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बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

"वर्जित फल"

नज़रों का स्पर्श भी
ना गंवारा हो जिसे
छूने या देखने 
की कोशिश
तो दूर की  बात है
हवा के स्पर्श की भी
जिसे चाहत ना हो
रौशनी का स्पर्श भी

जलाता  हो जिसे
रूह के मिलन को भी
जो अगले जन्म का मोहताज़ बना दे
इस जन्म की हर रस्म निभा दे
मगर अपने साये को भी जो
किसी साए का स्पर्श होने ना दे
एक अपना अलग
मुकाम जो बना ले
चाहने वालों को
मिलकर भी ना मिले
हर चाहत पर जो पहरे बिठा दे
किसी ने कहा है
मुझे
तुम ऐसा
"वर्जित फल" हो

32 टिप्‍पणियां:

  1. हर चाहत पर जो
    पहरे बिठा दे
    किसी ने कहा है
    मुझे
    तुम ऐसा
    "वर्जित फल" हो
    --
    इस अछूते विषय पर रचनाकारी करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार!

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  2. आदरणीया वंदना जी
    सुंदर भाव जगाती कविता।
    सुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है

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  3. Kiseene kaha hai muze tum aisa warjit fal ho. Wah bahut shandar prastuti.

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  4. रूह के मिलन को भी
    जो अगले जन्म का
    मोहताज़ बना दे....

    आज के समाज की मनोदशा का बहुत ही मर्मस्पर्शी चित्रण...कविता के भाव अंतर्मन को गहराई तक छू जाते हैं और सोचने को विवश कर देते हैं...लाज़वाब प्रस्तुति...बधाई..

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  5. vandana ji halanki kavitaa ke bhavo me kafi dhukh ki anubhuti hai fir bhi kavita apne bhavo se dusre ke dil me vahi dard paida karne mei saksham hai..vaah..lajwaab kavita..

    जवाब देंहटाएं
  6. vandana ji halanki kavitaa ke bhavo me kafi dhukh ki anubhuti hai fir bhi kavita apne bhavo se dusre ke dil me vahi dard paida karne mei saksham hai..vaah..lajwaab kavita..

    जवाब देंहटाएं
  7. ओह ..यही निकलता है मुंह से आखिरी पंक्ति तक पहुँचते हुए.
    बहुत अच्छा लिखा है.

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  8. nice writing
    and if u free so visit my blog

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  9. वर्जित फल के कारण ही आज यह धरती है.. और हम हैं.. ऐसे में कौन कह सकता है आपको वर्जित फल.. सुंदर प्रवाहमयी कविता...जितने सहज शब्द आपकी कविता में हैं.. कविता कहीं उस से अधिक गंभीर है.. बधाई एवं शुभकामना..

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  10. यह कविता पछली कविता की अगली कड़ी मुझे लगी .पिछली कविता में आपने फ़रमाया था कि आपको ये मंज़ूर नहीं कि कोई ऐसा पुरुष आपको एहसासों में भी छुए जिसे आप न चाहती हों. कई लोगो को यह बात पची नहीं थी. लेकिन चाहे वो स्त्री हो या पुरुष, किसी सच्चे इंसान को यह अच्छा नहीं लगेगा कि कोई एकतरफा प्यार उससे करे.आपको जिसने भी वर्जित फल कहा, वह गलत है, क्योंकि उसने आपके भावनाओं को समझा ही नहीं.

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  11. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    साहित्यकार-6
    सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  12. मगर अपने साये
    को भी जो
    किसी साए का
    स्पर्श होने ना दे

    फल में वर्जनियता नहीं होती वरन हम ही उसे वर्ज्य वना देते हैं.
    अत्यंत सुन्दर भाव की रचना

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  13. भावानात्मक अभिव्यक्ति. बहुत ही खूबसूरती से बयान कर दी ये दास्ताँ

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  14. समाज की मर्यादों का मार्मिक चित्रण है इस रचना में .... गहरी संवेदनाए हैं ...

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  15. @ Vandana ji :
    "एक सा दिल सबके पास होता है,
    फिर क्यों नहीं सब पर विश्वास होता है।
    इंसान चाहें कितना ही "आम" क्यों ना हो,
    "वह" किसी ना किसी के लिए ज़रूर "खास" होता है।"
    yeh lines meri likhi nahi hain, yeh ek Newspaper me maine padi thi...

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  16. इस कविता का नाम वर्जित फल की चाह भी हो सकता था :) बहरहाल अच्छी कविता !

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  17. हर चाहत पर जो
    पहरे बिठा दे
    किसी ने कहा है
    मुझे
    तुम ऐसा
    "वर्जित फल" हो
    बहुत उम्दा शब्द चयन..... आखिरी के ये दो शब्द तो बस निशब्द कर गए .....

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  18. कविता में नए प्रयोग...वर्जित फल...अच्छा लगा सुनकर ...बधाई.


    __________________
    'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.

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  19. वंदना जी,

    हर बार की तरह लाजवाब........देर से आने की माफ़ी.....रचना बहुत ही सुन्दर लगी........इस पूरी रचना में मेरे ज़हन में अगर कोई अक्स उभर रहा है तो वो सिर्फ और सिर्फ "महात्मा बुद्ध" का है....ये सारी बातें उन पर लागू हैं ...सिवाय "वर्जित फल" के .....क्यूंकि मेरी नज़र में सिर्फ वही एक फल थे जो वर्जित नहीं था.................आखिर में सिर्फ इतना की ये मेरा नजरिया है ...मुझे ऐसा लगा इसलिए मैंने ऐसा कह दिया ...हो सकता है आप या कोई और मुझसे इत्तेफाक न रखे........कोई गलती हुई हो तो माफ़ किजिएगा|

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  20. संवेदनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति.

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  21. तुम ऐसा
    "वर्जित फल" हो
    नारी तो सदा से ही वर्जित फल रही है। सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।

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