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मंगलवार, 9 नवंबर 2010

मैं और मेरी पीड़ा

मैं और मेरी पीड़ा
एक दूसरे के 
पर्याय बन गए हैं
पीड़ा मेरा निजी
अनुभव है
मेरे जीवन का
अवलंबन है
बिना पीड़ा के
मुझे अस्तित्वबोध
नहीं होता
अगर किसी दिन 
पीड़ा में कमी
आ जाये तो
एक शून्यता का
आभास होता है
अगर अपने निज को
सार्वजानिक कर दूं 
तो मुझमे मेरा
क्या बचेगा?
सार्वजानिक होने 
के बाद तो
रोज मेरी 
पीड़ा का 
चीरहरण होगा 
और मैं 
चौराहे पर
खडी खुद को
अस्तित्वविहीन 
महसूस करूंगी 
पीड़ा मेरा नितांत
निजी अनुभव है
अब पीड़ा को भी
पीड़ा होती है
अगर मुझे 
पीड़ा में 
डूबा ना देखे तो
कभी कभी तो
पता ही 
नहीं चलता
पीड़ा मुझमे है 
या पीड़ा ही 
बन गयी हूँ मैं

51 टिप्‍पणियां:

  1. वन्दना ,दिल को छू गयी कविता। इस कविता को समर्पितएक शेर----
    करूँ क्या मैं बिना गम ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
    मुझे अब आँसूयों से दुश्मनी अच्छी नही लगती
    शुभकामनायें।

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  2. बेहद मार्मिक...
    सच कहें तो पीड़ा का रिश्ता ही सच्चा लगता है...

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  3. सच में पीड़ा जिन्दगी का ऐसा अनुभव है , जिसे सिर्फ व्यक्ति महसूस करता है , बिना पीड़ा के व्यक्ति जिन्दगी की सचाइयों का एहसास नहीं कर पाता..आपने बहुत सुंदर अंदाज में पीड़ा को नए अर्थ में अभिव्यक्त किया है..सुंदर प्रस्तुति ...शुभकामनायें

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  4. वंदना जी..शुभप्रभात... रचना बहुत ही सुन्दर..पर पीड़ा सुबह बहुत दिल दुखती है... कुछ जिंदगी की भी बात हो जाये... शुभकामनायें...

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  5. पीड़ा, दर्द या गम इस तरह एकाकार हो गए हैं
    गम के बिना जिंदगी यूँ लगी खाली कोई कमरा हो जैसे ...
    मगर हम तो यही दुआ करेंगे की खुशियाँ आपकी साथी बने ...!

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  6. सिर्फ इतना ही कहूँगा मैं ....जिब्रान साहब की कलम से....." अपने दर्द के काफी अंश को तुम खुद चुनते हो".......अगर तुमने सुखी होने का फैसला कर लिया है तो कौन है फिर जो तुम्हे दुःख दे सकता है और अगर तुमने दुःख चुन लिया है तो कौन है फिर जो तुम्हे सुख दे सकता है |

    तुम दूसरों को भी वही दे सकते हो स्वय तुम्हारे पास है |

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  7. पीड़ाओं के थपेड़े जब इंसान खाता है तभी तो उसका सही स्वरूप बाहर आता है।

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  8. आज तुम्हारी रचना पढ़ कर अपनी लिखी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं ....तो आज बस वही ........


    पीड़ा से लड़ना
    मैंने सीखा है
    पीड़ा को दास
    बनाना सीखा है
    फिर मैं
    पीड़ा से कैसे
    डर जाऊं
    जब उस पर
    अधिकार जमाना
    सीखा है ........

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  9. कई बार खुशियाँ वो सबकुछ नहीं दे पति जो पीड़ाएं दे जाती हैं. खुशियाँ ज़िन्दगी को एक ठहराव दे देती हैं और पीड़ा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है. कई मायनों में पीड़ा ख़ुशी से ज्यादा खुशदायी लगती हैं. खैर, सुन्दर प्रस्तुति!

    आइना मुझसे मेरी पहचान मांगता है

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  10. मैं इमरान जी की बात से सहमत हूँ ... ये हमारे पे निर्भर करता है की हम अपने लिए क्या चुनते हैं ...

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  11. सुन्दर कविता.. दिल में गहरे समा गई..
    "अगर मुझे
    पीड़ा में
    डूबा ना देखे तो
    कभी कभी तो
    पता ही
    नहीं चलता
    पीड़ा मुझमे है
    या पीड़ा ही
    बन गयी हूँ मैं"
    ....पीड़ा की अदभुद विवेचना !

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  12. मुझसे कही सुखी है पीड़ा
    आंसू के संग ब्याह रचा कर
    उठती पीर छलकते आंसू
    छुप-छुप मिलते नैन बचा कर
    वंदना जी आपकी लेखनी में जादू है ......... सीधे असर करता है

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  13. maarmik...insaan khushiyon ke vina jee sakta hai par dukh-dard ke vina bilkul nahi....

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  14. dard mere gaan ban ja
    dard se hi sukh ka srot
    dard se hi sukun tak ki yaatra
    dard na ho to sukh kaisa
    tabhi to kaha hai
    dard mere gaan ban ja

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  15. dard jab had se gujar jaaye to dava ban jaata hai ... samvedansheel rachna.

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  16. कभी कभी तो
    पता ही
    नहीं चलता
    पीड़ा मुझमे है
    या पीड़ा ही
    बन गयी हूँ मैं
    --
    वाह बहुत खूब लिखा है आपने!
    शायद हर नारी की यही कहानी है!
    --
    इस रचना को पढ़कर तो यह लाइने याद आ गईं-
    --
    साड़़ी बिच नारी है कि नारी बिच साड़ी है,
    नारी की ही साड़ी है या साड़ी की ही नारी है।।

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  17. .

    पीड़ा ही तो है जो अपनी है... कोई नहीं छीनेगा इसे !

    दर्द कभी नहीं बांटना नहीं चाहिए किसी से। समझने वाले विरले ही होते हैं। शेष तो चीर हरण ही करते हैं, पीड़ा का भी । बहुत सत्य लिखा है।

    .

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  18. पीडा को इतना अपनापन तो शायद ही किसी से मिला हो
    बहुत खूबसूरत रचना |

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  19. PIDA.......................YAQEENAN ISMEN AAWAZ NAHIN HOTI MAGAR ISKI CHOT BAHUT GAHARI HOTI HAI....!!!

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  20. पहली बार आपका ब्लॉग देखा.....अनुपम....! आपने मेरे लिखे पर बहुत आत्मीय सी टिप्पणी दी है, हार्दिक आभार।

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  21. पीड़ा की अग्नि कई बार हमारी जिंदगी को संवारती और निखारती है. उसे रूपांतरित भी करती है, जैसे कुंदन आग में ही जलकर निखरता है. बेहद गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  22. सच तो यह है कि पीड़ा ही जीवन को क्रीड़ा की तरह जीने का रास्‍ता दिखाती है।

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  23. 4/10

    "अब दर्द मुझे होता है दर्द न होने से"
    इस प्रसिद्द पंक्ति की प्रतिध्वनि है आपकी रचना.
    कविता में सहजता नहीं है .. बनावटीपन का आभास होता है ... जबरन दर्द और पीड़ा उत्पन्न करने की कोशिश.

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  24. वेदना से भरी मन की पुकार............बहुत सुन्दर.

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  25. पीड़ा मन की परिस्थिति है, मन और मैं तो अलग अलग हैं।

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  26. पीड़ा इस बात का प्रमाण है की "अभी" हम जिन्दा हैं. धन्यवाद.

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  27. Hriday sparshi kavita.Pira ko dekha nahi ja sakata bulki mahsoos kiya ja sakata hai.Good post.

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  28. अब पीड़ा को भी पीड़ा होती है सार्थक रचना ..........

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  29. मुझे ऐसा लगा कि यह कविता मेरे ऊपर है....

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  30. पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति।

    शुभकामनाएं।

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  31. पीड़ा मुझमे है
    या पीड़ा ही
    बन गयी हूँ मैं"
    सचमुच बहुत ही मार्मिक रचना

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  32. वंदना जी,
    पीड़ा को नई अभिव्यक्ति के सांचे में ढालने के लिए बधाई!
    बहुत ही सुन्दर रचना !
    ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  33. क्या बात है। तुझ में पीडा ढूंढू या पीडा में तुझे ढूंढू। नीरज जी ने लिखा था ’मै पीडा का राजकुंवर हूं’। पीडा में कमी हो तो शून्यता का आभास होता है ं। पंकज श्रीवास्तव की भी कविता कुछ ऐसे ही तथ्यों पर है जब नही होता कोई हादसा मेरे साथ
    या दर्द से बढ़ जाती हैं दूरियां मेरी
    तो बढ़ जाती है वेचैनी मेरी
    परेशानी मेरी

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  34. " मैं और मेरी पीड़ा एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं ...."
    कम शब्दों में बढ़िया भाव ... मार्मिक रचना ...

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  35. aatma peeda ki sej par soti hui hi parmatmprapti ki or agrasar hoti hai!
    maarmik kavita!

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  36. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत ही अच्छा लगा. धन्यवाद. शांति, सादगी और सौंदर्य से परिपूर्ण रचनाएँ - जो अपनी पीड़ा में भी खुश व संतुष्ट दिखती हैं...! महादेवी वर्मा कि रचनाएँ याद हो आईं.

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  37. अति सुन्दर एवं हृदयस्पर्शी ! पीड़ा से बहुत गहरी दोस्ती कर ली है आपने ऐसा लगता है ! इतनी गहन अभिव्यक्ति पीड़ा से ही प्रस्फुटित हो सकती है ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  38. अपनी ही एक रचना से टिपण्णी देना चाहूँगा -

    जिंदगी का दर्द से रिश्ता अजीब है
    आँखों से आंसुओं की तरह बस करीब है
    वो चाहते ही क्या जो अधूरी ना रह गयी
    जिसको मिला है सब वही सबसे गरीब है
    जो खुरदरी जमीं को ना महसूस कर सका
    उसका नरम बिछोना ही उसका सलीब है
    कैसे सुखी हैं लोग जिन्हें कोई ग़म नहीं
    जिनको मिलें हैं दर्द ,बड़े खुशनसीब हैं

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  39. BAHUT ACHI LAGI YE KAVITA...DUKH AUR SUKH EK HI SIKKE KE DO PAHLU HAI...EK KE SATH DUSRA BHANDHA HAI...DONO KA HI JEEVAN ME RAHNA JARURI HAI...

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  40. हृदयस्पर्शी रचना। पीडा मूर्त हो गई है। आभार!

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  41. aap kikavita sirf kavita nahi ye ak bandhan hai un sabhi dard sahane walo ka jinke jeewan mai pidda ka mahatav hai

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  42. आभार, लिंक देने के लिए लगा मैंने अपने आपको लिख दिया ......!
    यहाँ कुछ कहने का दिल नहीं करता वंदना !
    हार्दिक शुभकामनायें

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