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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

अब कोई मोड़ तेरी राह तक नहीं मुड़ता..................

अब मंजिलों ने 
रास्ते बदल
लिए हैं 
तुम्हारे 
मोड़ पर
कभी मिलेंगे
ही नहीं 
जो राह में 
बिखरे पड़े थे 
निशाँ सफ़र के
वो भी अब 
दिखेंगे नहीं
मोहब्बत के
ज़ख्मो को
सुखाना 
सीख लिया
अब रोज 
आँच पर 
धीमे धीमे
पकाती हूँ 
 ताकि 
किसी भी 
मोड़ पर
कोई बादल
ना भिगो 
दे इन्हें  
एक यही तो 
आखिरी 
निशाँ बचे 
है मोहब्बत 
की रुसवाई के 
और तेरी 
बेवफाई के 
अब कोई 
मोड़ तेरी
राह तक
नहीं मुड़ता

36 टिप्‍पणियां:

  1. Kitne mushkil hote hain aise mod...! Dard hee dard,tees hee tes bhari padee hai rachana me!

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  2. शायराना अंदाज़ हैं , बहुत खूब , दिल है कि मानता ही नहीं ....जाता जरुर है उन्हीं मोड़ों की तरफ ...

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  3. अब कोई
    मोड़ तेरी
    राह तक
    नहीं मुड़ता
    --
    बहुत सुन्दर रचना!
    वाकई में जिन्दगी को ऐसे न जाने कितने मोड़ से दो-चार होना पड़ता है!

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  4. इतना दर्द?
    अरे प्यार करने वाले इस जहां में और भी हैं.. आशा है कि आपको भी कोई इंसान जल्द ही मिले..

    आभार

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  5. वाह........बेहद खुबसूरत रचना !!
    सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें........

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  6. रास्ते मुड़ते हैं और उसके लिए विकल्प खोज लेते हैं, किसी चीज के खो जाने पर उसके इतर विकल्प भी हैं और उसमें खोज लेते हैं वे खुशियाँ. दिल की गहराइयों से निकली पीड़ा को बखूबी चित्रित किया है.

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  7. 3/10

    बस ठीक-ठाक
    दर्द-ए-दिल की दर्द भरी दास्ताँ लेकिन दर्द उभरा नहीं

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  8. काफी दर्द उभर आया है आपकी रचना में....

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  9. ये क्‍या फैसला ले लिया आपने। याद कीजिए कभी तो प्‍यार था, और प्‍यार था- ऐसा कैसे कहा जा सकता है। प्‍यार जब था में बदल जाये तो वस्‍तुत: वह तो प्‍यार था ही नहीं। प्‍यार है और सिर्फ है। और जब प्‍यार है तो किसी को ऐसे कैसे ठुकराया जा सकता है। इतने भी तो निष्‍ठुर न बनिए अपने सबसे प्रिय के लिए। और हां, उसे सजा देकर तो आज भी खुद को ही सजा देना होगा। हां, उसकी गलती अवश्‍य थी पर इसके लिए तो आपको उसे मौके पर मौके देने चाहिए थे। याद है न- दुश्‍मन को भी एक मौका दिया जाता है। फिर तो वह अपना ही है। अपना भी क्‍या कहें, अपना ही जिगर है, या कहें तो खुद आप ही हैं। सोचिए खुद पर इतना बड़ा जुल्‍म क्‍या सही है। हम अपने अनुरोध करते हैं कि अपने फैसले बदल डालिए। जैसे भी हो एक मौका और मिलना चाहिए। इसे हमारी पैरवी भी समझ सकती हैं...।

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  10. वंदना जी,

    आपके चिरपरिचित अंदाज़ में ये नई पोस्ट बहुत अच्छी लगी......

    "मोहब्बत के
    ज़ख्मो को
    सुखाना
    सीख लिया"

    एक बात ........ये ज़ख्म सूखते कहाँ हैं....ये तो वक़्त के साथ-साथ नासूर बन जाते है........शुभकामनाये|

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  11. किसी राह पर
    मिलोगे तुम
    इस बात की उम्मीद तो नहीं

    लेकिन अगर मिल गए तो क्या करूंगी?

    वंदना जी,इसी विषय पर अगली कविता लिखिए.

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  12. कितना दर्द भरा है नज़्म में...मन को अंदर तक भिगो देता है..बहुत सुन्दर..आभार

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  13. इस तरह के रास्ते का यही हश्र होता है।

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  14. "सुखाना
    सीख लिया
    अब रोज
    आँच पर
    धीमे धीमे
    पकाती हूँ
    ताकि
    किसी भी
    मोड़ पर
    कोई बादल
    ना भिगो
    दे इन्हें "... कोई ज़क्मों को भी इतनी शिद्दत से सुखायेगा... कितना गहरा प्यार होगा उसका सोच सोच कर मन सिहर उठा... बहुत गंभीर और प्रेम में पगी कविता...

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  15. संवेदनशील रचना। आज मौन ही हूं।
    न रास्ता न अब रहनुमा चाहता हूं
    न‍ई कोई बांगे-दिरा चाहता हूं
    चिराग़ों का दुश्मन नहीं हूं मैं लेकिन
    हवाओं का रुख़ मोड़ना चाहता हूं

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  16. वंदन जी, आपकी कविता में सचमुच जिंदगी के दीदार हो जाते हैं।

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  17. @राजीव सिंह जी,
    आपकी फ़रमाईश कल पूरी कर रही हूँ ……………आपके विषय पर नयी कविता कल पढियेगा।

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  18. रुस्वाई और बेवफाई के बाद रह भी क्या जाता है मुडने के लिये। अच्छी लगी कविता। शुभकामनायें।

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  19. ओह ये तो बेहद नाउम्मीदियों पर आधारित कविता है !

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  20. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............मन को छू गई............

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  21. प्रेम में टूटते मन की किर्चियों के दंश को मन के किसी कोने में दफ़्न करके अतीतोन्मुखी बने रहने की बजाय अपना रास्ता खुद तलाशते मन की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  22. बहुत अच्छा पोस्ट !

    ग्राम-चौपाल में पढ़ें...........

    "अनाड़ी ब्लोगर का शतकीय पोस्ट" http://www.ashokbajaj.com/

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  23. बहुत दर्द उभर आया है.....बहुत ही अच्छी रचना.

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  24. अब कोई
    मोड़ तेरी
    राह तक
    नहीं मुड़ता

    -बहुत ही उम्दा.

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  25. अब कोई
    मोड़ तेरी
    राह तक
    नहीं मुड़ता

    बेहतरीन अभिव्यक्ति ...

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  26. "मोहब्बत के
    ज़ख्मो को
    सुखाना
    सीख लिया"

    बेहद खुबसूरत नज़्म!

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  27. bohot touching nazm hai...aakihri line to bas...uff...beautiful

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  28. ज़ख्मो को
    सुखाना
    सीख लिया
    अब रोज
    आँच पर
    धीमे धीमे
    पकाती हूँ
    ताकि
    किसी भी
    मोड़ पर
    कोई बादल
    ना भिगो
    दे इन्हें

    bahut bhavpurn abhivyakti ....par kya sach hi sookh payenge ?

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