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सोमवार, 16 अगस्त 2010

बस इतना वादा करती जाओ................

हर जन्म
जब भी मिलीं 
मेरी ना हुयीं
हर बार
मिलकर भी 
ना मिलीं
अब एक वादा
करती जाओ
अगले जन्म
की आस को
कुछ तो
संबल 
देती जाओ 
मेरी 
चिर प्रतीक्षित 
प्यास को
अपने वादे के 
अमृत से 
सींचती जाओ
इस बुझते 
दिए की
टिमटिमाती 
लौ को
अपनी स्वीकृति
की छाप से 
भिगोती जाओ
अगले किसी जन्म
जब भी मिलोगी
सिर्फ मेरी 
बनकर मिलोगी
बस इतना 
वादा करती जाओ ............

51 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह सुबह आपकी यह कविता पढ़कर जवाब में बरबस ही शैलेन्‍द्र का यह गीत याद आ गया-

    जीना यहां,
    मरना यहां
    इसके सिवाय
    जाना कहां।
    अगर दार्शनिकता की बात करें तो अगले और पिछले जन्‍म कौन देखकर आता है। होते भी हैं कि नहीं। और अगर होते हैं तो रिश्‍ता केवल आत्‍मा का होता है। आत्‍मा कभी एक शरीर में नहीं रहती। शरीर का चोला तो बदलती ही रहती है। अगर यह मान लें तो फिर आत्‍मा से बने रिश्‍ते कभी नही टूटते। इसलिए यह आग्रह बेमानी है कि कोई वादा किया जाए।

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  2. इतनी खूबसूरत अपील किससे की जा रही है ...
    सुन्दर कविता ...!

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  3. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

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  4. बढ़िया अभिव्यक्ति...सुंदर रचना के लिए आभार

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  5. अगले किसी जन्म
    जब भी मिलोगी
    सिर्फ मेरी
    बनकर मिलोगी
    बस इतना
    वादा करती जाओ ............
    bahut sunder bhav! sachhe prem ki charam sthiti

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी
    चिर प्रतीक्षित
    प्यास को
    "अपने वादे के
    अमृत से
    सींचती जाओ
    इस बुझते
    दिए की
    टिमटिमाती
    लौ को
    अपनी स्वीकृति
    की छाप से
    भिगोती जाओ.."
    alaukik prem ki alaukik kavita ! sunder

    जवाब देंहटाएं
  7. जब भी मिलोगी
    सिर्फ मेरी
    बनकर मिलोगी
    बस इतना
    वादा करती जाओ ............

    बेहतरीन रचना.!!

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  8. बहुत खूब .......सुन्दर रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  9. अरी भई यह गुज़ारिश किससे ? :):)
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  10. अच्छा लिखा है आपने!

    मेरा ब्लॉग
    खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
    http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html

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  11. आशा और विश्वास की ताकत को बल देती प्रस्तुति !

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  12. क्या इसरार है बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  13. मेरी
    चिर प्रतीक्षित
    प्यास को
    अपने वादे के
    अमृत से
    सींचती जाओ
    इस बुझते
    दिए की
    टिमटिमाती
    लौ को
    अपनी स्वीकृति
    की छाप से
    भिगोती जाओ
    .....सुंदर पंक्तियाँ
    ................सरल शब्दों में लिखी हुई सुंदर रचना।

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  14. aapki rachna ke saath rajesh ji ki baate bhi prabhavshali rahi ,ati sundar ,bahar rahi kal aai is karan der ho gayi ,aazadi ki barshganth par dhero badhai .vande matram .

    जवाब देंहटाएं
  15. प्रेम और वियोग रस का मिश्रण करती अति सुन्दर रचना, वंदना जी !

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  16. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  17. ये राजेश उत्साही कौन है जबरन का भाषण झाड़ता रहता है.इसे कोई समझाओ भाइयों कि हम ब्लागर लोग अपनी प्रशंसा ही सुन सकते हैं किसी के सुझाव पर हमें यकीन नहीं है
    वाह-वाह वाह क्या रचना है आपकी

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  18. vndnaa bhn apni ummid ko jis andaaz men pesh ki he vaaqyi bhut khub mzaa aa gyaa . akhtar khan akela kota rajsthan .

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  19. bahut hi khubsurat rachna...
    ummed hai aap isi tarah likhti rahengi...
    mere blog par is baar
    राष्ट्रीय ध्वज का महत्व...

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  20. Viyog ke dard ka vilakshan varanan kiaya aapane is kavita me ....bahut sundar.

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  21. यही तो एक आस है जो जिलाए रखती है।

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  22. क्या बात है !! सुन्दर रचना !
    हमज़बान का लिंक तो अपने यहाँ दें ख़ुशी होगी! अपन तो बहुत पहले आपको शामिल कर चुके हैं.

    हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
    पर ज़रूर पढ़ें:
    काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html

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  23. सुंदर प्रस्तुति!


    “कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”

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  24. bahut khub likha aap ne. aur mujhe maaf ki jiyega ki mein aap ke sath 16 august ko charcha mein shamil na ho saki.

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  25. जब भी मिलोगी
    सिर्फ मेरी
    बनकर मिलोगी
    बस इतना
    वादा करती जाओ ...
    सुन्दर और सही इसरार है। अच्छी लगी रचना बधाई।

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  26. बहुत खूब वंदना जी, लफ्जों की बयानी अच्छी लगी | एक सवाल अगर आप बुरा न माने तो मैं आपके एक ब्लॉग को फॉलो करता हूँ | जिनगी ...एक खामोश सफ़र ....आपकी रचनाये अच्छी लगती हैं, लफ्जों पर आपकी पकड़ अच्छी है...जो आपकी अच्छी शिक्षा की और इशारा करती है....पर इसके अलावा आपके शायद २ या ३ ब्लॉग और हैं .....मेरा सवाल है की आपके ३ ब्लॉग मैंने देखे हैं ...जिसमे आपकी रचनाये लगभग एक जैसी ही होती हैं, मेरा मतलब ब्लॉग की पोस्ट के विषय से नहीं है .....मर्म लगभग एक जैसा है .....ये साड़ी रचनाये आप एक ही ब्लॉग पर भी लिख सकती हैं.....फिर इतने ब्लॉग क्यूँ?

    जवाब देंहटाएं
  27. gujarish jis kisi se bhi ho..koi inkaar na karega/karegi :)..so beautiful!

    जवाब देंहटाएं
  28. अगले किसी जन्म
    जब भी मिलोगी
    सिर्फ मेरी
    बनकर मिलोगी
    बस इतना
    वादा करती जाओ
    ...इसके आगे क्या कहें...शानदार कविता..बधाई.
    _________________________
    'शब्द-शिखर' पर प्रस्तुति सबसे बड़ा दान है देहदान, नेत्रदान

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  29. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
    बस पहले इस जन्म में तो साथ निभा लें ।

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  30. इतने जन्मो से,
    न मिल रही जो,
    कुछ तो कारण रहा होगा.
    अगले में न टालो,
    इसी जन्म में पता लगाओ!
    कोशिश करते रहो 'मजाल',
    गुत्थी सुलझाओ!

    जवाब देंहटाएं
  31. इतने जन्मो से,
    न मिल रही जो,
    कुछ तो कारण रहा होगा.
    अगले में न टालो,
    इसी जन्म में पता लगाओ!
    कोशिश करते रहो 'मजाल',
    गुत्थी सुलझाओ!

    जवाब देंहटाएं
  32. अगले किसी जन्म
    जब भी मिलोगी
    सिर्फ मेरी
    बनकर मिलोगी
    बस इतना
    वादा करती जाओ
    ati sundar kavita

    जवाब देंहटाएं
  33. शानदार रचना के लिये बधाई.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  34. padhne likhne vaale bache bahut ache lagte hai mujhe...:)

    bahut dur tak sochte hai aapke sabd

    achhi rachna

    kavyalok.com

    Please visit, register, give your post and comments.

    जवाब देंहटाएं
  35. आदरणीया वंदना जी
    नमस्कार !
    मौन - शिष्ट प्रेम की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई और आभार स्वीकार करें ।

    जब भी मिलीं , मेरी न हुई
    प्रेम है , कामना है !
    लेकिन साथ ही शालीनता भी है , धैर्य भी है ! … और प्रिय पर विश्वास भी है ।

    मुझ जैसा तो अधीर हो'कर कह देता है -

    किताबे - आसमानी में लिखी क़िस्मत नहीं मिटती
    तुम्हें मेरा नहीं लिक्खा तो अब रद्दोबदल होगी



    शस्वरं पर आपकी प्रतीक्षा है , आइए…

    सादर शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    जवाब देंहटाएं
  36. :) कई साल पहले एक कविता लिखी थी मैम.. थी तो छोटी लेकिन काफी कुछ यही भाव लिए हुए.. इसे पढ़ कर वो कविता फिर याद आगई.. देखिएगा..
    शीर्षक था मजबूरियाँ..
    ऐ!!!
    कुछ कहना था तुमसे
    है तो कुछ ख़ास नहीं
    मगर फिर भी इतना कहना है कि
    अगले जनम में जब भी आओ
    इतनी मजबूरियाँ लेके मत आना
    कि हम मिल के भी ना मिल सकें
    तुम्हें देख कर भी ना देखा सकें..
    कुछ कह कर भी ना कह सकें..
    तुम्हें अपना कर भी ना अपना सकें
    समझ कर भी ना समझ सकें
    और हम एक दूजे को
    चाह कर भी ना चाह सकें..

    शब्दों और भावों का उत्तम संग्रह दिखा

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत खूब .. वैसे तो हमारी पद्धति में ७ जन्मों का वादा होता है .... पर दूरसे जान में मिलने का वादा .... बाबूत खूब लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  38. VANDANA JI

    prem ki maun abhivyakti ko aapne bahut hi acche dhang se pesh ki ya hai .

    badhayi

    जवाब देंहटाएं
  39. किसी ने पूछा है की इतनी खूबसूरत अपील किससे की जा रही है. मेरा तो जवाब होगा, कुदरत से. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  40. सबसे पहले स्वाधीनता दिवस की बासी और रक्षा बंधन की एडवांस शुभकामना.
    फिर क्षमा क्योंकि बहुत लम्बे समय बाद आ सका हूँ आपके ब्लॉग तक, मेरा ख्याल है, माफी मिल ही जाएगी.
    कविता के बारे में क्या कहूं, शब्द जैसे खो गए हों. उत्साही जी ने अपने कमेन्ट में, बाकी लोगों ने अपने शब्दों में जो तारीफें की हैं, उन सबके बाद मेरे लिए शायद कुछ कहने को बचा ही नहीं. सार्थक और जीवंत लिखा आपने और यही तो आपके लेखन की विशेषताहै.

    जवाब देंहटाएं

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