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बुधवार, 22 सितंबर 2010

कोपभाजन से कोखभाजन तक .................

तुम्हारे 
कोपभाजन से
कोखभाजन तक 
सिसकती मर्यादा
आहत हो जाती है 
जब बर्बरता की
चरम सीमा को 
लाँघ जाते हैं
अपने ही लहू 
के दुश्मन
अपना ही लहू बहाते  हैं 
फिर भी 
मुख पर न
मलाल लाते हैं 
तब सड़ांध भरे 
घुटते कमरों में
सिसकती ममता 
आहत हो जाती है 

मुखौटे पर
लगे मुखौटे 
भयावहता का 
दर्शन करा जाते हैं 
फिर भी 
मर्यादा की 
हर सीमा को 
लाँघ कर भी 
इंसान कहाते हैं

41 टिप्‍पणियां:

  1. मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं
    यही तो बिडम्बना है .. इंसानियत के दुश्मन सरेआम घूमते है

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  2. नारी की व्यथा को चित्रित किया है आपने वंदनाजी!.....सही है!

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  3. मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं

    बहुत ही गहरी बात कही आपने, अनुपम प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कन्या भ्रूणहत्या पर लिखी बढ़िया कविता.. आभार..

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  5. पुरुष के अन्याय को सस्वर उघाड़ती पंक्तियाँ।

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  6. बढ़िया प्रयास ।
    इस विडंबना के लिए जिम्मेदार भी हम ही हैं ।

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  7. Uf! Kaisi ghinauni,bhayawah avastha bayan kee hai! Raungate khade ho gaye!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सटीक शब्द दिये हैं आपने.

    रामराम

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सटीक शब्द दिये हैं आपने.

    रामराम

    जवाब देंहटाएं
  10. bahut achha chitran kiya hai apne
    aaj kal ye hi ho ho raha hai
    deepti sharma

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  11. ओह! जबरदस्त!

    तुम्हारे
    कोपभाजन से
    कोखभाजन तक....


    क्या बात है!!

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  12. मार्मिक अभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  13. जो नारी को अपनी और अपनी बच्ची की रक्षा करनी है तो उसको भी मर्यादा संस्कार सबको तोड़ना होगा दुनिया के साथ अपनों से भी लड़ना होगा नहीं तो यु ही घुट कर जीना होगा | वो खुद फैसला कर की उसे क्या करना है |

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  14. मुखौटे पर
    लगे मुखौटे
    भयावहता का
    दर्शन करा
    जाते हैं
    फिर भी
    मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं
    --

    बहुत ही खूबसूरती से आपने इन्सानों की फितरत को अपनी रचना में दर्साया है!
    --
    सुन्दर कविता!

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  15. Vandana jee , aapkee lagbhag 6 - 7
    kavitayen maine aaj hee padee hain.
    Aap mein ek sashakt rachnakaar
    hai. Seedhee -saadee zabaan mein
    seedhe - saade bhaavon ke moti aap
    badee sundarta aur sahajta se pirotee hain.Kash , aapkaa chhandon
    par bhee adhikaar hota to baat sone
    par suhaaga jaesee hotee.phir bhee
    kavita kee vidhaa mein aapkaa bhavishya badaa ujjwal hai.Meree
    shub kamnaayen sweekar kijiyega.

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  16. ज़माना करवट ले रहा है। थोड़ा इन्तज़ार और । और फिर देखिएगा जब हर बेटी आत्मनिर्भर होंगी। बोझ बूझे जाने की बजाए,बोझ उठाने को तैयार।

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  17. मुखौटे पर
    लगे मुखौटे
    भयावहता का
    दर्शन करा
    जाते हैं
    फिर भी
    मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं

    मानव के दोगले रूप की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार .....

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  18. आज का सत्य है ये ... हर कोई एक मुखौटा लगाए हुवे है चहरे पर .... श्श्क्त रचना ...

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  19. .

    हर समस्या के मूल में स्त्री और पुरुष ही तो हैं। जरूरत है स्त्री अपनी शक्ति को पहचाने। पूरी नहीं तो आधी समस्या तो हल हो ही जायेगी।

    सुन्दर रचना।
    शुभकामनाएं।

    .

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  20. आपकी नियमित पाठक हूँ...आपकी रचनाएं ऐसी होती हैं कि बरबस खींच लेती हैं अपनी ओर....
    लेकिन इस विषय पर आजतक जो कुछ भी देखा सुना है,अधिकांशतः पुरुषों को इस मामले से निर्लिप्त और स्त्रियों को ही कन्या भ्रूण नष्ट करवाते देखा है...वह भी स्वेच्छा से..अधिकांशतः पर किसी भी प्रकार का दवाब नहीं होता....
    स्त्रियाँ विवश हैं,पर इतनी भी नहीं कि कोई जबरदस्ती उनसे यह कार्य करवा ले..
    मेरे मन में तो ऐसा ज्वालामुखी पल रहा है इसके लिए...कह नहीं सकती...

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  21. samaaj ki un kuritiyoo ko hame mil kar thukrana hogaa.. jo is tarah mamta ko aahat hone par majboor karti hai..kavita bahut sundar hai..

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  22. वंदना जी
    मैं अब तक क्यो दूर थी आपके इस संसार से..हैरान हूं.यहां आकर चमत्कृत हूं. आप पर लिखने का मन हो रहा है.मैं कितनी देर से आपकी फौलोअर बनी. देखिए मुझसे पहले कितने यहां मौजूद हैं। मैं यहां आया करुंगी.बधाई.

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  23. बहुत बढ़िया प्रस्तुति .......


    (क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html

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  24. मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं
    बहुत सुन्दर.

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  25. एक सच जिसका सामना करना हर किसी के बस का बात नहीं... कोई दिल पर हाथ रखे तब सामना करे!!

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  26. मुखौटे पर
    लगे मुखौटे
    भयावहता का
    दर्शन करा
    जाते हैं
    फिर भी
    मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं
    नारी की त्रासदी और उसकी विडंवना का सजीव चित्र। बधाई

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  27. मर्यादा की
    हर सीमा को
    लाँघ कर भी
    इंसान कहाते हैं..........
    वाह क्या बात कही है आपने ........शानदार , इस बेहद सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट केलिए आपको बधाई !!

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  28. मर्यादा लांघने की यह प्रक्रिया कितनी क्रूर है,कोई भुक्तभोगी को ही पता होता है।

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  29. वंदना जी,

    बधाई इस शानदार रचना पर ...........बहुत सटीक प्रहार है भेड़ की खल में छिपे भेड़ियों पर|

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  30. बहुत खूब लिखा है आपने! सठिक और सार्थक रचना! उम्दा प्रस्तुती!

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