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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

कुछ तो निशाँ पड़े होंगे .......................

तुम्हारे घर की 
चौखट पर 
आस का दीप 
जलाये पड़ा 
मेरा मन
और रसोई में 
खनकती 
चूड़ियों की खनक 
घर के आँगन में
छम- छम करती 
पायल की छनक
और बैठक में
गूंजती खिलखिलाहट 
कभी चीखती
चिल्लाती , हँसती 
मुस्कुराती
कभी ख़ामोशी 
की आवाज़
और बिस्तर के
एक छोर पर
प्यार , मनुहार
और दूसरे छोर पर
सिसकते , तड़पते 
पलों का हिसाब
ये तो कण -कण में
बिखरे अहसास 
और इन सबसे अलग
तुम्हारे तसव्वुर में
तुम्हारे ख्यालों में
तुम्हारे मन में 
बसी वो 
जीती -जागती 
प्रतिमा
जिसकी रौशनी 
से रोशन
तुम्हारे दिल का
हर कोना
कैसे इतने सारे
भीगे  मौसमों 
में से अपना
मौसम ढूँढ 
पाओगे
कैसे समेटोगे
उन यादों को
जो तुम्हारे
वजूद का 
जीता -जागता 
हिस्सा  हैं 
कैसे मेरी 
यादों के 
बिखरे सामान
को समेट 
पाओगे
देखो तुम्हारा 
घर मैंने कैसे
अपनी यादों से 
भर दिया है 
हर कोने में
मेरा ही अक्स
चस्पां है
तन के बँधन
भले ही टूट जायें
मन के बन्धनों 
से कैसे खुद को
आज़ाद कर पाओगे
आखिर इक 
उम्र गुजारी है
हमने साथ साथ
कुछ तो निशाँ पड़े होंगे .......................

47 टिप्‍पणियां:

  1. तन के बँधन
    भले ही टूट जायें
    मन के बन्धनों
    से कैसे खुद को
    आज़ाद कर पाओगे
    आखिर इक
    उम्र गुजारी है
    हमने साथ साथ
    कुछ तो निशाँ पड़े होंगे ......................... प्रेम मे तन तो गौण हो जाता है और मन ही रह जाता है प्रधान ... मन नही तो प्रेम नही... सुन्दर कविता... मन को छू गई...

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  2. आखिर इक
    उम्र गुजारी है
    हमने साथ साथ
    कुछ तो निशाँ पड़े होंगे ................

    वंदना जी बहुत ही सुंदर कविता है ! एक एक शब्द मानो
    जी गए हों ! पढने के बाद लगता है कि फिर से एक बार और !

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  3. साथ साथ चलने के निशां मन पर पड़ते हैं।

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  4. वाह...वाह...वाह....
    इसके सिवा और क्या कहूँ ?????

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  5. अक्सर ही आपकी रचनाएं ऐसी हुआ करती हैं,जिन्हें मुझे कईयों को अग्रेसित करना पड़ता है...क्योंकि आपकी रचनाओं में कईयों का समग्र जीवन और भाव संसार बसा होता है...

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  6. कैसे मेरी
    यादों के
    बिखरे सामान
    को समेट
    पाओगे
    यादों को समेट पाना; स्मृतियों को विस्मृत कर पाना; एहसासों से परे हो पाना आसान तो नही है.
    सुन्दर रचना .. भावपूर्ण

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  7. तन के बँधन
    भले ही टूट जायें
    मन के बन्धनों
    से कैसे खुद को
    आज़ाद कर पाओगे ...

    सच है मन के बंधन नही काटे जा सकते ... मार्णिक रचना ...

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  8. ओह ...बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति कर दी है ...

    कभी तो जायेगी नज़र इस निशानों पर ...

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  9. .

    तन के बँधन
    भले ही टूट जायें
    मन के बन्धनों
    से कैसे खुद को
    आज़ाद कर पाओगे....

    प्रशंसनीय रचना ।

    .

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  10. आखिर इक
    उम्र गुजारी है
    हमने साथ साथ
    कुछ तो निशाँ पड़े होंगे .

    -वाह!! बहुत कोमल भाव!

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  11. waaah......
    dil se irf ek yahi shabd nikla bandna ji
    ek ek shabd jaise mujhse prashn kar raha ho ????
    or mai anutratit !!!!
    ktna sab kuch or main sochta tha ki kya hua jab tun nahi hongi .....
    galat tha main

    bahu hi sundar rachna
    badhai..!

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  12. In nishanon se ham kahan aazaad ho pate hain?
    Badi khoobsoorati aur kushaltase tumne apni baat kahi hai! Bahut khoob!

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  13. हाँ वो अमिट चिन्ह वो निशान ताजिंदगी रहेंगे.. इस संवेदनशील कविता पर बधाई मैम..

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  14. वंदना जी,

    शानदार रचना .........बहुत खूबसूरती से अहसासों को लफ़्ज़ों में पिरोया है ....वाह....वाह ..........सच कुछ निशान कभी नहीं मिटते |

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  15. विलक्षण रचनाधर्मिता....बधाई !!

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  16. कुछ तो निशाँ पड़े होंगे....एक कसक छोडती रचना....
    शुभकामनाएं...

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  17. कविता पढ़ते हुए गुलजार साहब की फिल्‍म इजाजत का गाना याद आ गया-
    मेरा कुछ सामान
    तुम्‍हारे पास पड़ा है।

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  18. भावनाओं के बहाव में बहालेजाने वाली बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार...

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  19. अमिट निशान हृदय की दीवारों पर
    छलके कुछ मोती नयनो के कोर किनारों पर
    सुन्दर रचना !!

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  20. कैसे इतने भीगे मौसमों मे \
    अपना मौसम ढूँढ पाओगे।
    बहुत भावमय मार्मिक अभिव्यक्ति है। शुभकामनायें।

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  21. क्या हाल है वन्दना जी? पढ़कर लगता है भावों का लम्बा सेतु बुन दिया है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  22. सुन्दर रचना!
    --
    करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
    रसरी आवत-जात ते सिर पर पड़त निशान!!

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  23. कुछ तो निशाँ पड़े होंगे .सुन्दर भावपूर्ण कविता. मन को छू गई.

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  24. बार -बार पढ़ी आपकी रचना....
    बहुत सुन्दर !!!
    रिश्तों की बात करती सुन्दर रचना !!!
    ऐसे ही एक रिश्ते की बात एक नन्ही बच्ची ने की है...असीम आसमान (The sky is limitless )पर ...जरूर आना....कैसी लगी वो बात ...बताना !!!
    http://limitlesky.blogspot.com

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  25. मुकम्मल!
    यहाँ तो चंद महीनों के निशां नहीं मिट पाए आज तक, आप तो उम्र की बात करती हैं!
    वंदना जी,
    खूबसूरत!
    वन्दे वंदना!
    आशीष

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  26. काफी अच्‍छा लिखा है। शब्‍दों में आपकी भावना स्‍पष्‍ट झलक पड़ी है। ऐसा मैं तो नहीं कर पाता। आपसे सीखने की जरूरत है। आपकी यह रचना प्रेरणाप्रद है। आज आपकी यह पहली रचना मैंने पढ़ी है और आज ही आपके मुरीद हो गए हैं। आज से ही हम आपके ब्‍लॉग को फॉलो करेंगे।

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  27. नितांत भावोच्छल वाणी... जैसे कोई बादल बरस पड़ा हो, हृदयाकाश से काग़ज़ की धरती पर!

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  28. ऐसा लगा जैसे सहसा कोई बादल बरस पड़ा हो, हृदयाकाश से काग़ज़ की धरती पर! कितने भावोच्छल रहे होंगे वे सृजन-पल, जब ये कविता निकली होगी...है न वंदना जी!

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  29. ऐसा लगा मानो कोई बादल सहसा बरस पड़ा हो, हृदयाकाश से काग़ज़ की धरती पर! कितने भावोच्छल रहे होंगे वो सृजन-पल, जब ये कविता उतरी होगी काग़ज़ पर...है न वंदना जी?

    जवाब देंहटाएं
  30. ऐसा लगा मानो कोई बादल सहसा बरस पड़ा हो हृदयाकाश से काग़ज़ की धरती पर! कितने अद्‌भुत...कितने भावोच्छल रहे होंगे वे सृजन-पल, जब यह रचना उतरी होगी काग़ज़ पर... है न वंदना जी?

    जवाब देंहटाएं
  31. वंदना जी आपने मेरी पोस्ट को चर्चा मंच पर लाने के लायक समझा उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद .....शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  32. तन के बँधन
    भले ही टूट जायें
    मन के बन्धनों
    से कैसे खुद को
    आज़ाद कर पाओगे
    आखिर इक
    उम्र गुजारी है
    हमने साथ साथ
    कुछ तो निशाँ पड़े होंगे .................सही लिखा .......
    मन से जुड़ा बंधन कभी नहीं छूट पाता .......
    मन को छू गई.कविता

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  33. vandana, this is one of your best.. i am just speachless as what to say .. mujhe ye kavita bhejna ,mail me .. for my collections ...

    kayi baar padha hoon isko ..

    जवाब देंहटाएं

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