सोमरस -सा
प्राणों को
सिंचित करता
तुम्हारा ये नेह
ज्यों प्रौढता की
दहलीज परवसंत का आगमन
नव कोंपल सी
खिलखिलाती
स्निग्ध मुस्कान
ज्यों वीणा के तार
झनझना गए हो
स्नेहसिक्त नयनो से
बहता प्रेम का सागर
ज्यों तूफ़ान कोई
दरिया में
सिमट आया हो
सांसों के तटबंधों
को तोड़ते ज्वार
ज्यों सैलाब किसी
आगोश में
बंध गया हो
प्रेमारस में
भीगे अधर
ज्यों मदिरा कोई
बिखर गयी हो
धडकनों की
ताल पर
थिरकता मन
ज्यों देवालय में
घंटियाँ बज रही हों
आह ! ये कैसा
अनुबंध है प्रेम का
क्या फिर
ऋतुराज का
आगमन हुआ है ?
प्राणों को
सिंचित करता
तुम्हारा ये नेह
ज्यों प्रौढता की
दहलीज परवसंत का आगमन
नव कोंपल सी
खिलखिलाती
स्निग्ध मुस्कान
ज्यों वीणा के तार
झनझना गए हो
स्नेहसिक्त नयनो से
बहता प्रेम का सागर
ज्यों तूफ़ान कोई
दरिया में
सिमट आया हो
सांसों के तटबंधों
को तोड़ते ज्वार
ज्यों सैलाब किसी
आगोश में
बंध गया हो
प्रेमारस में
भीगे अधर
ज्यों मदिरा कोई
बिखर गयी हो
धडकनों की
ताल पर
थिरकता मन
ज्यों देवालय में
घंटियाँ बज रही हों
आह ! ये कैसा
अनुबंध है प्रेम का
क्या फिर
ऋतुराज का
आगमन हुआ है ?
बहुत सुन्दर है प्रेम का अनुबन्ध ही है इस ऋतु राज से सुन्दर शब्द और सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
bahut badiya dil tak chu gaye aapke dil ke bat
जवाब देंहटाएंwaah.....mera man bhi saraabor ho gayaa....is mahak se...taaji havaa aur pyari kavita ki khanak se....!!
जवाब देंहटाएं’’ज्यों देवालय में..............ऋतुराज का आगमन हुआ हुवा है ?’’ वंदना जी, आपने प्यार और नेह का जो प्रतीमान दिया है, सच में प्राणों को सिंचित कर गया। एक और उत्कृष्ट रचना के लिये आभार!!
जवाब देंहटाएंआह ! ये कैसा
जवाब देंहटाएंअनुबंध है प्रेम का
क्या फिर
ऋतुराज का
आगमन हुआ है ?
बहुत खूबसूरत शब्दों में बाँधा है प्रेम के अनुबंध को ....सुन्दत अभिव्यक्ति....
ऋतुराज के आगमन पर प्रेम का सुंदर अनुबंध .......... बहुत कोमल एहसास से सजी है आपकी सुंदर रचना .....
जवाब देंहटाएंमुझे भी ऐसा ही लगता है.... ऋतुराज का आगमन फिर से हुआ है.....प्रेम के अनुबंध में यह कविता बहुत अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएं--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
मुझे भी ऐसा ही लगता है.... ऋतुराज का आगमन फिर से हुआ है.....प्रेम के अनुबंध में यह कविता बहुत अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएं--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
वन्दना जी बड़ी गाढ़ी हिन्दी लिखी है...धीरे धीरे पढ़ना पढ़ा
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंबसन्त के मौसम में सुन्दर वासन्ती रचना के लिए
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें!
Bahut hee lajavab kavita ---ekdam prakriti ko sametatee huyee.
जवाब देंहटाएंPoonam
nice
जवाब देंहटाएंKitne khobsoorat alfaaz hain is rachnake!
जवाब देंहटाएंजी सच कहा ऋतुराज के आगमन के संकेत तो मिलने ही लग गए हैं
जवाब देंहटाएंbehatareen abhivyakti aur sunder shabdon ka chayan, bahut khoob. vandanaji, achcha laga padhkar.
जवाब देंहटाएंVANDANAA JEE,AAPNE ACHCHHE KAVITA
जवाब देंहटाएंKAHEE HAI.BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
vandana ji bahut sundar............
जवाब देंहटाएंati sundar basnt ka svagt .
जवाब देंहटाएं...उम्दा रचना, प्रभावशाली!!!!
जवाब देंहटाएंवाह वंदना जी वाह...शब्दों के अद्भुत चयन और अनूठे भावों के मिश्रण से आपने कमाल की रचना रच डाली है...बधाई..बधाई...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत भावपूर्ण व सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही आया है प्रिय ऋतुराज !
जवाब देंहटाएंकविता की बुनावट खूबसूरत है। वसंत की प्रतीति के वर्णन बेहद सुन्दर हैं । आभार।
Vandanaa ji.. aap lagataar achchha likh rahi hain.. pustak kab prakashit kara rahi hain? :)
जवाब देंहटाएंऋतूराज ....के आगमन में बहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंसोमरस -सा
जवाब देंहटाएंप्राणों को
सिंचित करता
तुम्हारा ये नेह....
स्निग्ध मुस्कान
ज्यों वीणा के तार
झनझना गए हो...
ताल पर
थिरकता मन
ज्यों देवालय में
घंटियाँ बज रही हों...
वाह! इतनी सुन्दर कविता और ऐसी स्नेहशीलता की मेरे जैसे अदना से लेखक को लगातार प्रोत्साहित करती रहती हैं....धन्यवाद...
bahut sundar bhav!
जवाब देंहटाएंek pratikshit pratiksha jo har dil ko hoti hai vasant ki ....
जवाब देंहटाएंkhubsurat bhav..