाऊँ
कोई जिह्वा पर चढा ही नही
कौन सी कालिन्दी मे डूब जाऊँ
ऐसा तट मिला ही नही
ऐसा प्रेम मिला ही नहीं
वो जोगी मिला ही नही
जिसकी मै जोगन बन जाऊँ
फिर कैसे पनघट पर सखी री
प्रीत की मै गागर भर लाऊँ
वाह ....बहुत ही सुन्दर शब्द ।
जवाब देंहटाएंमन के मधुबन मे
जवाब देंहटाएंकोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही
per main radha to hun
meera to hun ...
"preet ki gagar" :)
जवाब देंहटाएंbahut khub.......adbhut:)
बहुत सार्थक भावाभिव्यक्ति.सराहनीय प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंजिसके नाम का गरल पी जाऊँ
जवाब देंहटाएंऐसा प्रेम मिला ही नहीं...
सुन्दर रचना है
पसंद आई
बहुत ही खुबसुरत प्रेम भावों में सनी प्रेममयी रचना.........
जवाब देंहटाएंजिसके नाम का गरल पी जाऊं
जवाब देंहटाएंऐसा प्रेमी मिला ही नहीं।
वाह।
बेहतरीन प्रस्तुति।
सुंदर रचना।
बधाई हो आपको।
हमेशा की तरह आपकी एक और सुंदर रचना।
अध्यक्षा महोदया आपको बधाई।
वो जोगी मिला ही नही
जवाब देंहटाएंजिसकी मै जोगन बन जाऊँ
फिर कैसे पनघट पर सखी री
प्रीत की मै गागर भर लाऊँ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।
सुन्दर प्रेम गीत !
जवाब देंहटाएंगोपियाँ तो प्रेम का गागर भर भरकर लाती थीं पनघट से।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक भावाभिव्यक्ति| सराहनीय प्रस्तुति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंगागर भर जाती तो यह अनुभूति कैसे होती ...बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमन के मधुबन मे
जवाब देंहटाएंकोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही..
प्रेमरस में डूबी हुई सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
उचित पात्र मिला या नहीं वह ज़रूरी नहीं है, महत्वपूर्ण है उसकी खोज की चाहत। क्योंकि जहां चाह होती है, वहां राह होती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावमय कविता। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..आभार
जवाब देंहटाएंमन के मधुबन मे
जवाब देंहटाएंकोई कृष्ण मिला ही नही
बहुत सुंदर .....
bahut hi sunder.
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति बहुत पसन्द आई।
gagar men preet bhari si sundar rachna.
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंashok
प्रेम के पनघट पर सखी री
जवाब देंहटाएंकभी गागर भरी ही नही.
या तो अच्छा हुआ.
प्यास मेरी जो बुझ गई होती
जिंदगी फिर न ज़िन्दगी होती.
भावपूर्ण कविता के लिए बधाई.
कृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंमन के मधुबन मे
जवाब देंहटाएंकोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. इस खोज में ही जीवन व्यतीत होना है. बहुत खूब.
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
जवाब देंहटाएंऐसी बंसी बजी ही नही..
प्रेमरस में डूबी हुई सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
जवाब देंहटाएंऐसी बंसी बजी ही नही
वाह, अति सुंदर।
इस कविता में भावों की मौलिकता अच्छी लगी।
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जवाब देंहटाएंजिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही...
A bitter truth !
A woman submits herself only to a loving , caring and affectionate man . Unfortunately such lot is extinct.
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जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
जवाब देंहटाएंऐसी बंसी बजी ही नही
sundar...
आपने तो गागर में सागर ही भर दिया भावों का दर्द उंडेलकर .मन के मधुबन में कृष्ण भी मिलेंगे और उनकी बंसी भी बजेगी.आपकी आस इतनी गहरी और मुखर है तो कृष्ण कैसे निराश कर सकते हैं.वही तो कहलवा रहे हैं आपसे .
जवाब देंहटाएंWah,Vandana wah! Kya gazab kaa likhtee ho!Bas,padhtehee rah jatee hun!
जवाब देंहटाएंजिसके नाम का गरल पी जाऊं ,
जवाब देंहटाएंऐसा प्रेम मिला ही नहीं ...
मन के मधुबन में
कोई कृष्ण मिला ही नहीं ..
राधा और गोपियों को भी मिला कहाँ था , वह तो उनमे ही था !
सुन्दर गीत !
हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
उनमें ही तासीर ना थी जलाने को,
जवाब देंहटाएंहम तो कबके तैयार थे मिट जाने को ।
मन के मधुबन मे
जवाब देंहटाएंकोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही
ati uttam ,krishn kahan milte hai sabko aur is yug me namumkin .phir bhi aas hai krishndhara bah chale to pawan ho jaye ....
समय के धरातल पर
जवाब देंहटाएंकवितायें उगाना छोड़ो कवि
वक्त की नब्ज़ को ज़रा पहचानो
अब कहाँ फूल बागों में खिलते हैं
अब कहाँ आकाश में उन्मुक्त पंछी उड़ते हैं
Uttam baat kahee aapne.
sirf sundar kahunga to theek nahi honga , is baar bahut hi accch prayog kiya hia bimbo ka .. kavita me praan foonkh diya hai tumhari imagination aur shabdo ke prayog ne ... mera salaam kabul karo ji
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